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जहाँ चाह वहाँ राह।” कहावत को आधार बनाकर
एक कहानी लिखिए।

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जहाँ चाह वहाँ राह।

मनुष्य के सभी कार्य मन से ही संचालित होते हैं। मन में मनन की शक्ति है। मननशीलता के कारण ही मनुष्य को चिन्तनशील प्राणी कहा जाता है। संस्कृत में एक कहावत है- ‘मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयो’ अर्थात् मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। यदि मन न चाहे तो मनुष्य बड़े-से-बड़े बन्धनों की उपेक्षा कर सकता है। मन के चाहने से ही राह बनती है। शंकराचार्य ने कहा है ‘जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत को जीत लिया।’ मन की संकल्पशक्ति से व्यक्ति को राह मिल जाती है अर्थात् वह अपने कार्य में सफल हो जाता है। अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिसमें मन की संकल्पशक्ति के द्वारा व्यक्तियों ने अपनी हार को विजय में परिवर्तित कर दिया। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की जीत का कारण था कि श्रीकृष्ण ने उनके मनोबल को दृढ़ कर दिया था। नचिकेता ने चाहा कि वह मृत्यु पर विजय प्राप्त करे और आत्मा का रहस्य जान सके।

यमराज के द्वारा उसे आत्मा का रहस्य समझाया गया। सावित्री ने अपने मनोबल की चाह से यमराज से अपने मरे हुए पति की आत्मा को वापस प्राप्त कर लिया। महाराणा प्रताप ने अपनी दृढ़ मनःशक्ति से अकबर की सेना से लोहा लिया। तेनसिंह चाहता था कि वह एवरेस्ट की चोटी पर चढ़कर विजय प्राप्त करे। उसने कोशिश की और एवरेस्ट की चोटी पर विजय प्राप्त कर ली।

मेवाड़ का इतिहास वीरता से भरा पड़ा है। वहाँ का क्रूर शासक बनवीर निष्कंटक राज करना चाहता था। उसने यह योजना बनाई कि शहर में एक रात दीपदान और नाच-गान के उत्सव का आयोजन करवाया जाये। उसका लक्ष्य था कि जब जनता इस उत्सव में व्यस्त होगी तब वह महाराणा और मेवाड़ के उत्तराधिकारी बालक उदयसिंह को मार देगा और निष्कंटक राज्य करेगा। शहर में यह उत्सव चल रहा था और लोग आनन्द में व्यस्त थे।

इधर राजमहल में उदयसिंह की धाय ‘पन्ना’ उसकी रक्षा और देखभाल के लिए थी। वह एक देशभक्त क्षत्राणी थी। वह बनवीर की क्रूरता से परिचित थी। पन्ना धाय का बेटा चन्दन उदयसिंह की आयु का ही था और वे दोनों उसी राजमहल में पन्ना की देखरेख में रहते थे। पन्ना को शक था कि दीपदान के उत्सव में बनवीर कुछ काण्ड कर सकता है। तभी एक दासी ने उसे बताया कि बनवीर ने महाराणा का कत्ल कर दिया है और वह उदयसिंह के महल की तरफ आ रहा है। पन्ना प्राणपण से उदयसिंह को बचाना चाहती थी। उसने अपने पुत्र चन्दन को उदयसिंह के राजसी वस्त्र पहनाकर कुँवर उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। तभी कीरत बारी एक बड़ी टोकरी लेकर जूठी पत्तल उठाने के लिए आया। वह भी मेवाड़ को बहुत प्रेम करता था।

पन्ना ने उससे कहा कि वह मेवाड़ के कुँवर की रक्षा करे। तब पन्ना ने सोते हुए उदयसिंह को कीरत की टोकरी में रख दिया और ऊपर से पत्तलों से ढक दिया तथा उसे बताये हुए स्थान पर मिलने को कहा। महल के बाहर अनेक सैनिक तैनात थे, लेकिन कीरत को किसी ने टोका नहीं और वह वहाँ से आसानी से निकल गया। उसके बाद बनवीर हाथ में तलवार लेकर आया और पन्ना को लालच देकर उदयसिंह के बारे में पूछा। पन्ना ने उससे बहुत गुहार लगाई, लेकिन वह नहीं माना। तब पन्ना ने उँगली के इशारे से पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उसका पुत्र चन्दन सो रहा था। बनवीर ने एक ही बार में उस बालक का काम तमाम कर दिया। पन्ना चीत्कार करके वहीं गिर पड़ी। उसका ऐसा बलिदान इतिहास में स्वर्ण-अक्षरों में लिखा गया।

फिर पन्ना उस स्थान पर पहुँची जहाँ कीरत को पहुँचने को कहा था। फिर वह कुँवर उदयसिंह को लेकर पड़ोसी मित्र राज्य में चली गई जहाँ उदयसिंह का पालन हुआ। पन्ना ने सच्चे मन से जो चाहा वह पूरा हुआ। अतः हम कह सकते हैं-

‘जहाँ चाह वहाँ राह।’

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