पशु पर्व में हटे -कटे पशुओं के दिखावे के अलावा पशुओं से युवकों की शक्ति परखने की प्रतियोगितायें भी होती थी। तताँरा का मन इन में से किसी भी कार्यक्रम में नहीं लग रहा था। उसकी परेशान आँखे तो वामीरों को ढूंढने में व्यस्त थी।जब तताँरा ने वामीरो को देखा तो उसकी आँखें नमी से भरी थी और उसके होंठ डर कर काँप रहे थे। तताँरा को देखते ही वामीरो फुट -फुटकर रोने लगी। तताँरा इस तरह वामीरो को रोता देखकर भावुक हो गया। वामीरो के रोने की आवाज सुनकर वामीरो की माँ वहाँ आ गई और दोनों को एक साथ देख कर गुस्सा हो गई। उसने तताँरा को कई तरह से अपमानित करना शुरू कर दिया। गाँव वाले भी तताँरा के विरोध में बोलने लगे। लोगो की बातों को सुनना अब तताँरा के लिए सहन कर पाना मुश्किल हो रहा था।अचानक उसका हाथ उसकी तलवार पर आकर टिक गया। गुस्से से उसने तलवार निकली। उसने अपने गुस्से को शांत करने के लिए अपनी पूरी शक्ति से तलवार को धरती में गाड़ दिया और अपनी पूरी ताकत से उसे खींचने लगा ।जो लकीर तताँरा ने खींची थी उस लकीर की सीध में धरती फटती जा रही थी।तताँरा द्वीप के एक ओर था और वामीरो दूसरी ओर। तताँरा को जैसे ही होश आया ,उसने देखा कि द्वीप के जिस ओर वह है वो टुकड़ा समुद्र में धँसने लगा है। अब वह तड़पने लगा, वह छलांग लगा कर दूसरी ओर जाना चाहता था परन्तु उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और वह निचे की ओर फिसलने लगा।वह उस कटे हुए द्वीप के उस आखरी भू -भाग पर बेहोश पड़ा हुआ था जो संयोगवश उस द्वीप से जुड़ा हुआ था। बहता हुआ तताँरा कहा गया ,उसके बाद उसका क्या हुआ ये कोई नहीं जान सका। इधर वामीरो तताँरा से अलग होने के कारण पागल हो गई। वह हर समय बस तताँरा को ही खोजती रहती और उसी जगह आकर घंटों बैठी रहती जहाँ वो तताँरा से मिलने आया करती थी। उसने खाना -पीना छोड़ दिया था। परिवार से वह कही अलग हो गई। लोगो ने उसे ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की परन्तु अब वामीरो का भी कोई सुराग नहीं मिला कि वह कहा गई।