व्यक्ति की उन्नति में संस्कारों, शिक्षा एवं सामाजिक परिवेश का योगदान।
निःसन्देह यह बात नितान्त सत्य है कि व्यक्ति की उन्नति में संस्कारों, शिक्षा और सामाजिक परिवेश का योगदान होता है। संस्कारवान व्यक्ति सदाचारी एवं चरित्रवान होता है। एक व्यक्ति के जीवन में चरित्रबल का बहुत महत्त्व होता है। चरित्रहीन व्यक्ति न तो अपना, न समाज का और न ही देश का कभी कल्याण कर सकता है। इसीलिए हमारे धार्मिक शास्त्रों में भी संस्कारों की गरिमा का वर्णन किया गया है। मनुष्य के जन्म के प्रारम्भ से लेकर मृत्यु तक हमारे धार्मिक शास्त्रों में सोलह संस्कारों का वर्णन किया जाता है। जिन्हें मन्त्रों के द्वारा अभिमंत्रित किया जाता है। संस्कारों में पला हुआ व्यक्ति कभी दुराचारी नहीं हो सकता वह ईश्वर में आस्था रखने वाला महान परोपकारी और सबका कल्याण करने वाला होता है। वह संसार के सभी प्राणियों को ईश्वर की सन्तान मानता है। इस आधार पर वह समाज का कल्याण करता हुआ आत्मिक उन्नति करता है।
संस्कार के साथ-साथ मनुष्य का शिक्षित होना सोने में सुहागे का काम करता है। शिक्षा प्राप्त करके व्यक्ति विवेकशील बनता है। वह नीर-झीर विवेकी हंस के समान सद्कार्यों को करके अपने परिवार, समाज एवं देश का कल्याण करता है। अनुकूल सामाजिक परिवेश मानव के पोषण एवं संवर्द्धन में अहम भूमिका निभाता है। संस्कार व्यक्ति को सदाचारी बनाते हैं। आचरण की पवित्रता के महत्त्व एवं प्रभाव को प्रदर्शित करने वाले ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे जिनसे मनुष्य का सिर्फ अपना ही उत्थान नहीं हुआ है, बल्कि उसने अपने समाज व देश की भी उन्नति की है। उनके इन प्रयासों के परिणामस्वरूप समाज में उनका मस्तक गर्व से ऊँचा हो गया।
जब-जब ऐसे व्यक्ति के जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं। वह अपने ज्ञान के माध्यम से उनसे संघर्ष करने की क्षमता प्राप्त करता है। धैर्य, सहनशक्ति, आत्मबल तथा दृढ़ इच्छाशक्ति उसकी सारी मुश्किलों को आसान कर देती है। साथ ही समाज का सहयोग उसे मजबूत सम्बल प्रदान करता है। इस प्रकार वह अपने जीवन को सार्थक बनाते हुए अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल होता है। इससे उसकी आत्मिक, आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति होती है। समाज में उसे सम्मान प्राप्त होता है। लोग उसकी पूजा करने लगते हैं। वह दूसरों के लिए आदर्श बन जाता है। ऐसा व्यक्ति कभी अपने समय को व्यर्थ नहीं गँवाता। अपनी कड़ी मेहनत, लगन व ईमानदारी से अपने जीवन को तो सँवारता ही है साथ ही दूसरों का भी उद्धार करता है। वह अपनी शिक्षा के माध्यम से एक शिक्षित समाज का निर्माण करता है। लोगों में परस्पर प्रेम, सद्भावना एवं परोपकार का भाव जाग्रत करता है।
हमारे महापुरुषों ने अपने सदाचारी जीवन से अपना ही नहीं वरन् समाज व देश का कल्याण भी किया। स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द सरस्वती, राजा राममोहन राय, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, महात्मा बुद्ध, प्रभु यीशु, मदर टेरेसा आदि ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने न केवल समाज का उद्धार किया बल्कि समाज की अनेक कुरीतियों को भी समाप्त किया। सदैव सक्षम व्यक्ति ही इस प्रकार के कार्यों को पूर्ण करने में समर्थ होते हैं। सक्षम वे होते हैं जो संस्कारी एवं शिक्षित होते हैं। ऐसे लोग अपने सद्गुणों से सामाजिक परिवेश को स्वानुकूल बना लेते हैं। इस प्रकार वे अपनी तो उन्नति करते ही हैं, दूसरों का भी उत्कर्ष करने का श्रेय प्राप्त करते हैं।