पर्यावरण से आशय
पर्यावरण अंग्रेजी भाषा के Environment शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। यह दो शब्दों; परि + आवरण; से मिलकर बना है। ‘परि’ का अर्थ है-‘चारों ओर’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ है-‘घेरना अथवा ढकना। इस प्रकार पर्यावरण का उन सभी घटकों को योग है, जो किसी वस्तु के चारों ओर से घेरे रहते हैं और उस वस्तु को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। इस प्रकार पर्यावरण उन सभी प्रक्रियाओं, दशाओं, बलों अथवा वस्तुओं का सम्मिलित स्वरूप हैं, जो भौतिक या रासायनिक रूप से जीवन को प्रभावित करते हैं।
पर्यावरण की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
ए० फिटिग के अनुसार-“जीवन की परिस्थिति के सम्पूर्ण तथ्यों का योग पर्यावरण कहलाता है।”
सोरोकिन के अनुसार-पर्यावरण उन समस्त दशाओं को इंगित करता है, जो मानव के क्रियाकलापों से स्वतन्त्र हैं तथा जिनकी रचना मानव ने नहीं की है और जो मानव एवं उसके कार्यों से प्रभावित हुए बिना स्वत: परिवर्तित होती हैं।”
ए०जी०ताँसले के अनुसार-“उन सभी प्रभावकारी दशाओं का कुल योग, जिनमें जीव निवास करता है, पर्यावरण कहलाता है।” संक्षेप में, पर्यावरण उन सभी भौगोलिक दशाओं का सम्पूर्ण योग है, जो मानव एवं उसकी क्रियाओं को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है और जो मानवीय प्रभाव से स्वतन्त्र रहते हुए स्वत: परिवर्तित होता रहता है।
पर्यावरण के प्रकार मूल रूप से पर्यावरण को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है
(1) भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण तथा
(2) सांस्कृतिक या मानवनिर्मित पर्यावरण।
(1) भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण- भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण उन समस्त भौतिक शक्तियों, तत्त्वों एवं प्रक्रियाओं का योग होता है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानवीय क्रियाकलापों को प्रभावित करता है। यह पर्यावरण स्थान एवं समय के सन्दर्भ में परिवर्तित होता रहता है। भौतिक पर्यावरण की शक्तियाँ, तत्त्व एवं प्रक्रियाएँ निम्नलिखित हैं
(अ) शक्तियाँ- भौतिक पर्यावरण की शक्तियाँ हैं-पृथ्वी की गति, गुरुत्वाकर्षण शक्ति, सूर्यातप, ज्वालामुखी, भूकम्प एवं भू-पटल की गति। ये शक्तियाँ पृथ्वी के धरातल पर भिन्न-भिन्न प्रकार का भौतिक भू-दृश्य उपस्थित करती हैं, जिससे पर्यावरण का जन्म होता है और जो अनेक प्रकार से मानवीय पर्यावरण को प्रभावित करता है।
(ब) तत्त्व- भौतिक पर्यावरण के अन्तर्गत निम्नलिखित तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है—स्थिति एवं विस्तार, स्वरूप एवं आकार, जलवायु दशाएँ, महासागर, नदियाँ एवं झीलें, शैल, मिट्टी, खनिज, भूमिगत जल, प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव-जन्तु आदि।
(स) प्रक्रियाएँ- भौतिक पर्यावरण के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रक्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है—अपक्षय एवं अपरदन, ताप विकिरण, संचालन एवं संवहन, वायु एवं जल की गतियाँ, भू-दृश्य एवं जैविक तत्त्वों की उत्पत्ति, विकास एवं क्षय।। उपर्युक्तु सभी शक्तियाँ, तत्त्व एवं प्रक्रियाएँ मिलकर भौतिक पर्यावरण को निर्मित करती हैं तथा एक-दूसरे से स्वतन्त्र होते हुए भी किसी-न-किसी प्रकार से सांस्कृतिक पर्यावरण को प्रभावित करती हैं।
(2) सांस्कृतिक या मानवनिर्मित पर्यावरण- मानव सांस्कृतिक पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। यह प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन लाने के लिए सदैव क्रियाशील रहता है। मानव ने ही अपने ज्ञान, विज्ञान एवं तकनीकी विकास से प्राकृतिक पर्यावरण का उपयोग कर सांस्कृतिक पर्यावरण का निर्माण किया है। सांस्कृतिक या मानवनिर्मित पर्यावरण की शक्तियाँ, तत्त्व एवं प्रक्रियाएँ निम्नलिखित हैं
(अ) शक्तियाँ- सांस्कृतिक पर्यावरण को निर्मित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली मुख्य शक्तियाँ हैं–कुल जनसंख्या, वितरण एवं घनत्व, आयु वर्ग, स्त्री-पुरुष अनुपात, जनसंख्या वृद्धि एवं स्वास्थ्य।
(ब) तत्त्व– सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्गत निम्नलिखित तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है—मूलभूत आवश्यकताओं की आपूर्ति, आर्थिक क्रियाएँ, तकनीकी विकास, सामाजिक एवं राजनीतिक संगठन आदि।
(स) प्रक्रियाएँ– सांस्कृतिक प्रक्रियाएँ वे हैं, जिनके द्वारा मानव प्राकृतिक पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करती है। ये हैं-पोषण, समूहीकरण, पुनः उत्पादन, पृथक्करण, अनुकूलन, समायोजन व प्रवास। यद्यपि सांस्कृतिक पर्यावरण मानव निर्मित होता है तथापि इस पर भौतिक पर्यावरण की स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। ये दोनों ही परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं और एक-दूसरे को निरन्तर प्रभावित करते रहते हैं।