संयुक्त परिवार का लाभ।
परिवार न केवल मानव-जीवन के प्रवाह को जारी रखने वाला अखण्ड स्रोत है, बल्कि मानवोचित गुणों की प्रथम पाठशाला भी है। परिवार को “सामाजिक जीवन की अमर पाठशाला”, “सामाजिक गुणों का पालना” तथा “सब सामाजिक गुणों” का विद्यालय आदि कहा गया है इस प्रकार परिवार मानव समाज की आधारभूत एवं सार्वभौमिक सामाजिक संरचना है।
भारत में परिवार की प्रकृति आदिकाल से ही संयुक्त रही है। इसके अन्तर्गत समस्त कुटुम्बीजन सम्मिलित रूप से एक ही मकान में निवास करते थे वहाँ पर एक पितृसत्ता होती थी। बड़े-बूढों का सम्मान होता था। उस परिवेश में प्रेम, सहयोग, सहानुभूति एवं परस्पर त्याग की भावना पूरे कुटुम्ब को एक सूत्र में बाँधे रखती थी। परिवार की पुष्पवाटिका बच्चों, प्रौढ़ों और बूढ़ों से सदैव दमकती रहती थी।
ऐसे ही संयुक्त परिवार का जीता जागता उदाहरण मेरी ही कॉलोनी में मुझे देखने को मिला, जिसे देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता होती है।
मेरे घर के सामने व्यवसायी परिवार रहता है। मेरे विचार से यह एक सुदृढ़, सन्तुष्ट व व्यवस्थित संयुक्त परिवार है। मुख्य रूप से इनके स्तम्भ समान माता-पिता बड़े बुद्धिमान, समदर्शी एवं समान व्यवहार करने वाले व्यक्ति हैं। उनके तीन पुत्र हैं। कोई पुत्री नहीं है। उनका व्यवसाय बहत बडा है। तीनों पत्रों का उसमें सबल सहयोग है। सबसे बड़े पुत्र के तीन पुत्र हैं। तीनों विवाहित हैं। दूसरे पुत्र के दो पुत्र एक पुत्री है। बड़े पुत्र का विवाह हो चुका है। तीसरे पुत्र के तीन पुत्रियाँ और एक पुत्र है। बड़े पुत्र के तीनों पुत्रों के पास एकएक बेटा व एक के पास एक बेटी है। कहने का अभिप्राय यह है कि उनकी तीसरी पीढ़ी के भी चार बच्चे हो चुके हैं। सेठजी का प्रबन्ध इतना सही है कि कभी किसी के चेहरे पर मनमुटाव की झलक दिखाई नहीं पड़ती।
परस्पर भाइयों में, नाती-पोतों में अपरिमित प्यार दिखाई देता है। घर में कोई उत्सव हो या विवाह आदि विशेष तौर पर घर की सभी स्त्रियाँ सजी-सँवरी और खिली-खिली दिखाई देती हैं। आये दिन उनके यहाँ धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। सबमें एक अलग ही जोश दिखाई देता है। बड़ों के प्रति सम्मान की भावना छोटों के प्रति प्यार यहाँ बरसता दिखाई देता है। महाकवि तुलसीदास ने लिखा है”जहाँ सुमति तहँ संपत नाना, जहाँ कुमति तहाँ विपति निदाना” . इसका जीता जागता उदाहरण इस परिवार में देखने को मिलता है। इस परिवार के बड़े लोग हरेक की इच्छाओं का ध्यान रखते हैं।
सबको सब कुछ समान रूप से मिलता है, यही कारण है कि किसी में ईर्ष्या या भेदभाव नहीं है। परिवार के मुखिया स्वरूप माता-पिता ने सभी बच्चों को ऐसे संस्कार प्रदान किये हैं कि उनमें एक दूसरे के प्रति केवल आत्मीयता ही दिखाई देती है। घर में लगभग इक्कीस सदस्य हैं, लेकिन आपस में प्यार देखते ही बनता है। यही कारण है कि उनके घर में सदैव सुख-समृद्धि बनी रहती है। सुख का आनन्द भी सब मिलकर लेते हैं और दुःख को भी सब मिलकर बाँटते हैं… बस संयुक्त परिवार का यही लाभ होता है।