‘मजबूरी’ शीर्षक कहानी में लेखिका मन्नू भंडारी ने मातृत्व प्रेम से परिपूर्ण एक सरल वृद्धा ‘अम्मा’ का करुण व ममतामयी चित्रांकन किया है। गाँव में रहने वाली ममतामयी, ‘अम्मा’ को पुत्र रामेश्वर को कलेजे से दूर करना पड़ता है। यह उनकी पहली मजबूरी है। रामेश्वर के बिना उन्हें घर मसान जैसा लगता है। पहाड़ जैसा दिन उन्हें अकेले काटना पड़ता है। लेकिन अकेलेपन की यातना से दुखी अम्मा के अकेले जीवन में रामेश्वर के बड़े बेटे बेटू के आ जाने से बहार आ जाती है। दूसरा पहलू यह है कि बहू रमा के कड़े नियंत्रण के बाद दादी अम्मा के असीम दुलार में पलता हुआ बेटू एकदम अनुशासनहीन हो जाता है। रमा की मजबूरी थी कि वह अगली संतान को ध्यान में रखकर अपने बेटू को अम्मा के पास छोड़ती है। वर्ष बाद लौटने पर उसे दुख होता है क्योंकि बेटू उदंड और अनुशासनहीन हो चुका है। वह उसे ले जाना चाहती है परंतु ले जा नहीं पाती।
इसके तीन वर्ष बाद रमा और रामेश्वर तीन साल के पप्पू को लेकर आए। पप्पू ने अंग्रेज़ी की छोटी-छोटी कविताएँ याद कर रखी थीं। दो महीने पूर्व ही उसे एक अंग्रेजी स्कूल में भर्ती करवाया गया था। रमा ने रामेश्वर से कहा कि जैसे भी हो इस बार बेटू को अपने साथ लेकर जाना होगा। रामेश्वर ने जवाब दिया कि “इस बात से अम्मा को बहुत दुख होगा तथा दूसरी समस्या यह है कि बेटू तुम्हारे पास ज़रा भी नहीं आता। वह अम्मा को छोड़कर वहाँ कैसे रहेगा?”
रामेश्वर बेचारा धर्म संकट में था। उसने सारी बात रमा पर छोड़ दी। अम्मा ने जब रमा का प्रस्ताव सुना कि वह बेटू को अपने साथ ले जाना चाहती है, तो उसके पैरों तले की जमीन सरक गई। बोली, “मेरे बिना वह एक पल भी तो नहीं रहता …… एकाएक मुझसे दूर कैसे रहेगा?” रमा ने बेटू की पढ़ाई की बात की और कहा, “……”उसके साथ दुश्मनी ही निभानी है, तो रखिए इसे अपने पास।”
अम्मा यह बात सुनकर फूट-फूट कर रोने लगी। कुछ देर बाद स्वर को संयत करके बोली, “ले जा बहू, ले जा।”
दो दिन बाद रमा औषधालय के एकमात्र नौकर और दोनों बच्चों को लेकर अपनी माँ के यहाँ चल पड़ी। रमा ने बेटू को बताया ही नहीं कि वह उसे अपने साथ ले जा रही है।
उसके बाद घर में जो कोई भी आता उसे बेटू के चले जाने पर आश्चर्य होता। अम्मा ने उन्हें बताया कि गठिया के मारे उठना बैठना तक हराम हो रहा है, इसीलिए मैंने ही कह दिया कि पप्पू अब बड़ा हो गया है, सो बेटू को ले जाओ।
शाम को गुब्बारेवाला आया, बुढ़िया के बालवाला आया, मिठाई के खिलौने बेचने वाला आया, तो अम्मा ने सबको जवाब दिया- “जाओ भाई, जाओ ! आज तुम्हारा ग्राहक नहीं है। उसे मैंने उसकी अम्मा के साथ भेज दिया। अब यहाँ मत आया करो।”
तीसरे दिन औषधालय का नौकर वापस आया, तो उसने बताया कि दादी अम्मा को याद करते-करते बेटू को बुखार आ गया। रमा के हाथ से न कुछ खाता है न दवाई पीता है। अम्मा पागलों की भाँति दौड़ती हुई औषधालय पहुँची।
अम्मा बेटू को लेने चली गई और तीसरे दिन ही बेटू को लेकर लौट आईं। एक साल उन्होंने इसी प्रकार निकाल दिया। रमा मुंबई से आई तो बेटू का वही रवैया देखा। वह एक बार फिर दादी माँ को रुलाकर उनके मना करने पर भी बेटू को लेकर मुंबई के लिए चल पड़ी। अम्मा ने शिब्बू को साथ कर दिया।
शिब्बू मुंबई से लौटकर अम्मा को बताता है कि बेटू अब रमा के साथ हिल-मिल गया है और उसकी वहाँ लड़कों से दोस्ती हो गई है। इस पर अम्मा परसाद बाँटने के लिए सवा रुपया निकालती है। लेखिका ने यहाँ पर उसकी करुण स्थिति और रोती आँखों की मजबूरी उजागर की है। वह प्रसाद भले ही बाँट रही थी परंतु अकेले, सुनसान व शुष्क जीवन की मजबूरी उसे रुला रही थी।