समर प्रसिद्ध उपन्यासकार राजेंद्र यादव कृत यर्थाथवादी उपन्यास ‘सारा आकाश’ का नायक है। उपन्यासकार ने उसका चरित्र दो भागों में चित्रित किया है। उपन्यास के प्रथम आधे चरण में समर एक दम्भी पुरुषप्रधान व नारी उत्पीड़क दृष्टि का प्रतीक बनकर आता है। उपन्यास के दूसरे चरण में उसकी दृष्टि सहिष्णु अनुशासित, तर्कशील, पत्नी-प्रेमी और न्यायसंगत व्यक्ति का उदाहरण प्रस्तुत करती है। समर एक संवेदनशील युवक है। वह पत्नी के प्रति होने वाले संयुक्त परिवार के दुर्व्यवहार व घरेलू हिंसा को निष्पक्ष होकर सोचता है, तो एकदम बदल जाता है। प्रभा की सहनशीलता उसे आत्म-ग्लानि से भर देती है। उसका व्यवहार बदलने लगता है और वह पत्नी के प्रति एकदम करुण तथा प्रेमिल हो उठता है।
समर और प्रभा के बीच सुहागरात से ही मन-मुटाव चल रहा था जो लम्बा खिंचता चला गया। विवाह के बहुत दिन बाद एक दिन आधी रात के समय छत पर अपनी पत्नी को रोता-सिसकता देख नायक समर का मन करुणाद्रवित हो उठता है और वह अपने निष्ठुर व्यवहार पर लज्जित हो, प्रभा से क्षमा माँगता है और दोनों के हृदय में एक-दूसरे के प्रति प्रेम तथा अपनाव की सरिता बहने लगती है।
प्रभा व समर दोनों रात-भर रो-रोकर अपने हृदय को हल्का करते रहे, एक-दूसरे के प्रति पूर्णतः आत्म समर्पित हो एक नया जीवन बिताने की सौगंध खाते रहे। उस मिलन ने दोनों के बीच अहं की दीवार को तोड़ दिया। प्रात:काल होते ही प्रभा तो घर का काम काज करने के लिए रसोई-घर में चली गई और समर को एक नयी अनुभूति हुई, उसे सब कुछ उल्लासमय और प्रफुल्लित दिखने लगा।
वास्तव में समर और प्रभा के बीच मन-मुटाव का मुख्य कारण असमय विवाह था। छात्रावस्था में विवाह हो जाने पर समर समस्याओं से घिर जाता है। वह आर्थिक व मानसिक दृष्टि से माता-पिता पर आश्रित था। उसकी स्वतंत्र चिंतन-धारा उसे एक अहंवादी पति बना देती। इसी कारण उसका व्यवहार अपनी सुशील, सुंदर व सुशिक्षिता पत्नी के प्रति कठोर होता गया। वह उसकी हर उचित प्रक्रिया पर भी प्रश्न चिह्न लगाने लगा था। परन्तु इस घटना ने उसे भीतर तथा बाहर से बदल दिया।