“चढ़ते सूरज को सलाम”
उत्कर्ष सदैव पूजनीय और आदरणीय होता है। प्रात:काल जब सूर्य उदित होता है। हर व्यक्ति सूर्य के दर्शन कर ॐ सूर्याय नमः कहता है, क्योंकि यह सूर्य का उत्कर्ष काल है। संध्या समय ढलते सूर्य को कोई नमस्कार नहीं करता। यह संसार का शाश्वत नियम ही है कि यहाँ चमत्कार को नमस्कार किया जाता है।
इस उक्ति से सम्बन्धित एक कहानी अचानक मेरे मस्तिष्क में आयी। मेरी कॉलोनी में एक वैश्य परिवार रहता था। उनके चार पुत्र व एक पुत्री थी। अच्छे समृद्ध व सम्पन्न व्यक्ति थे। सबके साथ उनका सद्व्यवहार था। अचानक उनका व्यापार ठप्प हो गया। उन्होंने बहुत सँभालने की कोशिश की, किन्तु कोई उपाय नहीं निकला। परिवार के सभी सदस्य इस अचानक आयी आपदा से चिन्तित हो गये, परन्तु सेठ जी हिम्मत हारने वालों में से नहीं थे। उनके सभी पुत्र बहुत आज्ञाकारी थे साथ ही उनकी स्त्री बहुत संस्कारी एवं अन्य सदस्य भी अच्छे थे। सेठजी ने अपने दो बड़े पुत्रों को विदेश में कारोबार के लिए भेजा। दो छोटों को अपने स्थानीय कारोबार में ही मेहनत से कार्य पर लगा दिया। स्वयं भी किसी दूसरे व्यक्ति के यहाँ काम पर लग गये। जब लोगों को उनकी इस खराब हालत का पता चला तो वे सब उन्हें खराब निगाहों से देखने लगे, परन्तु सेठजी जानते थे कि यह सब दिनों का फेर है। मनुष्य के जीवन में सुख व दु:ख छाया माया की तरह आते ही रहते हैं, परन्तु उसे सुख में उछलना नहीं चाहिए और दुःख में विचलित नहीं होना चाहिए। उसे हर परिस्थिति में धीरज रखना चाहिए।
‘सेठ जी ने इस गरीबी को प्रभु का आशीर्वाद समझा और आनन्दपूर्वक परिश्रम में लग गये। भोजन मिलता तब भी प्रसन्न और नहीं मिलता तब भी प्रसन्न, परन्तु उनके मित्र और सम्बन्धियों के व्यवहार से वह बहुत दुःखी होते थे।
दिन बदले, परिस्थितियाँ बदलों। दोनों बड़े बेटों को व्यापार में लाभ हुआ वे बहुत सारा धन लेकर अपने पिताजी के पास आये। पिताजी ने उस धन को लेकर तिजोरी में रख दिया। धीरे-धीरे छोटे बेटों की भी उन्नति होने लगी। उनका कारोबार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा। फलस्वरूप पुन: उनका परिवार सम्पन्नता की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। उनके रहन-सहन, खान-पान, वेष-भूषा सबमें अन्तर दिखाई देने लगा।
अब आस-पास के लोग मित्रगण व सम्बन्धियों को भी अपनी भूल का अहसास होने लगा। अब वे सब सेठजी से मिलने के अवसर ढूँढ़ने लगे। सेठजी उनकी अवहेलना करते तब भी वे उनसे मिलने का प्रयास करते, क्योंकि अब उन्हें पता चला गया था कि सेठजी अब सम्पन्न हो गये हैं। सेठजी स्वभाव से सरल, सहनशील एवं बहुत ही धैर्यवान थे। रास्ते में लोग उन्हें सलाम, प्रणाम, राम– राम और नमस्कार करते, परन्तु सेठजी का एक ही उत्तर होता था-“ठीक है भैया कह देंगे। जब कई दिन इसी बात को बीत गये तब उनके एक मित्र ने उनसे पछा कि प्रणाम कहने पर तम ऐसा क्यों कहते हो कि “भैया कह देंगे।” सेठजी की इस मित्र से बहुत आत्मीयता थी, क्योंकि संकट की घड़ी में भी वह उनके साथ था। सेठजी ने बड़ी सरलता से उत्तर दिया भैया ! ये सब मुझे नहीं मेरी सम्पन्नता को प्रणाम कर रहे हैं। इसीलिए मैं उनसे कहता हूँ कि मैं तुम्हारी राम-राम नमस्ते, प्रणाम और सलाम सब तिजोरी से जाकर कह दूँगा। मित्र ! यह संसार बड़ा स्वार्थी है यह हमेशा चढ़ते सूरज को ही सलाम करता है।