प्रदूषण की समस्या के लिए उत्तरदायी मानव की अति महत्वाकांक्षा
पक्ष : “मानव की अति महत्वाकांक्षा ने ही प्रदूषण जैसी विकराल समस्या को जन्म दिया है।” मैं इस कथन से सहमत हूँ। विज्ञान की प्रगति ने जहाँ समाज को अनेक वरदान दिए हैं, वहीं उनके कुछ अभिशाप भी हैं। उनमें एक है प्रदूषण। इसने कुछ वर्षों में विकराल रूप धारण कर लिया है। प्रगति एवं भौतिकवाद की अंधी दौड़ में पर्यावरण दूषित होकर विनाश की ओर जा रहा है। जब हवा, पानी, मिट्टी, रोशनी, समुद्र, पहाड़, जंगल, रेगिस्तान और नदी आदि की स्वाभाविक अवस्था में दोष उत्पन्न हो जाता है, तब प्रदूषण की स्थिति बन जाती है।
जनसंख्या वृद्धि तथा पदार्थों के दुरुपयोग के कारण प्रदूषित गैसें “. वायुमण्डल में घटित हो जाती हैं और प्राणीमात्र के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। इस प्रदूषण में वे सभी पदार्थ एवं ऊर्जा सम्मिलित हैं जो कि प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। प्रदूषण तीन रूपों में सर्वाधिक व्यापक है- वायु, जल और ध्वनि। वायु प्राणियों का जीवन है। वायु प्रदूषण वाहनों के धुएँ, ज्वालामुखी के फटने, लकड़ी, कोयले और खनिज तेल के जलने, औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाली हानिकारक गैसों के निकलने के कारण होता है।
वायु की भाँति जल भी प्राणी के लिए आवश्यक है। जल के अन्दर अनेक कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें पाई जाती हैं। इनकी असन्तुलित मात्रा, जल को प्रदूषित कर देती है। जल और वायु की भाँति ध्वनि भी वातावरण को प्रदूषित करके श्रवण इन्द्रियों को हानि पहुँचाती है। लाउडस्पीकर, औद्योगिक संस्थानों की मशीनों का शोरगुल तथा विविध प्रकार के संवाहनों की कर्कश आवाज ध्वनि प्रदूषण के कारण हैं।
यद्यपि प्रदूषण जैसी विकराल समस्या मानव की अति महत्वाकांक्षा के कारण ही उत्पन्न हुई है, लेकिन इस समस्या से निजात पाने के लिए हमें और सरकार को शीघ्रातिशीघ्र उपाय करने चाहिए। वृक्षारोपण पर जोर दिया जाये, नगरों और गाँवों की सफाई रखी जाय, पेयजल को प्रदूषण से बचाया जाय, अधिक धुआँ छोड़ने वाले वाहनों पर रोक लगाई जाये तथा नदियों को प्रदूषण से बचाया जाय। केन्द्र सरकार इस समय प्रदूषण के निराकरण के लिए बहुत से उपाय कर रही है।
विपक्ष : “मानव की अति महत्वाकांक्षा ने ही प्रदूषण जैसी विकराल समस्या को जन्म दिया है।” मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ। आधुनिक युग विज्ञान का युग है। विज्ञान ने हमें सुख-सुविधा के अनेक साधन दिए हैं। सृष्टि के समस्त जीव अपने जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए सन्तुलित वातावरण की अपेक्षा करते हैं। हमारे जीवन में जितने भी सुख-सुविधा के साधन हैं, वे हमारी प्रगति में और देश की प्रगति में सहायक हैं। हाँ उनके प्रयोग से थोड़ा-बहुत प्रदूषण अवश्य होता है, लेकिन उसको नजरअन्दाज कर दिया जाता है। तेल से चलने वाले वाहनों से प्रदूषण न हो अतः इसके लिए अधिकतर वाहन सी. एन. जी. से या बिजली द्वारा चलाए जाते हैं। अधिकतर रेलगाड़ियाँ भी बिजली द्वारा संचालित होती हैं।
भौतिकवाद के प्रसार में कारखाने महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इनसे लोगों को रोजगार मिलता है और समाज के लिए अनेक उपयोगी वस्तुएँ उत्पादित होती हैं। सरकार ऐसे प्रयास कर रही है कि उनसे प्रदूषण न हो और वे अपना कचरा नदियों में न डालकर अन्य तरीकों से नष्ट कर दें। नदियों को भी जल प्रदूषण से बचाने के लिए अनेक योजनाएँ सरकार ने बनायी हैं।
वृक्षारोपण से शुद्ध वायु प्राप्त होती है। थोड़े से प्रदूषण के भय से मानव अपनी प्रगति नहीं छोड़ सकता है। जनसंख्या के बढ़ने से उनके आवास और रोजगार के प्रबन्ध भी करने पड़ते हैं। ऐसे उपाय किए जा रहे हैं कि प्रदूषण से लोग कम से कम प्रभावित हों। सरकार का भी प्रयास है कि समाज को प्रदूषण से राहत दिलाई जाय।