आधुनिक युग में विवाह समारोह पर भारी धन खर्च।
आधुनिक युग में विवाह समारोहों पर धन बढ़-चढ़कर खर्च करने की होड़ सी लग गई है। इसे केवल धन का अपव्यय ही कहा जा सकता है। वास्तव में विवाह वर-वधू का पवित्र बन्धन है। इसे धन की तराजू में तोलना न्यायसंगत नहीं है। सच्चाई तो यह है कि जिन लोगों पर अधिक धन है उन्होंने धनहीन व्यक्तियों की कन्याओं के विवाह में बड़ी मुश्किलें उत्पन्न कर दी हैं। विवाहोत्सवों पर धन का अन्धाधुन्ध खर्च दूसरे लोगों में हीनता की भावना भरता है।
अभी पिछले महीने 18 फरवरी को मेरे मित्र की बहन के विवाहोत्सव में जाने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ। संध्या समय आठ बजे मैं अपने माता-पिता के साथ समारोह में पहुँचा, द्वार पर पहुँचते ही मेरी आँखें मारे चकाचौंध के चमत्कृत हो गईं। ऐसी सजावट मैंने पहले देखी न थी। मुझे अनुभव हुआ कि मेरे मित्र के पिता धन कुबेर से कम नहीं। प्रवेश करते ही पता चला कि एक बहुत बड़े मैदान में अनगिनत भोजन के स्टॉल लगे हुए थे। अधिक भोज्य पदार्थों से आकृष्ट लोग अपनी भोजन की थाली में शौक-शौक में बहुत सारा भोजन, मिठाई परोस लेते, और नहीं खाया जाता तो सारा भोजन कूड़ेदान में फेंक देते थे। मैंने देखा कि लोगों ने महँगी से महँगी पोशाकें पहन रखी थीं। ऐसा प्रतीत होता था मानो कोई वेशभूषा प्रतियोगिता आयोजित की गई हो।
अभी तक मैंने देखा था कि वरमाला के लिए एक ‘स्टेज’ बनाई जाती थी, परन्तु यहाँ एक अलग प्रकार की ‘स्टेज’ थी जो गोल-गोल घूम रही थी, उस पर वर व वधू एक दूसरे के गले में जय माला पहना रहे थे। हाँ एक बात भूल गया मित्र की बहन की बारात बड़ी जोर-शोर से दरवाजे पर आयी। ऐसी भयंकर आतिशबाजी और ऊँचे दर्जे का ‘बैण्ड’ देखकर मैं हक्का-बक्का रह गया। दरवाजे पर दूल्हे का टीका भी बड़ा महँगा सौदा था। तत्पश्चात् बारात अन्दर आई। बैण्ड का जितना शोर था, उससे कहीं अधिक शोर डी.जे. में सुनाई देने लगा। मैं सोचने लगा-महँगा बैण्ड, व्यर्थ की आतिशबाजी और डी.जे., क्या एक विवाह इनके बिना नहीं हो सकता? क्या विवाह के लिए इस ताम-झाम की बहुत आवश्यकता होती है। बल्कि इन सबके शोर से भयंकर ध्वनि प्रदूषण होता है। शान्ति भंग होती है। बात यहीं समाप्त नहीं हो गई। जयमाला के पश्चात् वर-वधू एक स्टेज पर बैठ गये। तभी मैंने देखा एक ऑरकैस्ट्रा पार्टी का आगमन हुआ। उन्होंने अपने मधुर संगीत से लोगों को मुग्ध कर दिया। फिर मेरे माता-पिता ने मुझसे खाना खाकर घर चलने की बात कही। हम लोगों ने खाना खाया और घर आ गये।
मैंने घर आकर कपडे बदले और बिस्तर पर लेट गया, पर नींद कोसों दूर थी। मुझे रह-रहकर यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि विवाह जैसे पवित्र बन्धन के लिए इतनी शान-शौकत और धन के अपव्यय की क्या आवश्यकता है। हमारा भारतवर्ष निर्धनों का देश है, जहाँ लोग भूखे मरते हैं। वहीं दूसरी ओर ऐसे विवाहों में टनों भोजन कूड़ेदानों में फेंका जा रहा है। आतिशबाजी, बैण्ड, डी.जे. और आकर्षक सजावट इन सब पर धन खर्च करने की क्या आवश्यकता है? विवाह में मंत्रों की, आशीर्वादों और बधाइयों की आवश्यकता होती है। विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों की अपेक्षा यदि सीमित संख्या में इन्हें बनवाया जाये तो शायद भोजन की बर्बादी को रोका जा सकता है। हम यदि जीवन में सादगी को अपना सकें तो छोटे नहीं हो जायेंगे, बल्कि महान् बन जायेंगे। इसी धन में से कुछ बचा कर किसी गरीब की कन्या का विवाह कर दें तो शायद ईश्वर के परमाशीष को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि विवाहोत्सवों में हम उतना ही खर्च करें जितना आवश्यक है।