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जल के गुणों का ह्रास क्या है? जल प्रदूषण का निवारण किस प्रकार किया जाता है?

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जल के गुणों का ह्रास

जल गुणवत्ता से तात्पर्य जल की शुद्धता अथवा अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल से है। जल बाह्य पदार्थों; जैसे— सूक्ष्म जीवों, रासायनिक पदार्थों, औद्योगिक और अन्य अपशिष्ट पदार्थों से प्रदूषित होता है। इस प्रकार के पदार्थ जल के गुणों में कमी लाते हैं और इसे मानव उपयोग के योग्य नहीं रहने देते हैं। जब विषैले पदार्थ झीलों, सरिताओं, नदियों, समुद्रों और अन्य जलाशयों में प्रवेश करते हैं, वे जल में घुल जाते हैं अथवा जल में निलंबित हो जाते हैं। इससे जल प्रदूषण बढ़ता है और जल के गुणों में कमी आने से जलीय तंत्र (aquatic system) प्रभावित होते हैं। कभी-कभी प्रदूषक नीचे तक पहुँच जाते हैं। और भौम जल को प्रदूषित करते हैं। देश में गंगा और यमुना दो अत्यधिक प्रदूषित नदियाँ हैं।

जल प्रदूषण का निवारण

उपलब्ध जल संसाधनों का तेज़ी से निम्नीकरण हो रहा है। देश की मुख्य नदियों के प्रायः पहाड़ी क्षेत्रों के ऊपरी भागों तथा कम बसे क्षेत्रों में अच्छी जल गुणवत्ता पाई जाती है। मैदानों में नदी जल का उपयोग गहन रूप से कृषि, पीने, घरेलू और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। अपवाहिकाओं के साथ कृषिगत (उर्वरक और कीटनाशक), घरेलू (ठोस और अपशिष्ट पदार्थ) और औद्योगिक बहिःस्राव नदी में मिल जाते हैं। नदियों में प्रदूषकों को संकेन्द्रण गर्मी के मौसम में बहुत अधिक होता है। क्योंकि उस समय जल का प्रवाह कम होता है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी०पी०सी०बी०), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एस०पी०सी०) के साथ मिलकर 507 स्टेशनों की राष्ट्रीय जल संसाधन की गुणवत्ता को मॉनीटरन किया जा रहा है। इन स्टेशनों से प्राप्त किया गया आँकड़ा दर्शाता है कि जैव और जीवाणविक संदूषण नदियों में प्रदूषण का मुख्य स्रोत है। दिल्ली और इटावा के बीच यमुना नदी देश में सबसे अधिक प्रदूषित नदी है। दूसरी प्रदूषित नदियाँ अहमदाबाद में साबरमती, लखनऊ में गोमती, मदुरई में कली, अड्यार, कूअम (संपूर्ण विस्तार), वैगई, हैदराबाद में मूसी तथा कानपुर और वाराणसी में गंगा है। भौम जल प्रदूषण देश के विभिन्न भागों में भारी/विषैली धातुओं, फ्लुओराइड और नाइट्रेट्स के संकेंद्रण के कारण होता है।

वैधानिक व्यवस्थाएँ; जैसे-जल अधिनियम 1974 (प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण) और पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986, प्रभावपूर्ण ढंग से कार्यान्वित नहीं हुए हैं। परिणाम यह है कि 1997 में प्रदूषण फैलाने वाले 251 उद्योग, नदियों और झीलों के किनारे स्थापित किए गए थे। जल उपकर अधिनियम 1977, जिसका उद्देश्य प्रदूषण कम करना है, उसके भी सीमित प्रभाव हुए। जल के महत्त्व और जल प्रदूषण के अधिप्रभावों के बारे में जागरूकता का प्रसार करने की आवश्यकता है। जन जागरूकता और उनकी भागीदारी से, कृषिगत कार्यों तथा घरेलू और औद्योगिक विसर्जन से प्राप्त प्रदूषकों में बहुत प्रभावशाली ढंग से कमी लाई जा सकती है।

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