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निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर, अन्त में दिये गए प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर लिखिए-

विनम्रता तथा सरलता ऐसे गुण हैं जो हमें सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाते हैं। विनम्रता मानव को उसके दिव्य स्वभाव से जोड़ती है। उसे दूसरों के प्रति सहृदय बनाती है। वह सरलता से प्रेरित होकर विपत्ति में पड़े मनुष्यों की मदद करता है। स्वयं अभाव में रहकर भी दूसरों की यथासंभव सहायता करता है। विनम्र व्यक्ति की वाणी बड़ी मधुर होती है। इनके मृदुवचन मन की कटुता को समाप्त करते हैं। वाणी की मिठास के कारण इनके अनेकानेक मित्र बन जाते हैं। लोग इस प्रकार के व्यक्तियों से चाहे जितने भी क्रोध में बात करें, विनम्रता का जादू क्षणभर में क्रोध को शांत कर देता है। अतः इस प्रकार विनम्रता बड़ी सहजता से क्रोध जैसे बड़े मनोविकार पर भी विजय प्राप्त कर लेती है। ये व्यक्ति समाज के लिए मार्गदर्शक बन जाते हैं। इनकी सरलता में जो स्वाभाविकता होती है वह लोगों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करती है। इनका अनुकरण करने का प्रयास सभी करते हैं। जिससे वे भी विनम्रता को अपने जीवन में अपनाकर अपना जीवन सफल बना सकें। ईर्ष्या, द्वेष, घृणा जैसे मनोविकार को पराजित कर पाएं।

अनेक महान विभूतियों का जीवन सरलता तथा विनम्रता का प्रत्यक्ष उदाहरण है। विश्वप्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात शक्ल से अत्यंत ही कुरूप थे। एक दिन अकेले में वे दर्पण हाथ में लेकर अपना मुंह देख रहे थे, तभी उनका प्रिय शिष्य आया और सुकरात को दर्पण देखता पाकर बहुत आश्चर्य में पड़ गया। वह कुछ बोला नहीं मात्र मुस्कुराने लगा। सुकरात ने उससे कहा “शायद तुम सोच रहे हो कि मुझ जैसा असुंदर व्यक्ति आखिर शीशा क्यों देख रहा है?” सुकरात ने उसे समझाया “वत्स शायद तुम नहीं जानते कि मैं यह शीशा क्यों देखता हूँ? मैं कुरूप हूँ। इसलिये प्रतिदिन शीशा देखता हूँ। शीशा देखकर मुझे अपनी कुरूपता का ज्ञान होता है। मैं अपने रूप को जानता हूँ। इसलिए प्रतिदिन प्रयत्न करता हूँ कि ऐसे, अच्छे कार्य करूँ जिनसे मेरी यह कुरूपता ढक जाए।” यह सरलता शिष्य के हृदय को छू गई। उसे गहरा जीवन दर्शन बड़ी आसानी से उसके गुरु ने सिखा दिया।

हमें भी अपने जीवन में इस अच्छे गुण को अपनाना चाहिए। यह एक बहुत बड़ी शक्ति है। इससे हम अपने केन्द्र से जुड़ते हैं। हमारी जीवनदृष्टि विशाल तथा भव्य बनती है। हम मानवता को नई ऊँचाई प्रदान करते हैं। हमारी विनम्रता तथा सरलता एक स्वस्थ समाज को जन्म देती है।

(a) विनम्रता किस प्रकार मनुष्य के स्वभाव को दिव्यता प्रदान करती है?

(b) सरल तथा विनम्र मनुष्यों की वाणी की विशेषता तथा प्रभाव का वर्णन करें।

(c) सामान्य लोग सरल और विनम्र लोगों का अनुसरण करने का प्रयास क्यों करते हैं?

(d) सुकरात की प्रतिदिन शीशा देखने वाली घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिये।

(e) इस गद्यांश से आपको क्या शिक्षा मिलती है?

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(a) विनम्रता सच्चे अर्थ में मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है। वह मनुष्य को उसके दिव्य स्वभाव से जोड़ती है। विनम्र व्यक्ति में ही सहृदयता आती है जिससे वह दूसरे मनुष्यों की सहायता करता है। विनम्र व्यक्ति का कोई शत्रु नहीं होता। वह सबको अपना प्रिय बना लेता है। विनम्रता मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है। विनम्र व्यक्ति ही सबका चहेता होता है।

(b) सरल तथा विनम्र मनुष्यों की वाणी मधुर होती है। वे सामने वाले व्यक्ति के अनुरूप ही सद्व्यवहार करते हैं। सरल व्यक्ति किसी से धोखाधड़ी नहीं करता। विनम्र व्यक्ति सरल हृदय तो होता ही है साथ-साथ वह अपनी मधुर वाणी से सुनने वाले को सन्तोष और सुख प्रदान करता है। उसके मृदुवचन मन की कटुता को समाप्त करते हैं। वाणी की मधुरता के कारण इनके अनेकानेक मित्र बन जाते हैं। विनम्र व्यक्ति की मधुर वाणी क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को भी शान्त कर देती है।

(c) सामान्य लोग सरल और विनम्र लोगों का अनुसरण करने का प्रयास इसलिए करते हैं क्योंकि वे भी उन लोगों की तरह विनम्रता को अपनाकर अपने जीवन को महान और सफल बना सकें। विनम्रता से ईर्ष्या, द्वेष, घृणा जैसे मनोविकार धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं और मनुष्य सद्गुणों की ओर प्रेरित होता है।

(d) विश्वप्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात शक्ल में अत्यन्त कुरूप थे। एक दिन वे दर्पण में अपना मुख देख रहे थे। तभी एक शिष्य वहाँ आया तो उसे आश्चर्य हुआ कि कुरूप होते हुए भी गुरुजी अपना मुख दर्पण में क्यों देख रहे हैं? लेकिन वह कुछ बोला नहीं। गुरु ने उसके मन के विचारों को जानकर उससे कहा कि वत्स मैं कुरूप हूँ इसलिए शीशा देखकर मैं यह प्रयत्न करता हूँ कि ऐसे अच्छे कार्य करूँ जिससे मेरी कुरूपता ढक जाये। संसार में रूप का नहीं बल्कि विद्वता और सत्कर्मों का ही महत्व है। शिष्य की समझ में यह बात आ गई।

(e) इस गद्यांश से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने जीवन में अच्छे गुणों को अपनाना चाहिए। इससे हमारी जीवनदृष्टि विशाल तथा भव्य बनती है। हम मानवता को नई ऊँचाई प्रदान करते हैं। हमारी विनम्रता तथा सरलता एक स्वस्थ समाज को जन्म देती है। हमारे जीवन में सद्गुणों का विकास होता है और सत्पुरुषों का संग मिलता है।

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