अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों का राष्ट्रीय जीवन में योगदान निम्नलिखित रूपों में दर्शाया जा सकता है
1. भारतीय राजनीति में प्रभावक भूमिका – संसद और राज्य विधानमण्डलों में अनुसूचित जनजातियों की सदस्य संख्या, विभिन्न चुनावों में उनकी सक्रिय भागीदारी तथा उच्च राजनीतिक पदों पर उनकी नियुक्ति से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि देश के राष्ट्रीय जीवन में इनका सक्रिय सहभाग अर्थात् योगदान बढ़ रहा है और इनमें राजनीतिक चेतना तेजी से बढ़ रही है। वर्तमान में लोकसभा में अनुसूचित जातियों के 79 एवं जनजातियों के 41 स्थान तथा राज्यों की विधानसभाओं में क्रमशः 557 तथा 527 सीटें आरक्षित की गयी हैं। पंचायतों एवं स्थानीय निकायों में जनसंख्या के अनुपात में इनकी सीटें आरक्षित की गयी हैं।
2. राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं में वृद्धि – अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को आरक्षण एवं संवैधानिक रियायतें प्राप्त हैं जिनका एक परिणाम यह सामने आया है कि इनके नेताओं की महत्त्वाकांक्षाओं में वृद्धि हुई है। अब वे राजनीतिक और प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर ऊँची जातियों के लोगों से प्रतिस्पर्धा करने एवं आगे बढ़ने की आकांक्षा रखते हैं
3. दबाव समूहों के रूप में संगठित होने की प्रवृत्ति – आरक्षण के परिणामस्वरूप जाति का राजनीति में प्रभाव बढ़ा है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद बनने वाले जातीय समुदायों में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों द्वारा निर्मित दबाव गुटों का विशेष महत्त्व है। जिला स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक इन जातियों एवं जनजातियों के संगठन पाये जाते हैं। इन्हीं संगठनों की माँग एवं संगठित प्रयासों के फलस्वरूप आरक्षण की अवधि सन् 2020 तक के लिए बढ़ा दी गयी थी।
4. निर्वाचनों में संगठित भूमिका – यह माना जाता है कि विभिन्न आम चुनावों में कांग्रेस दल के विजयी होने और सत्ता में आने का मुख्य कारण इन्हें हरिजनों, अन्य अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को मिलने वाला समर्थन है। इन जातियों ने अपनी संख्या की शक्ति को पहचाना है और राजनीति में संगठित रूप में भूमिका निभाते हैं। इससे राष्ट्रीय जीवन में इनकी भूमिका बढ़ी है। आज तो सभी राजनीतिक दल यह महसूस करने लगे हैं कि सत्ता में आने के लिए इन जातियों का समर्थन प्राप्त करना आवश्यक है।
5. भारतीय राजनीति में सन्तुलनकर्ता की भूमिका – अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की देश में कुल जनसंख्या 25 करोड़ है, जो देश की कुल जनसंख्या का 24.35 प्रतिशत है। इस संख्या के बल पर ही ये जातियाँ भारतीय राजनीति में शक्ति-सन्तुलन की स्थिति में हैं। जिस राजनीतिक दल को इनका समर्थन प्राप्त हो जाता है, उसकी राजनीतिक स्थिति काफी मजबूत हो जाती है।
6. अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के कई लोगों ने स्वतन्त्रता – आन्दोलन में भाग लिया। उन्होंने महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में योग दिया। इससे उनमें राजनीतिक चेतना बढ़ी है। अनेक नेताओं ने अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की स्थिति को उन्नत करने और उन्हें राष्ट्रीय जीवन-धारा में सम्मिलित करने हेतु प्रयास किये हैं।
7. देश के आर्थिक विकास में भी अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का काफी योगदान रहा है। खेतों, कारखानों, चाय-बागानों एवं खानों में इन जातियों के लोग ही उत्पादन के कार्य में प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं। हाथ से काम करने वाले या मेहनतकश लोगों में अनुसूचित जातियों, जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों का योगदान ही सर्वाधिक रहा है। वर्तमान में अनेक अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लोग व्यापारी एवं उद्यमी के रूप में आगे बढ़ने लगे हैं।