प्रभा उपन्यासकार राजेंद्र यादव कृत यथार्थवादी उपन्यास ‘सारा आकाश’ की नायिका है। उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं
1. शिक्षित, सुसंस्कृत एवं सुशील- उपन्यासकार ने प्रभा को एक शिक्षिता युवती के रूप में दिखाया है। जिस काल का यह उपन्यास है, उस काल में प्रभा का मैट्रिक पास होना अत्यंत महत्त्व रखता है। उस समय इतनी पढ़ी-लिखी लड़की मिलना कठिन था क्योंकि प्रायः मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय लोग अपनी कन्याओं को शिक्षा देने के विरोधी होते थे। उस समय इतनी शिक्षिता युवती सुगमता से कहीं भी नौकरी पा सकती थी।
मैट्रिक पास होने पर भी प्रभा सुसंस्कृत तथा सुशील है। उसके मन-मस्तिष्क में इस बात का कोई भी घमंड नहीं है। वह सबसे विनम्रता से पेश आती है।
2. स्वाभिमान एवं आत्मसम्मान- प्रभा में स्वाभिमान तथा आत्मसम्मान की भावना भरपूर है। सुहागरात से ही उसका ऐसा ही चरित्र उजागर होता है। जब वह मायके चली जाती है तो तब तक वापस नहीं आती जब तक ससुराल से समर उसे लेने नहीं जाता। छह महीने के बाद ससुराल लौटने पर भी उसमें अनावश्यक छोटापन दिखाई नहीं देता। जब भाभी उसे समर के कमरे में जाकर सोने को कहती है तो वह स्वाभिमान और आत्मसम्मान का परिचय देते हुए इस प्रकार कहती है
“जबरदस्ती वही कहीं जाकर सो जाऊँ? मुझसे तो नहीं होता जिठानीजी कि कोई दुत्कारता रहे और पूँछ हिलाते रहो, ठोकर मारता रहे और तलुए चाटते रहो। उनके बोर्ड के इम्तहान हैं, मैं क्यों तंग करूँ? कुछ हो गया तो बाद में सब मेरा ही नाम लेंगे। हमारा यहाँ आना तो जम दिखाई दिया और तुम कहती हो कि वहीं चली जा।”
3. कार्यकुशल- प्रभा एक कार्यकुशल स्त्री है। उसका जेठ धीरज भी उसकी प्रशंसा में कहता है कि वह बहुत स्वादिष्ट रसोई पकाती है। भले ही भाभी (जेठानी) उससे ईर्ष्या करते हुए उसकी दाल में अतिरिक्त नमक डाल कर उसे डाँट पिलवा देती है परंतु वह हारती नहीं। उसे अपनी कार्यकुशलता पर भरोसा था। यही कारण है कि उसके बाद वह काम से कभी भी पराजित नहीं हुई।
समर की उपेक्षा के बावजूद प्रभा संयुक्त परिवार की पूरी-पूरी व्यवस्था संभाल लेती है। वह घर के रख-रखाव पर पूरा ध्यान देती है। उसे प्रातः से लेकर रात ग्यारह साढ़े ग्यारह तक काम करना पड़ता है। इससे प्रभावित समर सोचता है
“वह सब कुछ ऐसी आसानी और चुपचाप करती चली जाती है, मानो मशीन हो और उसे यह सब करने में कोई कष्ट न होता हो। हर-नए काम को ऐसी स्वाभाविकता से ग्रहण करती चली जाती कि लगता ही नहीं था कि उसे करने में कहीं भी अनिच्छा का लेश या थकान है और मैं इसी पर खीझ उठता। उसके व्यवहार में कहीं अनिच्छा या थकान दीखे तो मैं अपने को उसके कष्ट से आनन्दित कर सकूँ, मन में कहूँ कि “कहो बच्ची जी, अब कैसा लग रहा है?”।
4. सहिष्णु- प्रभा इतनी सहिष्णु है कि अपने ऊपर किया गया हर प्रकार का दुर्व्यवहार चुपके से सह जाती है। उसमें सहनशीलता की चरम सीमा दिखाई देती है। उसे कभी किसी से ऊँचा बोलते नहीं सुना। न ही वह किसी अनावश्यक वाद-विवाद में पड़ती है। दाल में नमक का प्रसंग, नामकरण के उत्सव पर गणेश की मूर्ति की घटना आदि उसे तनिक भी विचलित नहीं करतीं। वह सब प्रकार का गाली-गलौच और पति का तमाचा तक सह जाती है।
प्रभा की सहिष्णुता का प्रमाण यह है कि विपरीत व्यवहार पर तुला हुआ समर भी पिघल जाता है। वह उसकी सहनशीलता से प्रभावित होकर इस प्रकार सोचता है
“जब भी इस बात का ध्यान आता कि एक निरीह बेकसूर किसी की लाड़ प्यार से पाली गई इकलौती लड़की को लाकर मैंने क्या-क्या अत्याचार नहीं किए, कौन-कौन से कहर उस पर नहीं तोड़े, उसे कितनी-कितनी यातनाएँ नहीं दी, और उसका यहाँ था ही कौन जिससे अपना दुखड़ा रोती, तो हज़ारों बरछे-जैसे एक साथ ही छाती में आ लगते और रुलाई दुगनी चौगुनी होकर उमड़ने लगती। उस बेचारी के पास धीरे-धीरे घुटने के सिवा चारा ही क्या था? उस क्षण तो ऐसा लगा जैसे आँसू, सिसकी, तड़प किसी में भी ऐसी शक्ति नहीं है कि हृदय के इस पश्चात्ताप और मन की इस बैचेनी को, इस छटपटाहट और मर्मान्तक पीड़ा को बाहर निकालकर ला सके।”
अम्मा की डाँट, दहेज के ताने, निरर्थक लाँछन आदि भी उसकी सहनशीलता की शीतलता को कम नहीं कर पाते।
5. मर्यादा-भावना- उपन्यासकार ने प्रभा को एक मर्यादा में रहने वाली स्त्री के रूप में चित्रित किया है। उसमें उच्छृखलता, उदंडता या अशिष्टता का लेशमात्र भी अंश नहीं है। वह जानती है कि संयुक्त परिवारों में किस प्रकार की मर्यादा का पालन करना पड़ता है। यही कारण है कि वह न तो भाभी के कटु व्यंग्य सुनकर उत्तेजित होती है और न ही समर के प्रारंभिक व्यवहार पर। वह अम्मा के कठोर वाक्यों और दहेज के लोभ में सने शब्दों पर भी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती।m इस प्रकार लेखक ने उसे एक मर्यादित व्यवहार कुशल, सुसंस्कृत सहिष्णु परन्तु तर्कशील नारी के रूप में दिखाया है। आषाढ़ का एक दिन