(ख) भारतीय सामाजिक जीवन पर प्रभाव
औद्योगीकरण ने भारतीय सामाजिक जीवन को निम्न प्रकार प्रभावित किया
1. रहन-सहन में कृत्रिमता – औद्योगीकरण के फलस्व रूप लोगों का जीवन अप्राकृतिक हो गया। है। तंग घरों, अँधेरी गलियों, धुएँ से भरा हुआ आकाश, ट्रामें, बसें, रेलें, ऊँचे-नीचे मकान व मशीनों का शोर औद्योगीकरण की ही देन है। इस प्रकार मनुष्य प्रकृति से दूर होती जा रही है।
2. गन्दी तथा तंग बस्तियों का विकास – हर औद्योगिक नगर में जनसंख्या का घनत्व बढ़ने के कारण रहने के स्थान का अभाव हो जाता है। घनी तंग बस्तियों में दिन में भी सूर्य के दर्शन नहीं होते। कमरे धुएँ से भरे रहते हैं। मल-मूत्र की बदबू असह्य होती है, फिर भी लोग अपने को उसका आदी बना लेते हैं। मुम्बई में ‘चाल’, चेन्नई में ‘चेरी’ और कानपुर में ‘अहाता’ आदि इस प्रकार की गन्दी बस्तियों के उदाहरण हैं।।
3. जाति-प्रथा को कमजोर होना – औद्योगीकरण के फलस्वरूप और बढ़ती हुई बेकारी के कारण हर जाति के लोग कारखानों में काम पाने का प्रयास करते हैं। काम करते समय और सामान्य जीवन में एक-दूसरे के इतने नजदीक आ जाते हैं कि उन्हें प्रतिबन्धों और निषेधों की उपेक्षा करनी पड़ती है। उन्हें मानकर वे कोई कार्य नहीं कर सकते। अन्तर्जातीय विवाह भी
ऐसे स्थानों पर जाति-प्रथा को ढहाने में सहायक होते हैं।
4. नैतिकता का ह्रास – मशीनों के बीच काम करते-करते मनुष्य की संवेदनशीलता का लोप हो जाता है। उसमें अपने बन्धु-बान्धवों के प्रति सद्भाव का लोप होने लगता है। कारखानों में काम करने वाला व्यक्ति स्वार्थप्रिय हो जाता है और उसमें मूल्यों के प्रति आस्था समाप्त हो जाती है। औद्योगिक बस्तियों में इसीलिए चोरी, बेईमानी, ईष्र्या-द्वेष, मद्यपान, जुआ, हत्याएँ सामान्य घटनाएँ होती रहती हैं। इससे भ्रष्टाचार का व्यापक प्रसार हुआ है। अपराधों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है।
5. प्रतिद्वन्द्विता और संघर्ष – उद्योगों में अस्वस्थ प्रतिद्वन्द्विता के कारण पारस्परिक संघर्ष उत्पन्न हुआ है, जिससे प्रभावित होकर एक व्यक्ति दूसरे को गला काटने से भी नहीं चूकता।
6. बाल-अपराधों में वृद्धि – औद्योगीकरण के फलस्वरूप भारत की औद्योगिक बस्तियों में बाल-अपराधों की भी वृद्धि हुई है। माता-पिता दिन में अधिकांश समय कारखानों में काम करते हैं, उनकी अनुपस्थिति में बच्चे हर तरह से संसर्ग में आते हैं। नैतिक शिक्षा का अभाव पहले से होता है। माता-पिता द्वारा नैतिक आदर्श रखे नहीं जाते; अस्तु बच्चे हर तरह के
अपराध करने लगते हैं।
7. सामुदायिक जीवन का ह्रास – मानवीय सम्बन्धों के ह्रास के कारण समाज में वैयक्तिकता अधिक पनपी है। पारस्परिक सद्भाव, सहयोग और सहानुभूति के अभाव के कारण सामुदायिक जीवन का ह्रास होता है।
8. चिन्ता एवं तनाव में वृद्धि – बढ़ती हुई जनसंख्या और रहन-सहन की सुविधाओं के अभाव के कारण तथा नौकरी की तनावपूर्ण दशाएँ, शोषण, ईष्र्या, द्वेष, प्रतिद्वन्द्विता आदि के कारण औद्योगिक बस्ती में रहने वाले लोगों में चिन्ता एवं तनावों में अत्यधिक वृद्धि हो गयी है। इससे व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन अशान्त हो गया है।
(ग) भारतीय आर्थिक जीवन पर प्रभाव
भारतीय आर्थिक जीवन को औद्योगीकरण ने व्यापक रूप से प्रभावित किया है, जो निम्न प्रकार है।
1. पूँजीवाद का विकास बड़े – बड़े उद्योग चलाने के लिए अत्यधिक धन की आवश्यकता होती है, जो पूँजीपतियों से प्राप्त होता है या सरकार द्वारा लगाया जाता है। भारत में भी औद्योगीकरण के विकास के साथ पूँजीपतियों को बढ़ावा मिला है। उनका धन उद्योगों के खोलने में लगा है और उद्योगों के लाभ से उनके कोष भरे पड़े हैं। इसके साथ-ही-साथ श्रमिकों का शोषण भी हुआ है।
2. बड़े पैमाने पर उत्पादन एवं व्यापार – भारत में औद्योगीकरण के फलस्वरूप नये-नये कारखाने खोले गये हैं, जिनसे विभिन्न वस्तुओं का व्यापार भी बड़े पैमाने पर होने लगा है। कई उद्योगों के लिए कच्चा माल बाहर से आने लगा है और शक्ति के कुछ साधनों का भी आयात किया गया है। इस प्रकार औद्योगीकरण से उत्पादन एवं व्यापार को काफी बढ़ावा मिला है।
3. उच्च जीवन-स्तर – औद्योगीकरण से देश में उत्पादन बढ़ता है और निर्यात द्वारा जो धनोपार्जन होता है वह जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक होता है। हमारे देश में स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद जो तीव्र गति से औद्योगिक विकास हुआ है, उससे देशवासियों के
जीवन-स्तर में कुछ-न-कुछ वृद्धि तो हुई ही है।
4. श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण – कुटीर उद्योगों में तो उद्योग खोलने वाला व्यक्ति सभी काम स्वयं कर लेता है, किन्तु बड़े उद्योगों में कारखानों में काम कई भागों में बाँट दिये जाते हैं और उन्हें विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति अत्यधिक तीव्र गति और दक्षता से करते हैं। इस प्रकार श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण द्वारा उत्पादन में वृद्धि होती है। औद्योगीकरण का यह एक अनिवार्य परिणाम है।
5. काला धन, चोर-बाजारी एवं आयकर की चोरी – औद्योगीकरण के साथ लोगों की आमदनी बढ़ती है। आमदनी पर कर देना होता है, इसलिए उत्पादन ही छिपा लिया जाता है। इस प्रकार कुल आमदनी के एक अंश आयकर की चोरी की जाती है। अवैध रूप से दबाये हुए उत्पादन की वस्तुओं की बिक्री करके चोर-बाजारी पनपती है। भारत में यह सभी कुछ हो रहा है।
(घ) भारतीय राजनीतिक जीवन पर प्रभाव
औद्योगीकरण का प्रभाव भारतीय राजनीतिक जीवन पर भी पड़ा है, जो निम्नवत् है
⦁ राज्य का उत्तरदायित्व बढ़ना – औद्योगीकरण विकास की योजनाओं के अन्तर्गत होता है। उसे कार्यान्वित करने के लिए राज्य को विधिवत् योजनाएँ बनाना होता है और कारखाने खोलने के लिए धने का प्रबन्ध करना होता है। औद्योगीकरण के द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ा है, अन्य देशों से लेन-देन बढ़ा है और उनकी व्यवस्था से सम्बन्धित अनेक जिम्मेदारियाँ बढ़ी हैं।
⦁ राजनीतिक समस्याओं में वृद्धि – औद्योगीकरण से देश में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। जैसे–हड़ताल, तालाबन्दी, श्रमिकों एवं पूँजीपतियों के पारस्परिक संघर्ष, श्रमिक-कल्याण, दुर्घटनाएँ आदि। इन सभी समस्याओं को राज्य की ओर से हल करने की कोशिश की जाती है।
ङ) भारतीय धार्मिक जीवन पर प्रभाव
औद्योगीकरण का किसी देश के धार्मिक जीवन पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है। भारत में औद्योगीकरण का धार्मिक मान्यताओं पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है
1. समाज में धर्म का महत्त्व कम होना – औद्योगीकरण के फलस्वरूप भारत में ईश्वर पर से लोगों की आस्था कम होती जा रही है। लोगों का ध्यान भौतिक सुखों की ओर अधिक बढ़ने लगा है।
2. नैतिकता का ह्रास – नैतिकता की भावना, जो धर्म का एक आवश्यक अंग है, भारतीय जीवन से तिरोहित होती जा रही है। स्वार्थों की टकराहट में मानवता का हनन हो रहा है। मनुष्य ने मनुष्य को पहचानना तक छोड़ दिया है।
3. आदर्शों का अभाव – औद्योगीकरण के फलस्वरूप व्यक्ति का दृष्टिकोण भौतिकवादी हो गया है। अपने को वह केवल वर्तमान से ही जोड़कर रखने की कोशिश करता है। भौतिक सुखों की उपलब्धि उसके जीवन का लक्ष्य है। जीवन के आदर्शों का उसके लिए कोई महत्त्व नहीं रहा है, क्योंकि उसकी निगाह भविष्य पर टिकी नहीं होती।
औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों को रोकने के उपाय
औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं
⦁ देश में उद्योगों का विकेन्द्रीकरण किया जाए जिससे राष्ट्र का सन्तुलित विकास हो सके।
⦁ ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग-धन्धों की पुनः स्थापना की जाए।
⦁ कृषि एवं उद्योगों में बढ़ती हुई यन्त्रीकरण की प्रवृत्ति पर रोक लगायी जाए।
⦁ तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगायी जाये। इर के लिए परिवार कल्याण कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए।
⦁ नगरों में आवास सुविधाएँ बढ़ायी जाएँ, प्रदूषण तथा गन्दगी का विनाश किया जाए।
⦁ अपराध वृत्ति पर रोक लगायी जाए तथा अपराध निरोध के लिए उपाय किये जाएँ।
⦁ जनसुविधाओं और स्वास्थ्य सेवाओं में आवश्यकतानुसार वृद्धि की जाए।
⦁ नैतिक आदर्शों एवं सामाजिक मूल्यों के प्रति लोगों की आस्था बढ़ायी जाए।
⦁ सामाजिक न्याय एवं सामाजिक कल्याण में वृद्धि की जाए।
⦁ उद्योगों में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए तथा उनकी सुविधाएँ बढ़ायी जाएँ।
⦁ वर्ग-संघर्ष कम करने के लिए समाज में धन का उचित वितरण किया जाए।
⦁ बेरोजगारी तथा निर्धनता पर रोक लगायी जाए।
⦁ पारिवारिक विघटन की प्रक्रिया को कम किया जाए।
⦁ समाज में मनोरंजन के स्वस्थ साधनों का विकास किया जाए।
⦁ समाज-सुधार एवं समाज-कल्याण की योजनाएँ चलायी जाएँ।
⦁ उद्योगों का विकास बस्तियों से दूर कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में किया जाए।
⦁ समाज में सहयोग, प्रेम तथा एकता को वातावरण तैयार किया जाए जिससे तनाव और संघर्षों को रोका जा सके।
⦁ श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए श्रम-कल्याणकारी कानूनों का निर्माण किया जाए।
⦁ सामाजिक समस्याओं के निराकरण हेतु प्रशासन को अधिक चुस्त बनाया जाए।
⦁ राष्ट्र में कुशल नेतृत्व का विकास किया जाए तथा प्रजातान्त्रिक मूल्यों की स्थापना की जाए।