गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने वाला व्यक्ति प्रायः प्रतिबल (Stress) का शिकार हो जाता है। प्रतिबल मुख्य रूप से समायोजनात्मक प्रक्रियाओं से सम्बन्धित होता है। प्रबल प्रतिबल की स्थिति में सम्बन्धित व्यक्ति को अपने व्यवहार में अनेक प्रकार के समायोजन करने पड़ते हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि यदि प्रतिबल सामान्य स्तर का है तो वह व्यक्तित्व के विकास में सहायक सिद्ध होता है, परन्तु निरन्तर प्रबल तथा गम्भीर प्रतिबल व्यक्तित्व के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि व्यक्ति को प्रबल प्रतिबल से बचने के उपाय करने चाहिए। इनके लिए प्रायः दो प्रकार की प्रतिक्रियाएँ की जा सकती हैं—प्रथम प्रकार की प्रतिक्रियाएँ कार्य निर्देशित प्रतिक्रियाएँ कहलाती हैं। इस प्रकार की प्रतिक्रियाओं में प्रतिबल निग्रस्त व्यक्ति समायोजन के लिए अपने आप में, परिष्करण में या दोनों में अपने अनुकूल परिवर्तन करने के उपाय् करता है।
इस प्रकार की प्रतिक्रिया भी तीन प्रकार की हो सकती है। इन्हें क्रमशः आक्रमण, पलायुन तथा समझौता कहा गया है। आक्रमण के अन्तर्गत व्यक्ति प्रतिबल के कारण या बाधा की समाप्त करने के उपाय करता है। इस उपाय को अपनाने से व्यक्ति निराश नहीं होता तथा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में प्रायः सफल हो जाता है। द्वितीय उपाय पलायन है। पलायन के अन्तर्गत व्यक्ति सम्बन्धित समस्या का सामना नहीं करता, बल्कि उससे दूर भागता है। तीसरा उपाय समझौता है। इस उपौय को उस स्थिति में अपनाया जाता है जब न तो आक्रमण सम्भव है और न ही पलायन। यह एक मध्यममार्गी उपाय है। जहाँ तक प्रतिबल के प्रति की जाने वाली अन्य प्रतिक्रियाएँ है। वे प्रतिक्रियाएँ सुरक्षा-निर्देशित प्रक्रियाएँ हैं, परन्तु समझौते की स्थिति में व्यक्ति अपने अहं को आत्म-अवमूल्यन से बचाने के लिए प्रयास करता है।