“उधार लेना, देना दोनों ही गलत हैं।”
मैं इस विषय के पक्ष में अपने विचार व्यक्त करना चाहूँगी। एक कहावत है
“तेते पाँव पसारिये, जेती लाँबी सौरि”
अर्थात् अपने पैर उतने ही लम्बे फैलाइये जितनी लम्बी आपकी रजाई है। उससे बाहर पाँव पसारने पर मनुष्य को ठण्ड में सिकुड़ना पड़ता है। यही बात उधार लेने के सन्दर्भ में भी कही जा सकती है। उधार लेना बुरी आदत है। जो लोग उधार लेते है, उन्हें इसकी लत पड़ जाती है। छोटी-छोटी आवश्यकताओं की पर्ति के लिए भी वे उधार लेते रहते हैं। ऐसा करके वे अपने स्वाभिमान को गिरवी रख देते हैं। समयावधि में उस उधार की भरपाई यदि वे नहीं कर पाते तो उन्हें अपशब्द सुनने पड़ते हैं। निगाहें नीची करके चलना पड़ता है। रातों की नींद उड़ जाती है। गलत कार्य करने पड़ते हैं। यदि वही उधार उन्होंने ब्याज पर लिया है तब तो कहने ही क्या? घर बिकने की नौबत आ जाती है। हर समय घर पर तगादे वाले खड़े रहते हैं। लोगों के बीच बदनामी होती है और लोग मजाक उड़ाते हैं। इन सब बातों को यदि ध्यान में रखा जाये तो किसी भले इन्सान को उधार नहीं लेना चाहिए। हाँ कभी-कभी इन्सान इतना विवश हो जाता है कि उसको उधार लेना आवश्यक हो जाता है, तब सोचसमझ कर एवं वापस करने की सामर्थ्य का ध्यान रखते हुए ही उधार लेना चाहिए। ऐसा करने पर इन्सान का सम्मान बना रहता है, परन्तु इसे आदत नहीं बनानी चाहिए।
उधार देना भी मनुष्य की गलत आदत है। ऐसा व्यक्ति अकारण ही अपने शत्रु उत्पन्न करता है। बुद्धिमान लोग कहते हैं कि यदि उधार किसी विवशता के कारण देना पड़ रहा है तो देकर भूल जाओ उसका कारण यह है कि मनुष्य जरूरत पड़ने पर रो-रोकर पैसा उधार माँगता है, परन्तु लौटाने के लिए उसकी नजर बदल जाती है। वह लडाई-झगडे पर उतारू हो जाता है। आजकल ये बातें बहत सुनाई देती हैं कि पैसा न वापस कर पाने के कारण उस व्यक्ति की हत्या कर डाली। इसलिए एक बार पैसा उधार देना, दुश्मनी मोल लेना है। पैसा उधार देना प्रेम को समाप्त करना है। उधार देने वाले व्यक्ति को जब अपनी मेहनत की कमाई वापस नहीं मिलती तो वह गलत हथकण्डे अपनाता है। इससे दोनों के बीच तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अत: उधार लेना जितना खतरनाक है। उतना खतरनाक उधार देना भी है।