कुछ विद्वानों ने शिक्षा की प्रक्रिया में निहित प्रक्रियाओं का उल्लेख करते हुए इसको एक त्रिमुखी प्रक्रिया कहा है। इस मान्यता के अनुसार शिक्षा के तीन अंग हैं—शिक्षक, पाठ्यक्रम तथा बालक। इस मान्यता के अनुसार शिक्षक तथा बालक के मध्य पाठ्यक्रम के माध्यम से संबंध स्थापित होता है। शिक्षा को एक त्रिमुखी प्रक्रिया स्थापित करने के लिए जॉन डीवी ने अपने दृष्टिकोण से व्याख्या प्रस्तुत की है। डीवी के अनुसार शिक्षा की प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिक पक्ष के साथ-ही-साथ सामाजिक पक्ष का भी समान रूप से महत्त्व है। शिक्षा की प्रक्रिया सदैव समाज में रहकर ही चलती है। समाज से बिल्कुल अलग रहकर शिक्षा की प्रक्रिया का चल पाना संभव नहीं है। यह भी कहा जा सकता है कि समाज के सहयोग से ही बालक का मनोवैज्ञानिक विकास भी सुचारू रूप से हो सकता है। इस प्रकार, शिक्षा द्वारा बालक को सामाजिक विकास भी होता है। अतः बालक को उस समाज के लिए शिक्षित करना चाहिए, आगे चलकर जिस समाज का उसे सदस्य बनना है। यह तभी हो सकता है। जबकि बालक का शिक्षा समाज के ही माध्यम से हो। समाज द्वारा ही यह निर्धारित किया जा सकता है। कि परिवर्तित होती हुई परिस्थितियों में बालक को कौन-कौन से विषय पढ़ाए जाने चाहिए तथा पढ़ाने के लिए किस-किस शिक्षण पद्धति को अपनाया जाना चाहिए जिससे कि बालक की कार्यकुशलता में वृद्धि हो तथा वह समाज द्वारा स्वीकृत आचरण करे। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पाठ्यक्रम का निर्धारण होता है। शिक्षक पाठ्यक्रम के अनुसार बालकों को शिक्षित करता है। इसी व्याख्या के आधार पर शिक्षा के तीन अंग माने जाते हैं–शिक्षक, पाठ्यक्रम तथा बालक।