पर्यावरण प्रदूषण से आशय पर्यावरण के किसी एक या सभी भागों का दूषित होना है। यहाँ दूषित होने से आशय पर्यावरण के प्रकृति प्रदत्त रूप में इस प्रकार परिवर्तन होता है, जोकि मानव जीवन के लिए प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न करे। पर्यावरण प्रदूषण जल, मृदा, वायु तथा ध्वनि के रूप में हो सकता है। पर्यावरण के इन कारकों के आधार पर ही पर्यावरण प्रदूषण के चार रूप हैं।
⦁ वायु प्रदूषण
⦁ जल प्रदूषण
⦁ मृदा प्रदूषण
⦁ ध्वनि प्रदूषण
वायु प्रदूषण
कुछ बाहरी कारकों के समावेश से किसी स्थान की वायु में गैसों के प्राकृतिक अनुपात में होने वाले परिवर्तन को वायु प्रदूषण कहा जाता है। वायु प्रदूषण मुख्य रूप से धूलकण, धुआँ, कार्बन-कण, सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), शीशा, कैडमियम आदि घातक पदार्थों के वायु में मिलने से होता है। ये सब उद्योग, परिवहन के साधनों, घरेलू भौतिक साधनों आदि के माध्यम से वायुमण्डल में मिलते हैं, जिससे वायु प्रदूषित हो जाती है।
जल प्रदूषण
जल के मुख्य स्रोतों में अशुद्धियों तथा हानिकारक तत्त्वों का समाविष्ट हो जाना ही जल प्रदूषण है। जल में जैव-रासायनिक पदार्थों तथा विषैले रसायनों, सीसा, कैडमियम, बेरियम, पारा, फॉस्फेट आदि की मात्रा बढ़ने पर जल प्रदूषित हो जाता है। इन प्रदूषकों के कारण जल अपनी उपयोगिता खो देता है तथा जीवन के लिए घातक हो जाता है। जल प्रदूषण दो प्रकार का होता है-दृश्य प्रदूषण एवं अदृश्य प्रदूषण।।
मृदा प्रदूषण
मृदा प्रदूषण, पर्यावरण प्रदूषण का एक अन्य रूप है। मिट्टी में पेड़-पौधों के लिए हानिकारक तत्त्वों का समावेश हो जाना ही मृदा प्रदूषण है।
मृदा प्रदूषण के कारण
मृदा प्रदूषण के निम्नलिखित कारण होते हैं।
⦁ मृदा प्रदूषण की दर को बढ़ाने में जल तथा वायु प्रदूषण का भी योगदान होता है।
⦁ वायु में उपस्थित विषैली गैसे, वर्षा के जल में घुलकर भूमि पर पहुँचती हैं, जिससे मृदा प्रदूषित होती है।
⦁ औद्योगिक संस्थानों से विसर्जित प्रदूषित जल तथा घरेलू अपमार्जकों आदि से युक्त जल भी मृदा प्रदूषण का प्रमुख कारण है।
⦁ इसके अतिरिक्त रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, फफूदीनाशकों आदि का अनियन्त्रित उपयोग भी मृदा को प्रदूषित करता है।
मृदा प्रदूषण की रोकथाम के उपाय
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि मृदा प्रदूषण, वायु एवं जल प्रदूषण से अन्तर्सम्बन्धित है। अतः इसकी रोकथाम के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। आवश्यक है कि कृषि क्षेत्र में सतत् विकास को दृष्टि में रखते हुए, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों आदि का संयमित प्रयोग किया जाए।
ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण प्रदूषण का ही एक रूप है। पर्यावरण में अनावश्यक तथा अधिक शोर का व्याप्त होना ही ध्वनि प्रदूषण है। वर्तमान युग में शोर अर्थात् ध्वनि प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि हुई है, इसको प्रतिकूल प्रभाव हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। ध्वनि प्रदूषण की माप करने के लिए ध्वनि की तीव्रता की माप की जाती है। इसकी माप की इकाई को डेसीबल कहते हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि 85 डेसीबल से अधिक तीव्रता वाली ध्वनि का पर्यावरण में व्याप्त होना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अतः पर्यावरण में 85 डेसीबल से अधिक तीव्रता वाली ध्वनियों का व्याप्त होना ध्वनि प्रदूषण है।
ध्वनि प्रदूषण के कारण
ध्वनि प्रदूषण के सामान्यत: दो कारण हैं
⦁ प्राकृतिक
⦁ कृत्रिम
प्राकृतिक कारण
⦁ बादलों की गड़गड़ाहट
⦁ बिजली की कड़के
⦁ भूकम्प एवं ज्वालामुखी विस्फोट से उत्पन्न ध्वनि
⦁ आँधी, तूफान आदि से उत्पन्न शोर।
कृत्रिम अथवा मानवीय कारण
ध्वनि प्रदूषण फैलाने में मुख्यतः कृत्रिम कारकों का ही महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
1.परिवहन के साधनों से उत्पन्न शोर जैसे बस, ट्रक, मोटरसाइकिल, हवाई | जहाज, पानी का जहाज आदि से उत्पन्न ध्वनियाँ ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाती हैं।
2.उद्योगों, फैक्टरियों आदि का शोर फैक्टरियों, औद्योगिक संस्थानों आदि की विशालकाय मशीनें, कलपुर्जे, इंजन आदि भयंकर शोर उत्पन्न करके ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं।
3.विभिन्न प्रकार के विस्फोट एवं सैनिक अभ्यास पहाड़ों को काटने की गतिविधियाँ एवं युद्ध क्षेत्र में गोला-बारूद आदि के प्रयोग से ध्वनि प्रदूषण फैलता है।
4.मनोरंजन के साधन टीवी, म्यूजिक सिस्टम आदि मनोरंजन के साधन भी ध्वनि | प्रदूषण फैलाते हैं।
5.विभिन्न लड़ाकू एवं अन्तरिक्ष यान वायुयान, सुपरसोनिक विमान वे अन्तरिक्ष यान आदि ध्वनि प्रदूषण में योगदान करते हैं।
6.उत्सवों का आयोजन विभिन्न उत्सवों आदि में प्रयुक्त लाउडस्पीकर, म्यूजिक सिस्टम, डी. जे. आदि द्वारा ध्वनि प्रदूषण फैलाया जाता है।
शोर या ध्वनि प्रदूषण पर नियन्त्रण/उपचार
ध्वनि प्रदूषण नियन्त्रित करने के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं।
⦁ उद्योगों के शोर के नियन्त्रण के लिए कारखाने आदि में शोर अवरोधक दीवारें तथा मशीनों के चारों ओर मफलरों का कवच लगाना चाहिए।
⦁ कल-कारखानों को शहर से दूर स्थापित करना चाहिए।
⦁ मोटर वाहनों में बहुध्वनि वाले हॉर्न बजाने पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।
⦁ उद्योगों में श्रमिकों को कर्ण प्लग या कर्ण बन्धकों का प्रयोग अनिवार्य किया | जाना चाहिए।
⦁ आवास गृहों, पुस्तकालयों, चिकित्सालयों, कार्यालयों आदि में उचित निर्माण सामग्री तथा उपयुक्त बनावट द्वारा शोर से बचाव किया जा सकता है।
⦁ अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर अधिकतम शोर सीमा का निर्धारण करना चाहिए। ध्वनिरोधक सड़कों एवं भवनों को निर्माण करना अन्य उपाय हैं !
उपरोक्त उपायों द्वारा ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।