पृथ्वी का अपनी धुरी से हिलकर कम्पन करने की स्थिति को भूकम्प या भूचाल कहा जाता है। कभी-कभी तो यह स्थिति बहुत भयावह हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी के ऊपर स्थित जड़-चेतन, हर प्राणी और पदार्थ का या तो विनाश हो जाता है या फिर वह सर्वनाश की-सी स्थिति में पहुँच जाता है। जापान के विषय में तो प्रायः सुना जाता है कि वहाँ तो अक्सर भूकम्प आकर विनाशलीला प्रस्तुत करते ही रहते हैं। इस कारण लोग वहाँ लकड़ियों के बने घरों में रहते हैं। इसी प्रकार का एक भयानक भूकम्प बहुत वर्षों पहले अविभाजित भारत के क्वेटा नामक स्थान पर आया था। उसने शहर के साथ-साथ हजारों घर-परिवारों का नाम तक भी बाकी नहीं रहने दिया था।
अभी कुछ वर्षों पहले गढ़वाल और महाराष्ट्र के कुछ भागों को भूकम्प के दिल दहला देने वाले हादसों का शिकार होना पड़ा था। प्रकृति की यह कैसी लीला है कि वह मानव-शिशुओं के घरघरौंदों को तथा स्वयं उनको भी कच्ची मिट्टी के खिलौनों की तरह तोड़-मरोड़कर रख देती है। पहले यह भूकम्प गढ़वाल के पहाड़ी इलाकों में आया था, जहाँ इसने बहुत नुकसान पहुँचाया था। थोड़े दिनों पश्चात् महाराष्ट्र के लातूर में फिर एक भूकम्प आया जिसने वहाँ सब कुछ मटियामेट कर दिया था।
26 जनवरी, 2001 को गुजरात सहित पूरे भारत ने भूकम्प का कहर देखा। भुज सहित सम्पूर्ण गुजरात में भारी जान-माल का नुकसान हुआ। 8 अक्टूबर, 2005 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और उससे सटे भारतीय कश्मीर में दिल दहला देने वाला भूकम्प आया। उसमें जहाँ एक लाख से अधिक लोग काल के गाल में समा गये, वहीं लाखों लोग घायल हुए तथा अरबों रुपये की सम्पत्ति की भी हानि हुई।
भूकम्प वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी तक ऐसा कोई उपकरण या यन्त्र विकसित नहीं हुआ है जिससे यह बात पता चल सके कि अमुक-अमुक क्षेत्रों में भूकम्प आने वाला है। भूकम्प के आते समय ‘रिक्टर स्केल’ पर सिर्फ उसकी क्षमता का ही माप लिया जा सकता है।
गुजरात के भूकम्प को देखकर वहाँ अफरा-तफरी मच गई। आँखों-देखी इस भयंकर दुर्घटना ने सभी लोगों के मन में एक प्रश्न खड़ा कर दिया कि आखिर गुजरात प्रान्त का क्या होगा? वहाँ जनहानि और धन हानि का अनुमान ही लगाना कठिन था। भूकम्प आने के बाद गुजरात प्रान्त की स्थिति एक श्मशान घाट या कब्रिस्तान की भाँति हो गई थी। हम पाँच छात्र किसी परीक्षा के लिए वहाँ गये थे। हम एक होटल में ठहरे थे। हमें जैसे ही पता लगा तो हम लोग बाहर निकल आये और उस स्थान की तरफ बढ़े जहाँ से चीख-पुकार या भयंकर शोर शराबा हो रहा था। लोग उधर दौड़े जा रहे थे। हम भी भागकर वहाँ पहुँचे और पीड़ित लोगों की मदद की। पुलिस, एम्बुलैंस और फायरब्रिगेड की गाड़ियाँ आ चुकी थीं। उस भयंकर दृश्य को देखकर प्राण सूख रहे थे। हम पाँचों छात्रों ने हिम्मत नहीं हारी और घायलों को एम्बुलैंस में बिठाया। दबे हुए लोगों को मलवा हटाकर बाहर निकाला। मृतकों के ढेर देखकर करुणा भी रोने लगी। ऐसी त्रासदी भगवान किसी देश को न दे।
ऊपरी सतह से लेकर अन्तर्भाग तक पृथ्वी कई परतों से बनी हुई है। पृथ्वी की बाहरी सतह कई कठोर खण्डों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो क्रमशः कई लाख सालों की अवधि में पूरे सतह से विस्थापित होती है। पृथ्वी की आन्तरिक सतह एक अपेक्षाकृत ठोस भूपटल की मोटी परत से बनी हुई है और सबसे अन्दर होता है एक कोर, जो एक तरल बाहरी कोर और एक ठोस लोहे की आन्तरिक कोर से बनी हुई है। बाहरी सतह की जो विवर्तनिक प्लेट हैं वे बहुत धीरे-धीरे गतिमान हैं।
ये प्लेट आपस में टकराते भी हैं और एक-दूसरे से अलग भी होते हैं। ऐसी स्थिति में घर्षण के कारण भूखण्ड या पत्थरों में अचानक दरारें फूट सकती हैं। इस अचानक तेज हलचल के कारण जो शक्ति उत्सर्जित होती है, वही भूकम्प के रूप में तबाही मचाती भूकम्प भूस्खलन और हिम स्खलन पैदा कर सकता है, जो पहाड़ी और पर्वतीय इलाकों में क्षति का कारण हो सकता है। भूकम्प के कारण किसी विद्युत लाइन के टूटने के कारण आग लग सकती है। भूकम्प के कारण मिट्टी द्रवीकृत हो सकती है जिससे इमारतों और पुलों को नुकसान पहुँच सकता है। समुद्र के अन्दर भूकम्प से
सुनामी आ सकती है। भूकम्प से क्षतिग्रस्त बाँध के कारण बाढ़ आ सकती है। भूकम्प से जीवन की हानि, सम्पत्ति की हानि, मूलभूत आवश्यकताओं की कमी, रोग इत्यादि होते हैं।
यह एक प्राकृतिक आपदा है। हमें इससे अपनी रक्षा के उपाय करने चाहिए। जापान आदि देशों में जहाँ भूकम्प अधिकतर आते हैं वहाँ लोग लकड़ी या बाँस के मकान बनाते हैं जिससे कि जनहानि कम होती है।