आकारिकी लक्षण बाहर से दिखते हैं अत: ये लक्षण प्रारूपी(फीनोटाई पिक) अनुकूलन होते हैं। अत: ऐसा बाहरी लक्षण जिसके कारण वह जीव वहाँ के पर्यावरण में जीवित रहने में सक्षम होता है, उन्हें लक्षिण प्रारूप अनुकूलन (Phenotypic adaptation) कहते हैं। उदाहरण- मरुस्थली पादप जैसे नागफनी, कैक्टस में पत्तियों का अभाव होता है क्योंकि वे काँटों में रूपान्तरित होकर वाष्पोत्सर्जन को न्यून (कम) कर देती है। मरु स्थल में जल की कमी होती है अत: ये जल की कम से कम हानि करते हैं। पत्तियों का कार्य हरे चपटे तनों के द्वारा होता है। यहाँ बाहर से देखें तो काँटे पत्तियों का रूपान्तरण है तथा तना चपटा व हरा पत्ती सदृश्य होता है।