(i) प्रस्तुत गद्यांश राजेंद्र यादव कृत उपन्यास ‘सारा आकाश’ में से उद्धृत है। इस संवाद की वक्ता मुन्नी नामक स्त्री है। वह उपन्यास के नायक समर की बहन है जिसका वैवाहिक जीवन अत्यंत करुण, विपन्न, उत्पीड़क तथा घातक सिद्ध होता है। परिणाम स्वरूप उसे प्रताड़ना का बोझ न सहते हुए आत्महत्या करनी पड़ती है।
(ii) मुन्नी को अपने सुसराल में पति का उत्पीड़न तथा घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता था। जब वह तंग आकर मायके आ गई तो उसका पति उसे पुनः मनाने आ गया। वह वस्तु स्थिति जानती थी जिसके कारण पुनः सुसराल नहीं जाना चाहती थी। उसे पता था कि सास के देहांत के बाद अब सुसराल में उसका पक्ष लेने वाला कोई न था।
(iii) मुन्नी की दुर्दशा दहेज उत्पीड़न तथा घरेलू हिंसा का जीवंत उदाहरण है। अपनी बेटी की दुर्दशा देखकर माता-पिता का दिल दहल जाता था। परन्तु सामाजिक रीति को निभाते हुए उन्होंने उसे दूसरी बार उसके नारकीय ससुराल में भेजने का निर्णय ले लिया।
(iv) प्रस्तुत उपन्यास एक यथार्थवादी उपन्यास है जिसमें मुख्यतः नारी पर होने वाले अनुदार अत्याचारों का चित्रांकन हुआ है। समर की पत्नी प्रभा और बहन मुन्नी नामक दो नारियों का जीवन तत्कालीन समाज की भेदभाव भरी दृष्टि तथा उत्पीड़क व्यवहार की ओर संकेत करता है। प्रभा को न केवल दहेज के लिए ताने सुनने पड़ते हैं बल्कि पति के दुर्व्यवहार (पूर्वार्द्ध भाग में) का भी सामना करना पड़ता है। उसकी सास व भाभी उत्पीड़क पात्रों के रूप में स्थित हैं। दूसरी ओर मुन्नी का करुण और त्रासद जीवन तत्कालीन पुरुष की लम्पट तथा अमानवीय विचारधारा का प्रतीक है। यहाँ उपन्यासकार की दृष्टि नारी के प्रति संवेदना प्रकट करती दिखाई देती है।