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निबन्ध लिखिये:

किसी ऐसे चलचित्र का वर्णन कीजिए जिसे आपने अपने परिवार के साथ देखा। उस चलचित्र के निर्देशन, संगीत निर्देशन, कहानी तथा कहानी से मिलने वाली शिक्षा का वर्णन करते हुए बताएं कि वह चलचित्र आपको किस कारण से बहुत अच्छा लगा।

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चलचित्र का वर्णन

विज्ञान ने आज मनुष्य को मनोरंजन के साधन भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराए हैं, जिनमें सिनेमा प्रमुख है। हमारे परिवार में पाँच लोग हैं-मैं, मम्मी, पापा और दादा-दादी। इस समय हमारे शहर में धार्मिक फिल्म ‘हरिदर्शन’ लगी हुई थी। उसकी बड़ी प्रशंसा हम लोगों ने सुनी। अतः रविवार को हम सभी ने जाने का विचार बनाया।

अगले दिन हम सब अपनी गाड़ी से उस सिनेमा हॉल में पहुँचे जहाँ ‘हरिदर्शन’ नामक चलचित्र लगा हुआ था। तीन बजकर कुछ मिनट पर फिल्म शुरू हई। हरिदर्शन’ फिल्म में भक्त प्रह्लाद की कथा प्रारम्भ हुई। शीर्षक गीत से ही मधुर संगीतमय प्रस्तावना शुरू हुई। संगीत कर्णप्रिय था और हृदय में ईश्वर के प्रति भक्ति भावना जागृत कर रहा था। राक्षसराज हिरण्यकश्यप के यहाँ भक्त प्रह्लाद का जन्म हुआ था।

प्रह्लाद बचपन से ही श्री हरि (भगवान विष्णु) का उपासक था और उसके पिता भगवान विष्णु से शत्रुता मानते थे, क्योंकि भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था। प्रह्लाद के पिता ने उसके ऊपर अनेक बन्धन लगाए, लेकिन प्रह्लाद ने अपनी हठ नहीं छोड़ी। उसने बार-बार अपने पिता को समझाने का प्रयत्न किया कि श्री हरि भगवान हैं, उनसे शत्रुता नहीं मित्रता करो, लेकिन हिरण्यकश्यप स्वयं को ही भगवान मानता था और प्रजा से अपनी पूजा करने के लिए कहता। प्रजाजन भयवश राक्षसराज को ही सिर झुकाते थे। प्रह्लाद ने भी अपनी मधुर वाणी से भक्तिपूर्ण गीत गाकर प्रजाजनों और अपने सहपाठियों में विष्णु भक्ति का संचार कर दिया था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे फिकवा दिया, लेकिन प्रभु ने उसे अपनी गोद में ले लिया और सुरक्षित महल में पहुँचा दिया।

प्रजा को ईश्वर की सत्ता और महत्ता का पता लगा और गुप्त रूप से भगवान को पूजने लगे। प्रह्लाद को मारने के प्रयास में प्रह्लाद की बुआ होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई। उसके पास देव-आशीर्वाद के रूप में एक चादर थी जिसके ओढ़ने से वह आग लगने पर जलेगी नहीं। यह सोचकर प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप ने लकड़ियों में आग लगवा दी। चारों ओर लोग इकट्ठे होकर इस दृश्य को दुःखी होकर देखने लगे। हिरण्यकश्यप बड़ा प्रसन्न था, क्योंकि प्रह्लाद को वह अपना शत्रु मानने लगा था। प्रह्लाद तो प्रसन्नचित्त होकर भगवान का कीर्तन करने लगा। भगवान की ऐसी कृपा हुई कि उस समय ऐसी हवा चली कि होलिका की चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई और होलिका जलने लगी और प्रह्लाद बच गया। आग बुझने पर प्रह्लाद ‘हरि’ का नाम लेता हुआ नीचे उतर आया। लोग खुशी से नाचने गाने लगे। उसी दिन की याद में आज भी होली का उत्सव मनाया जाता है।

अन्त में विष्णु भगवान ने नृसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का अन्त किया। प्रह्लाद ने भगवान से अपने पिता के उद्धार के लिए प्रार्थना की।

इस प्रकार मधुर संगीत और गीत के साथ फिल्म समाप्त हुई। फिल्म रंगीन थी और कुशल निर्देशक द्वारा निर्मित थी। संगीत के निर्देशक ने अपनी संगीतात्मक रचना द्वारा दर्शकों को मोहित ही कर दिया। इस फिल्म को देखकर सभी लोग अति प्रसन्न थे। इस फिल्म से हमें भगवान की भक्ति का उपदेश मिला। हमारे हृदय में श्रद्धा उत्पन्न हुई। सभी को यह फिल्म बहुत अच्छी लगी क्योंकि भक्ति भावना के साथ मनोरंजक भी थी। संगीत कर्णप्रिय था। निर्देशन अति उत्तम था और प्राकृतिक मनोहारी छटा हमारे नेत्रों को सुख दे रही थी। ऐसे चित्र देखने लायक होते हैं जो हमें सद्मार्ग पर चलने का उपदेश देते हैं।

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