प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जंग (Jung) ने व्यक्तित्व के वर्गीकरण के लिए सामाजिकता को आधार स्वरूप स्वीकार किया तथा इस आधार पर मानवीय व्यक्तित्व के दो मुख्य वर्ग निर्धारित किये, जिन्हें क्रमश: बहिर्मुखी व्यक्तित्व तथा अन्तर्मुखी व्यक्तित्व कहा गया। व्यक्तित्व के इन दोनों वर्गों या प्रकारों का सामान्य परिचय निम्नलिखित है–
(A) बहिर्मुखी (Extrovert)- बहिर्मुखी व्यक्तियों की रुचि बाह्य जगत् में होती है। इनमें सामाजिकता की प्रबल भावना होती है और ये सामाजिक कार्यों में लगे रहते हैं। इनकी अन्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
⦁ बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले लोगों का ध्यान सदा बाह्य समाज की ओर लगा रहता है। यही कारण है कि इनका आन्तरिक जीवन कष्टमय होता है।
⦁ ऐसे व्यक्तियों में कार्य करने की दृढ़ इच्छा होती है और ये वीरता के कार्यों में अधिक रुचि रखते हैं।
⦁ इनमें समाज के लोगों से शीघ्र मेल-जोल बढ़ा लेने की प्रवृत्ति होती है। समाज की दशा पर विचार करना इन्हें भाता है तथा ये उसमें सुधार लाने के लिए भी प्रवृत्त होते हैं।
⦁ अपनी अस्वस्थता एवं पीड़ा की ये बहुत कम परवाह करते। हैं।
⦁ ये चिन्तामुक्त होते हैं।
⦁ ये आक्रामक, अहंवादी तथा अनियन्त्रित प्रकृति के होते हैं।
⦁ ये प्रॉय: प्राचीन विचारधारा के पोषक होते हैं।
⦁ ये धारा प्रवाह बोलने वाले तथा मित्रवत् व्यवहार करने वाले होते हैं।
⦁ ये शान्त एवं आशावादी होते हैं।
⦁ परिस्थिति और आवश्यकताओं के अनुसार ये स्वयं को व्यवस्थित कर लेते हैं।
⦁ ऐसे व्यक्ति शासन करने तथा नेतृत्व करने की इच्छा रखते हैं। ये जल्दी से घबराते भी नहीं हैं।
⦁ बहिर्मुखी व्यक्तित्व के लोगों में अधिकतर समाज-सुधारक, राजनीतिक नेता, शासक व प्रबन्धक, खिलाड़ी, व्यापारी और अभिनेता सम्मिलित होते हैं।
⦁ ये ऐसे भावप्रधान व्यक्ति होते हैं जो जल्दी ही भावनाओं के वशीभूत हो जाते हैं। इनमें स्त्रियाँ मुख्य स्थान रखती हैं और ऐसे पुरुष भी जो दूसरों का दु:ख-दर्द देखकर जल्दी ही पिघल जाते हैं।
(B) अन्तर्मुखी (Introvert)- अन्तर्मुखी व्यक्तियों की रुचि स्वयं में होती है। इनकी सामाजिक कार्यों में रुचि न के बराबर होती है। स्वयं अपने तक ही सीमित रहने वाले ऐसे लोग संकोची तथा एकान्तप्रिय होते हैं। इनकी अन्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
⦁ अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के लोग कम बोलने वाले, लज्जाशील तथा पुस्तक-पत्रिकाओं को पढ़ने में गहरी रुचि रखते हैं।
⦁ ये चिन्तनशील तथा चिन्ताओं से ग्रस्त रहते हैं।
⦁ सन्देही प्रवृत्ति के कारण ये अपने कार्य में अत्यन्त सावधान रहते हैं।
⦁ ये अधिक लोकप्रिय नहीं होते।
⦁ इनका व्यवहार आज्ञाकारी होता है लेकिन ये जल्दी ही घबरा जाते हैं।
⦁ ये आत्मकेन्द्रित और एकान्तप्रिय होते हैं।
⦁ इनमें लचीलापन नहीं पाया जाता और क्रोध करने वाले होते हैं।
⦁ ये चुपचाप रहते हैं।
⦁ ये अच्छे लेखक तो होते हैं किन्तु अच्छे वक्ता नहीं होते।
⦁ समाज से दूर रहकर धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक आदि समस्याओं के विषय में ये चिन्तनरत तो रहते हैं लेकिन समाज में सामने आकर व्यावहारिक कार्य नहीं कर पाते।
बहिर्मुखी तथा अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के व्यक्तियों की विभिन्न विशेषताओं का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति समाज में शायद ही कुछ हों जिन्हें विशुद्धतः बहिर्मुखी या अन्तर्मुखी का नाम दिया जा सके। अधिकांश व्यक्तियों का व्यक्तित्व ‘मिश्रित प्रकार का होता है जिसमें बहिर्मुखी तथा अन्तर्मुखी दोनों व्यक्तित्वों की विशेषताएँ निहित होती हैं। ऐसे व्यक्तित्व को उभयमुखी व्यक्तित्व अथवा विकासोन्मुख व्यक्तित्व (Ambivert Personality) की संज्ञा प्रदान की जाती है।