भारत में जल संसाधन और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी कारक
धरातलीय जल संसाधन
धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत हैं-नदियाँ, झीलें, तलैया और तालाब। देश में कुल नदियों तथा उन सहायक नदियों, जिनकी लम्बाई 1.6 किमी से अधिक है, को मिलाकर 10,360 नदियाँ हैं। भारत में सभी नदी बेसिनों में औसत वार्षिक प्रवाह 1,869 घन किमी होने का अनुमान किया गया है। फिर भी स्थलाकृतिक, जलीय और अन्य दबावों के कारण प्राप्त धरातलीय जल का केवल लगभग 690 घन किमी (32%) जल को ही उपयोग किया जा सकता है। नदी में जल प्रवाह इसके जल ग्रहण क्षेत्र के आकार अथवा नदी बेसिन और इस जल ग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा पर निर्भर करता है। भारत में वर्षा में अत्यधिक स्थानिक विभिन्नता पाई जाती है और वर्षा मुख्य रूप से मानसूनी मौसम संकेद्रित है।
भारत में कुछ नदियाँ, जैसे-गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु के जल ग्रहण क्षेत्र बहुत बड़े हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा अपेक्षाकृत अधिक होती है। ये नदियाँ यद्यपि देश के कुल क्षेत्र के लगभग एक-तिहाई भाग पर पाई जाती हैं जिनमें कुछ धरातलीय जल संसाधनों का 60 प्रतिशत जल पाया, जाता है। दक्षिणी भारतीय नदियों, जैसे-गोदावरी, कृष्णा और कावेरी में वार्षिक जल प्रवाह का अधिकतर भाग काम में लाया जाता है, लेकिन ऐसा ब्रह्मपुत्र और गंगा बेसिनों में अभी भी सम्भव नहीं हो सका है।
भौम जल संसाधन
देश में कुल पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन लगभग 432 घन किमी है। कुल पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन का लगभग 46 प्रतिशत गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिनों में पाया जाता है। उत्तर-पश्चिमी प्रदेश और दक्षिणी भारत के कुछ भागों के नदी बेसिनों में भौम जल उपयोग अपेक्षाकृत अधिक है।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों में भौम जल का उपयोग बहुत अधिक है। परन्तु कुछ राज्य; जैसे-छत्तीसगढ़, ओडिशा, केरल अतिद अपने भौम जल क्षमता का बहुत कम उपयोग करते हैं। गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, त्रिपुरा और महाराष्ट्र अपने भौम जल संसाधनों का मध्यम दर से उपयोग कर रहे हैं।
यदि वर्तमान प्रवृत्ति जारी रहती है तो जल की माँग की आपूर्ति करने की आवश्यकता होगी। ऐसी स्थिति विकास के लिए हानिकारक होगी और सामाजिक उथल-पुथल एवं विघटन का कारण हो. सकती है।
लैगून और पश्च जल
भारत की समुद्र तट रेखा विशाल है और कुछ राज्यों में समुद्र तट बहुत दतुंरित (indented) है। इसी कारण बहुत-सी लैगून और झीलें बन गई हैं। केरल, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में इन लैगूनों और झीलों में बड़े धरातलीय जल संसाधन हैं। यद्यपि सामान्यतः इन जलाशयों में खारा जल है, इसका उपयोग मछली पालन और चावल की कुछ निश्चित किस्मों, नारियल आदि की सिंचाई में किया जाता है।