प्राकृतिक शत्रुओं, शिकारी या परजीवियों का उपयोग कर कीट पीड़कों की समष्टि वृद्धि में नियंत्रण रखना ही जैव नियंत्रण विधि का सिद्धांत है।
सामान्यत: कृषि में पीड़क नाशियों के नियंत्रण हेतु विभिन्न प्रकार के रसायन उपयोग में लाये जाते हैं। इसके स्थान पर इन पीड़कनाशियों का नियंत्रण जैव विधियों से किया जाता है। परभक्षण में एक जीव समूल रूप से दूसरे जीव का भक्षण कर लेता है अर्थात् एक जीव को लाभ तथा दूसरे जीव को हानि होती है। यदि प्रकृति में परभक्षी नहीं होते तो शिकार जातियों का समष्टि (Population) जनसंख्या घनत्व बहुत ज्यादा हो जाता और परितंत्र में अस्थिरता आ जाती। जब भी किसी भौगोलिक क्षेत्र में कुछ विदेशज जातियाँ लाई जाती है तो वे आक्रामक हो जाती हैं व तेजी से फैलने लगती है क्योंकि आक्रांत भूमि में उसके परभक्षी नहीं होते हैं।