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नारी : माँ, बहन, पत्नी तथा बेटी हर रूप में आदरणीय है। विवेचन कीजिए।

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नारी : माँ, बहन, पत्नी तथा बेटी के रूप में

सृष्टि के आदिकाल से ही नारी की महत्ता अक्षुण्ण है। नारी सृजन की पूर्णता है। उसके अभाव में मानवता के विकास की कल्पना असम्भव है। समाज के रचना विधान में नारी के निम्न रूप हैं माँ, प्रेयसी, पत्नी, बहन तथा पुत्री। हम अपने जीवन में नारी के इन विभिन्न रूपों से किसी न किसी तरह सम्बन्ध रखते हैं तथा यह रूप हमारे जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित भी करते हैं।

जब बालक जन्म लेता है तो नारी का ममतामयी माँ का रूप उसका पालन-पोषण करता है। यह नारी का सबसे प्रभावशाली रूप है। माँ को बच्चे की प्रथम शिक्षिका के रूप में जाना जाता है क्योंकि बच्चा सर्वप्रथम संस्कार, विचार या शिक्षा माँ से ही ग्रहण करता है। माँ द्वारा दिये गये संस्कार पर ही यह निर्भर करता है कि उसका भविष्य में कैसा आचरण रहेगा।

नारी का एक और महत्वपूर्ण रूप है— बहन। हमारे सर्वप्रथम मित्र के रूप में हम अपने बहन-भाई को देखते हैं। बाहरी संसार में हमारे मित्र विद्यालय में प्रवेश के बाद बनते हैं, परन्तु बहन एक व्यक्ति की जीवन की सर्वप्रथम मित्र होती है, जो आपकी छोटी-छोटी गलतियों पर सीख देती है, उन गलतियों को माता-पिता से छिपाती है तथा आपको हमेशा गलत राह पर जाने से रोकती है। माँ की तरह आपको डाँटती भी है और एक मित्र की तरह आपकी समस्याओं का समाधान भी करती है। इसलिए हमें कभी भी नारी का अपमान नहीं करना चाहिए तथा हमेशा उसे सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए। नारी का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण रूप को गृहलक्ष्मी, गृहदेवी या गृहणी के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

नारी पत्नी के रूप में भी उतनी ही आदरणीय है जितनी की माँ और बहन के रूप में, पत्नी को जीवनसंगिनी भी कहते हैं अर्थात् जीवन भर साथ देने वाली नारी। एक पत्नी अपने कर्तव्य को पूर्ण करते हुए अपने पति का ही नहीं अपितु पूरे परिवार की सुख-सुविधा तथा उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखती है, मित्र की तरह आपके हर सुख-दुःख में साथ देती है तथा जीवन के हर मोड़ पर हर परेशानी में आपके साथ खड़ी रहती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नारी संसार की उत्पत्ति एवं भरण-पोषण का मुख्य कार्य करती है। पुरुष का साथ वह कभी मातृशक्ति बनकर देती है तो कभी बहन, कभी प्रेयसी के रूप में सहायता करती है, तो कभी पत्नी बनकर। हर परिस्थिति में, हर रूप में वह पुरुष का साथ देती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नारी का प्रत्येक रूप आदरणीय तथा सम्माननीय है।

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