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औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं ? औद्योगीकरण की परिभाषा दीजिए तथा औद्योगीकरण की विशेषताएँ भी बताइए।

या

औद्योगीकरण किसे कहते हैं ? औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए। 

या

भारत में औद्योगीकरण के सामाजिक और आर्थिक परिणामों का वर्णन कीजिए। 

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औद्योगीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ

धन कमाना मनुष्य की एक प्रमुख क्रिया है। आजीविका जुटाने के लिए प्रकृति के साथ सतत संघर्ष करना ही मानव-विकास की कहानी है। मनुष्य आखेट, पशुपालन व मछली पकड़ने से लेकर धीरे-धीरे औद्योगिक युग तक पहुँच गया है। औद्योगीकरण दो शब्दों के मेल से बना है-उद्योग + करण’। ‘उद्योग’ का अर्थ ‘कारखाने’ तथा ‘करण’ का अर्थ है–‘स्थापित करना। इस प्रकार औद्योगीकरण का शाब्दिक अर्थ हुआ ‘कारखाने स्थापित करना।
क्लार्क केर के अनुसार, “औद्योगीकरण से अभिप्राय एक ऐसी स्थिति से है जिसमें पहले का कृषक अथवा व्यापारिक समाज एक औद्योगिक समाज की दिशा की ओर परिवर्तित होने लगता है।”
संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) के अनुसार, “औद्योगीकरण से तात्पर्य बड़े-बड़े उद्योगों के विकास तथा छोटे और कुटीर उद्योग-धन्धों के स्थान पर बड़े पैमाने की मशीनों की व्यवस्था से है। औद्योगीकरण आर्थिक विकास की व्यापक प्रक्रिया का अंग मात्र है, जिसका उद्देश्य उत्पादन के साधनों की क्षमता में वृद्धि करके जनजीवन के स्तर को ऊँचा उठाना है।”
अतः औद्योगीकरण उद्योगों के विकास की एक प्रक्रिया है, जिसमें बड़े पैमाने पर उद्योग लगाये जाते हैं तथा हाथ से किया जाने वाला उत्पादन मशीनों से किया जाने लगता है।

औद्योगीकरण की विशेषताएँ

औद्योगीकरण में मुख्य रूप से निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं.

⦁    औद्योगीकरण उत्पादन की एक प्रक्रिया है, जिसका विकास धीरे-धीरे होता है।
⦁    औद्योगीकरण के कारण राष्ट्र में नये-नये उद्योगों की स्थापना तीव्र गति से होती है।
⦁    औद्योगीकरण मानवीय शक्ति की अपेक्षा मशीनी शक्ति पर बल देता है।
⦁    औद्योगीकरण में मशीनों का संचालन कोयला, खनिज तेल अथवा विद्युत-शक्ति द्वारा किया जाता है।
⦁    औद्योगीकरण की प्रमुख विशेषता श्रम-विभाजन और विशिष्टीकरण है।
⦁    औद्योगीकरण तीव्र गति से सस्ते और बड़े पैमाने के उत्पादन पर बल देता है।
⦁    औद्योगीकरण की प्रमुख विशेषता नवीनतम वैज्ञानिक विधियों तथा उत्पादन की नवीनतम तकनीक के प्रयोग पर बल देना है।
⦁    औद्योगीकरण प्राकृतिक संसाधनों के अधिकतम तथा योजनाबद्ध दोहन पर बल देता है।
⦁    औद्योगीकरण के फलस्वरूप प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है, जो आर्थिक विकास की परिचायक है।
⦁    औद्योगीकरण राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक ढाँचे में आमूल-चूल परिवर्तन करता है।
⦁    औद्योगीकरण के कारण वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होने से प्राचीन मान्यताएँ ध्वस्त हो जाती हैं।
⦁    औद्योगीकरण पूँजीवाद का जनक है। इसके फलस्वरूप श्रमिक वर्ग और पूँजीपति वर्ग जन्म लेते हैं।
⦁    औद्योगीकरण की एक प्रमुख विशिष्टता राष्ट्रीय व्यापार और उद्योगों में होने वाली भारी वृद्धि
⦁    औद्योगीकरण का क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय बाजार होने के कारण यह अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की स्थापना करने में सक्षम होता है।
⦁    औद्योगीकरण के कारण राष्ट्र को समूचा विनिर्माण, उद्योगों तथा अर्थव्यवस्था को परिवेश परिवर्तित हो जाता है।

औद्योगीकरण का भारतीय समाज पर प्रभाव

औद्योगीकरण का भारतीय समाज के सभी पक्षों पर गहरा प्रभाव पड़ा है, जिस पर हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत विचार करेंगे

(क) भारतीय पारिवारिक जीवन पर प्रभाव

औद्योगीकरण का भारतीय पारिवारिक जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है

1. संयुक्त परिवार प्रथा का विघटन – संयुक्त परिवार भारतीय समाज की एक प्रमुख विशेषता रही है। एक परिवार के सभी नये-पुराने सदस्य एक ही स्थान पर रहते हुए खेती का कार्य करते रहे हैं, किन्तु उद्योगों के विकास के साथ-साथ लोग कारखानों में काम करने के लिए गाँव छोड़कर शहरों की ओर भागे। एक ही परिवार का कोई सदस्य कहीं पहुँच गया, कोई कहीं। कारखानों की मजदूर कॉलोनी में या अन्य छोटे-छोटे आवासों में लोग जा बसे, जहाँ मुश्किल से एक छोटे-से परिवार को ही गुजारा होता है। इस प्रकार संयुक्त परिवार को विघटन होने लगा और यह क्रिया काफी व्यापक पैमाने पर हुई है। इस प्रकार के स्थानों पर जिन परिवारों की नींव पड़ी, वे भी छोटे थे; क्योंकि पति-पत्नी तथा बच्चों के अतिरिक्त अन्य किसी का वहाँ गुजारा नहीं हो सकता था।

2. पारिवारिक कार्य-क्षेत्र का सीमित होना – संयुक्त परिवार में परिवार के सदस्यों की अधिकांश आवश्यकताएँ अन्य सदस्यों द्वारा पूरी हो जाती थीं। औद्योगीकरण के प्रभाव से परिवार के अनेक कार्य विशिष्ट संस्थाओं द्वारा होने लगे हैं। औद्योगीकरण के फलस्वरूप कपड़े धोने का काम लॉण्ड्री में, कपड़े सिलने का काम दर्जी की दुकानों में, आटा पीसने का काम आटा पीसने की शक्ति-चालित चक्कियों में, खेत जोतने, बोने, काटने, माँड़ने का काम विभिन्न मशीनों से होने लगा। इस प्रकार परिवार का कार्य-क्षेत्र सीमित हो गया है।

3. स्त्रियों का नौकरी करना – औद्योगीकरण के फलस्वरूप घर के अनेक कार्य मशीनों द्वारा होने लगे और स्त्रियों के पास समय बचने लगा। अतः महँगाई और अभाव से ग्रस्त परिवार की आमदनी बढ़ाने के लिए स्त्रियाँ नौकरी करने लगीं। औद्योगीकरण के फलस्वरूप सघन कॉलोनी में रहने के कारण पर्दा-प्रथा भी कम हो गयी और नौकरी पर जाने में स्त्रियों की हिचक समाप्त हो गयी।

4. स्त्रियों की स्थिति में सुधार – धन कमाने के कारण स्त्रियाँ स्वावलम्बिनी होने लगीं। अपने पैरों पर खड़े होने के कारण उनका आत्मविश्वास बढ़ा। वे अधिक स्वतन्त्र हुईं। उनमें शिक्षा का प्रसार हुआ और इस प्रकार उनकी स्थिति में सुधार हुआ।

5. विवाह के रूप में परिवर्तन – पहले धर्म-विवाह होते थे, जो संयुक्त परिवार के बुजुर्गों द्वारा कर दिये जाते थे। औद्योगीकरण के प्रभाव में प्रेम-विवाह और अन्तर्जातीय विवाहों की संख्या बढ़ी है, क्योंकि सघन औद्योगिक बस्तियों में युवक और युवतियों के सम्पर्क बढ़े तथा बड़े बुजुर्गों के नियन्त्रण का अभाव हो गया। इसके साथ-ही-साथ अपने पैरों पर खड़े होने के प्रयास में विवाह की आयु बढ़ी और इस प्रकार विलम्ब विवाह होने लगे। वैवाहिक जीवन पर नियन्त्रण घटने से तलाक भी बढ़े हैं।

6. पारिवारिक नियन्त्रण का घटना – पहले संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों पर परिवार के मुखिया का कठोर नियन्त्रण रहता था। हर व्यक्ति परिवार के रीति-रिवाज, आस्थाओं, मान्यताओं आदि से प्रभावित रहता था। औद्योगीकरण के प्रभावस्वरूप परिवारों का आकार छोटा हो गया और व्यक्ति पर पारिवारिक नियन्त्रण घट गया है।

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(ख) भारतीय सामाजिक जीवन पर प्रभाव

औद्योगीकरण ने भारतीय सामाजिक जीवन को निम्न प्रकार प्रभावित किया

1. रहन-सहन में कृत्रिमता – औद्योगीकरण के फलस्व रूप लोगों का जीवन अप्राकृतिक हो गया। है। तंग घरों, अँधेरी गलियों, धुएँ से भरा हुआ आकाश, ट्रामें, बसें, रेलें, ऊँचे-नीचे मकान व मशीनों का शोर औद्योगीकरण की ही देन है। इस प्रकार मनुष्य प्रकृति से दूर होती जा रही है।

2. गन्दी तथा तंग बस्तियों का विकास – हर औद्योगिक नगर में जनसंख्या का घनत्व बढ़ने के कारण रहने के स्थान का अभाव हो जाता है। घनी तंग बस्तियों में दिन में भी सूर्य के दर्शन नहीं होते। कमरे धुएँ से भरे रहते हैं। मल-मूत्र की बदबू असह्य होती है, फिर भी लोग अपने को उसका आदी बना लेते हैं। मुम्बई में ‘चाल’, चेन्नई में ‘चेरी’ और कानपुर में ‘अहाता’ आदि इस प्रकार की गन्दी बस्तियों के उदाहरण हैं।।

3. जाति-प्रथा को कमजोर होना – औद्योगीकरण के फलस्वरूप और बढ़ती हुई बेकारी के कारण हर जाति के लोग कारखानों में काम पाने का प्रयास करते हैं। काम करते समय और सामान्य जीवन में एक-दूसरे के इतने नजदीक आ जाते हैं कि उन्हें प्रतिबन्धों और निषेधों की उपेक्षा करनी पड़ती है। उन्हें मानकर वे कोई कार्य नहीं कर सकते। अन्तर्जातीय विवाह भी
ऐसे स्थानों पर जाति-प्रथा को ढहाने में सहायक होते हैं।

4. नैतिकता का ह्रास – मशीनों के बीच काम करते-करते मनुष्य की संवेदनशीलता का लोप हो जाता है। उसमें अपने बन्धु-बान्धवों के प्रति सद्भाव का लोप होने लगता है। कारखानों में काम करने वाला व्यक्ति स्वार्थप्रिय हो जाता है और उसमें मूल्यों के प्रति आस्था समाप्त हो जाती है। औद्योगिक बस्तियों में इसीलिए चोरी, बेईमानी, ईष्र्या-द्वेष, मद्यपान, जुआ, हत्याएँ सामान्य घटनाएँ होती रहती हैं। इससे भ्रष्टाचार का व्यापक प्रसार हुआ है। अपराधों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है।

5. प्रतिद्वन्द्विता और संघर्ष – उद्योगों में अस्वस्थ प्रतिद्वन्द्विता के कारण पारस्परिक संघर्ष उत्पन्न हुआ है, जिससे प्रभावित होकर एक व्यक्ति दूसरे को गला काटने से भी नहीं चूकता।

6. बाल-अपराधों में वृद्धि – औद्योगीकरण के फलस्वरूप भारत की औद्योगिक बस्तियों में बाल-अपराधों की भी वृद्धि हुई है। माता-पिता दिन में अधिकांश समय कारखानों में काम करते हैं, उनकी अनुपस्थिति में बच्चे हर तरह से संसर्ग में आते हैं। नैतिक शिक्षा का अभाव पहले से होता है। माता-पिता द्वारा नैतिक आदर्श रखे नहीं जाते; अस्तु बच्चे हर तरह के
अपराध करने लगते हैं।

7. सामुदायिक जीवन का ह्रास – मानवीय सम्बन्धों के ह्रास के कारण समाज में वैयक्तिकता अधिक पनपी है। पारस्परिक सद्भाव, सहयोग और सहानुभूति के अभाव के कारण सामुदायिक जीवन का ह्रास होता है।

8. चिन्ता एवं तनाव में वृद्धि – बढ़ती हुई जनसंख्या और रहन-सहन की सुविधाओं के अभाव के कारण तथा नौकरी की तनावपूर्ण दशाएँ, शोषण, ईष्र्या, द्वेष, प्रतिद्वन्द्विता आदि के कारण औद्योगिक बस्ती में रहने वाले लोगों में चिन्ता एवं तनावों में अत्यधिक वृद्धि हो गयी है। इससे व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन अशान्त हो गया है।

(ग) भारतीय आर्थिक जीवन पर प्रभाव

भारतीय आर्थिक जीवन को औद्योगीकरण ने व्यापक रूप से प्रभावित किया है, जो निम्न प्रकार है।

1. पूँजीवाद का विकास बड़े – बड़े उद्योग चलाने के लिए अत्यधिक धन की आवश्यकता होती है, जो पूँजीपतियों से प्राप्त होता है या सरकार द्वारा लगाया जाता है। भारत में भी औद्योगीकरण के विकास के साथ पूँजीपतियों को बढ़ावा मिला है। उनका धन उद्योगों के खोलने में लगा है और उद्योगों के लाभ से उनके कोष भरे पड़े हैं। इसके साथ-ही-साथ श्रमिकों का शोषण भी हुआ है।

2. बड़े पैमाने पर उत्पादन एवं व्यापार –  भारत में औद्योगीकरण के फलस्वरूप नये-नये कारखाने खोले गये हैं, जिनसे विभिन्न वस्तुओं का व्यापार भी बड़े पैमाने पर होने लगा है। कई उद्योगों के लिए कच्चा माल बाहर से आने लगा है और शक्ति के कुछ साधनों का भी आयात किया गया है। इस प्रकार औद्योगीकरण से उत्पादन एवं व्यापार को काफी बढ़ावा मिला है।

3. उच्च जीवन-स्तर – औद्योगीकरण से देश में उत्पादन बढ़ता है और निर्यात द्वारा जो धनोपार्जन होता है वह जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक होता है। हमारे देश में स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद जो तीव्र गति से औद्योगिक विकास हुआ है, उससे देशवासियों के
जीवन-स्तर में कुछ-न-कुछ वृद्धि तो हुई ही है।

4. श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण – कुटीर उद्योगों में तो उद्योग खोलने वाला व्यक्ति सभी काम स्वयं कर लेता है, किन्तु बड़े उद्योगों में कारखानों में काम कई भागों में बाँट दिये जाते हैं और उन्हें विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति अत्यधिक तीव्र गति और दक्षता से करते हैं। इस प्रकार श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण द्वारा उत्पादन में वृद्धि होती है। औद्योगीकरण का यह एक अनिवार्य परिणाम है।

5. काला धन, चोर-बाजारी एवं आयकर की चोरी – औद्योगीकरण के साथ लोगों की आमदनी बढ़ती है। आमदनी पर कर देना होता है, इसलिए उत्पादन ही छिपा लिया जाता है। इस प्रकार कुल आमदनी के एक अंश आयकर की चोरी की जाती है। अवैध रूप से दबाये हुए उत्पादन की वस्तुओं की बिक्री करके चोर-बाजारी पनपती है। भारत में यह सभी कुछ हो रहा है।

(घ) भारतीय राजनीतिक जीवन पर प्रभाव

औद्योगीकरण का प्रभाव भारतीय राजनीतिक जीवन पर भी पड़ा है, जो निम्नवत् है

⦁    राज्य का उत्तरदायित्व बढ़ना – औद्योगीकरण विकास की योजनाओं के अन्तर्गत होता है। उसे कार्यान्वित करने के लिए राज्य को विधिवत् योजनाएँ बनाना होता है और कारखाने खोलने के लिए धने का प्रबन्ध करना होता है। औद्योगीकरण के द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ा है, अन्य देशों से लेन-देन बढ़ा है और उनकी व्यवस्था से सम्बन्धित अनेक जिम्मेदारियाँ बढ़ी हैं।
⦁    राजनीतिक समस्याओं में वृद्धि – औद्योगीकरण से देश में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। जैसे–हड़ताल, तालाबन्दी, श्रमिकों एवं पूँजीपतियों के पारस्परिक संघर्ष, श्रमिक-कल्याण, दुर्घटनाएँ आदि। इन सभी समस्याओं को राज्य की ओर से हल करने की कोशिश की जाती है।

ङ) भारतीय धार्मिक जीवन पर प्रभाव

औद्योगीकरण का किसी देश के धार्मिक जीवन पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है। भारत में औद्योगीकरण का धार्मिक मान्यताओं पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है

1. समाज में धर्म का महत्त्व कम होना – औद्योगीकरण के फलस्वरूप भारत में ईश्वर पर से लोगों की आस्था कम होती जा रही है। लोगों का ध्यान भौतिक सुखों की ओर अधिक बढ़ने लगा है।

2. नैतिकता का ह्रास – नैतिकता की भावना, जो धर्म का एक आवश्यक अंग है, भारतीय जीवन से तिरोहित होती जा रही है। स्वार्थों की टकराहट में मानवता का हनन हो रहा है। मनुष्य ने मनुष्य को पहचानना तक छोड़ दिया है।

3. आदर्शों का अभाव – औद्योगीकरण के फलस्वरूप व्यक्ति का दृष्टिकोण भौतिकवादी हो गया है। अपने को वह केवल वर्तमान से ही जोड़कर रखने की कोशिश करता है। भौतिक सुखों की उपलब्धि उसके जीवन का लक्ष्य है। जीवन के आदर्शों का उसके लिए कोई महत्त्व नहीं रहा है, क्योंकि उसकी निगाह भविष्य पर टिकी नहीं होती।
औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों को रोकने के उपाय

औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं

⦁    देश में उद्योगों का विकेन्द्रीकरण किया जाए जिससे राष्ट्र का सन्तुलित विकास हो सके।
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग-धन्धों की पुनः स्थापना की जाए।
⦁    कृषि एवं उद्योगों में बढ़ती हुई यन्त्रीकरण की प्रवृत्ति पर रोक लगायी जाए।
⦁    तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगायी जाये। इर के लिए परिवार कल्याण कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए।
⦁     नगरों में आवास सुविधाएँ बढ़ायी जाएँ, प्रदूषण तथा गन्दगी का विनाश किया जाए।
⦁     अपराध वृत्ति पर रोक लगायी जाए तथा अपराध निरोध के लिए उपाय किये जाएँ।
⦁    जनसुविधाओं और स्वास्थ्य सेवाओं में आवश्यकतानुसार वृद्धि की जाए।
⦁     नैतिक आदर्शों एवं सामाजिक मूल्यों के प्रति लोगों की आस्था बढ़ायी जाए।
⦁    सामाजिक न्याय एवं सामाजिक कल्याण में वृद्धि की जाए।
⦁     उद्योगों में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए तथा उनकी सुविधाएँ बढ़ायी जाएँ।
⦁     वर्ग-संघर्ष कम करने के लिए समाज में धन का उचित वितरण किया जाए।
⦁    बेरोजगारी तथा निर्धनता पर रोक लगायी जाए।
⦁    पारिवारिक विघटन की प्रक्रिया को कम किया जाए।
⦁    समाज में मनोरंजन के स्वस्थ साधनों का विकास किया जाए।
⦁    समाज-सुधार एवं समाज-कल्याण की योजनाएँ चलायी जाएँ।
⦁     उद्योगों का विकास बस्तियों से दूर कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में किया जाए।
⦁     समाज में सहयोग, प्रेम तथा एकता को वातावरण तैयार किया जाए जिससे तनाव और संघर्षों को रोका जा सके।
⦁     श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए श्रम-कल्याणकारी कानूनों का निर्माण किया जाए।
⦁     सामाजिक समस्याओं के निराकरण हेतु प्रशासन को अधिक चुस्त बनाया जाए।
⦁    राष्ट्र में कुशल नेतृत्व का विकास किया जाए तथा प्रजातान्त्रिक मूल्यों की स्थापना की जाए।

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