गुट-निरपेक्षता
द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् सम्पूर्ण विश्व दो गुटों में बँट गया। एक गुट का नेतृत्व अमेरिका ने किया और दूसरे गुट का सोवियत संघ (रूस) ने। दोनों गुटों में अनेक कारणों को लेकर भीषण शीतयुद्ध प्रारम्भ हो गया। यूरोप और एशिया के अधिकांश देश इस गुटबन्दी में फंस गये और वे किसी-न-किसी गुट में सम्मिलित हो गये। 15 अगस्त, 1947 को जब भारत स्वतन्त्रं हुआ तो भारत के नेताओं को अपनी विदेश नीति का निर्माण करने का अवसर प्राप्त हुआ। भारत की विदेश नीति के निर्माता पं० जवाहरलाल नेहरू थे। उन्होंने अपनी विदेश-नीति का आधार गुट-निरपेक्षता (Non-Alignment) को बनाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि “हम किसी गुट में सम्मिलित नहीं हो सकते, क्योकि हमारे देश में आन्तरिक समस्याएँ इतनी अधिक हैं कि हम दोनों गुटों से सम्बन्ध बनाये बिना उन्हें सुलझा नहीं सकते। धीरे-धीरे गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने वाले देशों की संख्या में वृद्धि होती गयी। सन् 1961 में बेलग्रेड में हुए गुट-निरपेक्ष देशों के प्रथम शिखर सम्मेलन में केवल 25 देशों ने भाग लिया था, किन्तु अब इनकी संख्या 120 हो गयी है।
गुट-निरपेक्षता का अर्थ व परिभाषा
गुट-निरपेक्षता की कोई सर्वमान्य व सर्वसम्मत परिभाषा उपलब्ध नहीं है, फिर भी गुटनिरपेक्षता की प्रकृति, तत्त्व तथा अर्थ के आधार पर इसकी परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है-“किसी भी राजनीतिक अथवा सैनिक गुट से संलग्न हुए बिना स्वतन्त्रता, शान्ति तथा सामाजिक न्याय के कार्य में योगदान देना ही गुट-निरपेक्षता है।” गुट-निरपेक्षता की नीति से अभिप्राय है। विभिन्न शक्तियों या गुटों से अप्रभावित रहते हुए अपनी स्वतन्त्र नीति अपनाना और राष्ट्रीय हितों के अनुसार न्याय का समर्थन देना।
कुछ लोग गुट-निरपेक्षता की नीति को, ‘तटस्थता’ की संज्ञा देते हैं, जो उचित नहीं है। इस सम्बन्ध में 1949 ई० में पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिकी जनता के समक्ष स्पष्ट रूप से कहा था-“जब स्वतन्त्रता के लिए संकट उत्पन्न हो, न्याय पर आघात पहुँचे या आक्रमण की घटना घटित हो, तब हम तटस्थ नहीं रह सकते और न ही हम तटस्थ रहेंगे।”
जॉर्ज लिस्का ने लिखा है कि “किसी विवाद के सन्दर्भ में यह जानते हुए कि कौन सही है। और कौन गलत, किसी का पक्ष न लेना ‘तटस्थता’ है, किन्तु गुट-निरपेक्षता का अर्थ है सही और गलत में भेद करना तथा सदैव सही नीति का समर्थन करना।
गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख तत्त्व
गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख तत्त्व निम्नवत् हैं-
1. राष्ट्रवाद की भावना – एशियाई-अफ्रीकी देशों ने राष्ट्रवाद की भावना के आधार पर एक लम्बे संघर्ष के बाद यूरोपियन साम्राज्यवाद से मुक्ति प्राप्त की थी। ऐसी स्थिति में सबसे पहले भारत और बाद में अन्य देशों ने स्वाभाविक रूप से सोचा कि किसी शक्ति गुट की सदस्यता को स्वीकार कर लेने पर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वे उसके पिछलग्गू बन जायेंगे, जिससे उनके आत्म-सम्मान, राष्ट्रवाद और सम्प्रभुता को आघात पहुँचेगा। इस प्रकार राष्ट्रवाद की भावना ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्वतन्त्र मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित किया।
2. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध – भारत और अन्य एशियाई-अफ्रीकी देशों ने लम्बे समय तक साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के अत्याचार भोगे थे और साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के प्रति उनकी विरोध भावना बहुत अधिक तीव्र थी। उन्होंने सही रूप में यह महसूस किया कि दोनों ही शक्ति गुटों के प्रमुख नव-साम्राज्यवादी हैं। तथा साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध करने के लिए शक्ति गुटों से अलग रहना बहुत अधिक आवश्यक है।
3. शान्ति के लिए तीव्र इच्छा – लम्बे संघर्ष के बाद स्वतन्त्रता प्राप्त करने वाले एशियाई अफ्रीकी देशों ने सत्य रूप में महसूस किया कि यूरोपीय देशों की तुलना में उनके लिए शान्ति बहुत अधिक आवश्यक है। उन्होंने यह भी सोचा कि उनके लिए युद्ध और तनाव की सम्भावना बहुत कम हो जायेगी, यदि वे अपने आपको शक्ति गुटों से अलग रखें।
4. आर्थिक विकास की लालसा – नवोदित राज्य शस्त्रास्त्रों की प्रतियोगिता से बचकर अपने देश का आर्थिक पुनर्निर्माण करना चाहते हैं। आर्थिक पुनर्निर्माण तीव्र गति से हो सके, इसके लिए विकसित राष्ट्रों से आर्थिक और तकनीकी सहयोग प्राप्त करना जरूरी है। गुट-निरपेक्षता का मार्ग अपनाकर ही कोई राष्ट्र बिना शर्त विश्व की दोनों महाशक्तियों-साम्यवादी और पूँजीवादी गुटों से आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्राप्त कर सकता था।
5. जातीय एवं सांस्कृतिक पक्ष – गुट-निरपेक्षता की नीति की एक प्रेरक तत्त्व जातीय एवं सांस्कृतिक पक्ष’ भी है। गुट-निरपेक्षता की नीति के अधिकांश समर्थक यूरोपियन राष्ट्रों का शोषण भुगत चुके हैं और अश्वेत जाति के हैं। इनमें सांस्कृतिक एवं जातीय समानताएँ भी विद्यमान हैं और कमजोर ही सही, लेकिन समानताओं ने उन्हें शक्ति गुटों से अलग रहने के लिए प्रेरित किया है।
गुट-निरपेक्षता का महत्त्व
वर्तमान विश्व के सन्दर्भ में गुट-निरपेक्षता का व्यापक महत्त्व है, जिसे निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
⦁ गुट-निरपेक्षता ने तृतीय विश्वयुद्ध की सम्भावना को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया
⦁ गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने साम्राज्यवाद का अन्त करने और विश्व में शान्ति व सुरक्षा बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए हैं।
⦁ गुट-निरपेक्षता के कारण ही विश्व की महाशक्तियों के मध्य शक्ति सन्तुलन बना रहा।
⦁ गुट-निरपेक्ष सम्मेलनों ने सदस्य राष्ट्रों के मध्य होने वाले युद्धों एवं विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान किया है।
⦁ गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने विज्ञान व तकनीकी के क्षेत्र में एक-दूसरे को पर्याप्त सहयोग दिया है।
⦁ गुट निरपेक्षता ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को व्यापक रूप से प्रभावित किया है।
⦁ गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने विश्व के परतन्त्र राष्ट्रों को स्वतन्त्र कराने और रंग-भेद की नीति का विरोध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
⦁ यह आन्दोलन निर्धन तथा पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बहुत बल दे रहा है।
⦁ गुट-निरपेक्ष आन्दोलन राष्ट्रवाद को अन्तर्राष्ट्रवाद में परिवर्तित करने तथा द्विध्रुवीकरण को बहु-केन्द्रवाद में परिवर्तित करने का उपकरण बना।
⦁ इसने सफलतापूर्वक यह दावा किया कि मानव जाति की आवश्यकता पूँजीवाद तथा साम्यवाद के मध्य विचारधारा सम्बन्धी विरोध से दूर है।
⦁ इसने सार्वभौमिक व्यवस्था की तरफ ध्यान आकर्षित किया तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शीत युद्ध की भूमिका को कम करने तथा इसकी समाप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
⦁ गुट-निरपेक्षता नए राष्ट्रों के सम्बन्धों में स्वतन्त्रापूर्वक विदेशों से सम्बन्ध स्थापित करके तथा सदस्यता प्रदान करके उनकी सम्प्रभुता की सुरक्षा का साधन बनी है।
गुट-निरपेक्षता का मूल्यांकन
गुटनिरपेक्षता पर आधारित विचारधारा का उदय उन परिस्थितियों में हुआ जब सम्पूर्ण विश्व दो गुटों में विभक्त हो गया था। इस प्रकार की स्थिति, सम्पूर्ण विश्व के लिए किसी भी समय खतरनाक सिद्ध हो सकती थी। यह गुटनिरपेक्षता पर आधारित नीति का ही परिणाम है कि वर्तमान विश्व तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका को कम करने में काफी सीमा तक सफल हो सका है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के माध्यम से, विश्वयुद्ध को आमन्त्रित करने वाली प्रत्येक स्थिति की प्रबल विरोध किया जाता रहा है और विश्व-शान्ति की दिशा में अनेक सराहनीय प्रयास किए गए हैं। साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के उन्मूलन, विभिन्न देशों में स्वतन्त्रता के लिए किए गए संघर्ष को सफल बनाने, रंगभेद की नीति का अन्त करने, विश्व में शक्ति सन्तुलन बनाए रखने तथा पिछड़े देशों की प्रगति हेतु समन्वित रूप से प्रयास करने की दिशा में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की अनेक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ रही हैं। यही नहीं, पारस्परिक निर्भरता के आधुनिक युग में एक-दूसरे की प्रगति हेतु सहयोग प्राप्त करने तथा विश्व को भावी उपनिवेशवादी शक्तियों के ध्रुवीकरण से बचाए रखने की दृष्टि से भी गुटनिरपेक्षता का अस्तित्व बने रहना परम आवश्यक है। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् यद्यपि गुटनिरपेक्षता की नीति पर प्रश्न-चिह्न लग गया है परन्तु वर्तमान समय में भी इसके सदस्य राष्ट्रों में सहयोगात्मक की भावना प्रफुल्लित हो रही है। इसके सदस्य राष्ट्रों की संख्या कम होने के स्थान पर निरन्तर बढ़ती जा रही है।