इस घटना ने मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया
भारतीय इतिहास में अनेक ऐसे प्रसंग मिलते हैं जिनमें किसी घटना से प्रभावित होकर व्यक्ति का हृदय परिवर्तन हो गया। हृदय परिवर्तन किसी सद्मार्ग पर चलने के लिए हुआ हो या अपने को परोपकार में लगाने के लिए हुआ हो या फिर दान आदि के द्वारा धार्मिक प्रोत्साहन के लिए हुआ। मनुष्य का हृदय अत्यन्त कोमल, दयापूर्ण, प्रेम से भरा और मनोबल से परिपूर्ण होता है।
मनुष्य के मनोभावों के साथ ही हृदय की क्रिया रहती है। मनुष्य का कोई दृढ़ संकल्प उसके हृदय को परिवर्तित कर देता है। महर्षि वाल्मीकि अपनी युवावस्था में डाकू रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे। एक बार ऋषियों ने अपने उपदेश से उनका हृदय परिवर्तन कर दिया और अपने कल्याण के लिए ‘राम-राम’ जपने का उपदेश दिया। वे ‘रामराम’ का उल्टा ‘मरा-मरा’ जपने लगे और आगे चल कर महर्षि वाल्मीकि हुए जिन्होंने संस्कृत में वाल्मीकि रामायण लिखी। इनके बारे में एक चौपाई इस प्रकार हैं
“उल्टा नाम जपा जग जाना। वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना।”
दूसरा उदाहरण है सम्राट अशोक का जिन्होंने ‘कलिंग’ देश के युद्ध में भीषण नरसंहार के बाद बौद्ध भिक्षु के उपदेश से अपना हृदय परिवर्तन कर लिया और आगे युद्ध न करने की प्रतिज्ञा की। उन्होंने अपनी तलवार रख दी और फिर कभी उसे नहीं उठाया। यह भी मानवता के कल्याण में किया गया ‘हृदय परिवर्तन’ था।
एक दिन छमाही परीक्षा के बाद मैंने बाजार में घूमने का निश्चय किया और अपनी साइकिल उठाकर बाजार की तरफ चल दिया।
तभी मुझे याद आया कि पिताजी की कुछ दवा लेनी थी। इमरजैन्सी के पास एक मेडीकल की बड़ी दुकान है। मैं वहाँ जाकर खड़ा हुआ तो देखा कि गाँव का एक वृद्ध व्यक्ति डॉक्टर का पर्चा लेकर दुकान पर आया और बताया कि उसके बेटे का ऑपरेशन हो रहा है इसलिए उसे शीघ्र इन दवाइयों की आवश्यकता है।
दुकानदार ने दवा निकालकर दे दी और पैसे माँगे। उस वृद्ध के पास 50 रुपये कम थे। इस पर दुकानदार ने दवा वापस लेकर एक तरफ रख दी। वृद्ध गुहार करता रहा कि वह पैसे बाद में दे जायेगा इस समय ऑपरेशन चल रहा है। मुझे उस पर दया आई और उसके शब्दों में सत्यता का आभास हुआ। दवा लेकर जाना उसके लिए कितना आवश्यक था यह समझ में आ रहा था। उसने कातर दृष्टि से देखा पर किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। वह रुआँसा हो गया। मैंने दुकानदार से कहा कि वह उसको दवा दे दे बाकी के पैसे मैं दे दूंगा। दुकानदार ने उसे दवा दे दी। उसने धन्यवाद सूचक दृष्टि से देखा और चला गया। मैंने अपनी जेब देखी तो उसमें उतने पैसे नहीं थे। अतः मैंने अपने हाथ की घड़ी उतारकर दुकानदार को दी। __ उसने आश्चर्य से मुझे देखा और घड़ी लेकर एक लिफाफे में रख दी। मैंने उससे कहा कि रुपये देकर घड़ी ले जाऊँगा।
मैं घर आ गया और यह घटना पिताजी को सुनाई। वे मेरे इस कृत्य पर बहुत खुश हुए और हर्ष के मारे मुझे गोद में उठा लिया। वे बड़े सहृदय हैं और इस प्रकार की मदद करते रहते हैं। मैंने पिताजी से 1050 रुपये माँगे। उन्होंने तुरन्त ही ग्यारह सौ रुपये मुझे दे दिये और यह भी नहीं पूछा कि किसके लिए रुपये चाहिए।
इस घटना ने मेरे हृदय को झकझोर दिया था कि किसी जरूरत के समय पैसा न होने से किस संकट से गुजरना पड़ सकता है। मैं उसी मेडीकल की दुकान पर गया और पचास रुपये देकर अपनी घड़ी वापस ली।
फिर उस दुकानदार को विश्वास में लेकर एक हजार रुपये उसके पास जमा कराये कि इस प्रकार का परेशान कोई भी व्यक्ति उसकी दुकान पर दवा लेने आये और उसके पास रुपये कम हों तो इन रुपयों में से उसकी पूर्ति कर दे। उसने हर्षित होकर मुझे धन्यवाद दिया। मैंने उसको अपना मोबाइल नम्बर दिया कि रुपये समाप्त हो जायें तो मुझे फोन कर दे। मैं तुरन्त ही पैसे जमा करा दिया करूँगा। इस प्रकार यह छोटी-सी मदद मेरी तरफ से चलती रहेगी।
इस घटना ने मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया।