जर्मन सामाजिक विचारधारा में वेबर का नाम उल्लेखनीय है। इन्हें राजनीतिक-अर्थशास्त्री तथा समाजशास्त्री दोनों रूपों में स्वीकार किया गया है। इन्हें भी समाजशास्त्र के प्रतिपादकों में से एक माना जाता है। इन्होंने भी समाजशास्त्र को वैज्ञानिक रूप देने का प्रयास किया। मैक्स वेबर के शब्दों में, समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रिया का अर्थपूर्ण बोध कराने का प्रयत्न करता है ताकि इसके घटनाक्रम (गतिविधि) एवं परिणामों की कार्य-कारण व्याख्या तक पहुँचा जा सके।” उपर्युक्त परिभाषा से यह स्पष्ट हो जाता है कि वेबर समाजशास्त्र की विषय-वस्तु सामाजिक क्रिया मानते हैं, इसलिए समाजशास्त्र का विस्तृत अर्थ तथा प्रकृति को समझने के लिए इसकी सामाजिक क्रिया की अवधारणा को समझना आवश्यक है।
मनुष्यों की सभी क्रियाएँ सामाजिक नहीं हैं, अपितु केवल सामाजिक संदर्भ में की जाने वाली क्रियाएँ ही . सामाजिक क्रियाएँ कहलाती हैं। उदाहरणार्थ- अकेले बैठे-बैठे हाथ उठाना कोई सामाजिक क्रिया नहीं है परंतु किसी के सामने हाथ जोड़ना एक सामाजिक क्रिया है। ‘क्रिया’ शब्द का अर्थ ‘कर्म’ या कार्य है, जबकि सामाजिक’ शब्द सामाजिक संदर्भ या सामाजिक परिस्थिति का द्योतक है। वेबर के अनुसार ‘क्रिया में वह सारा मानव व्यवहार आ जाता है जिसको कर्ता चेतना संबंधी अर्थ से संबंधित करता है। इस अर्थ में क्रिया बाहरी भी हो सकती है और आंतरिक या चेतना संबंधी भी। यह किसी परिस्थिति में सकारात्मक रूप से दखल देने अथवा जानबूझकर उस परिस्थिति से दूर रहने के रूप में हो सकती है। एक सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति की क्रियाएँ एवं व्यवहार सामाजिक संदर्भ में ही अर्थपूर्ण होते हैं; अतः सामाजिक संदर्भ में की जाने वाली क्रिया को ही सामाजिक क्रिया कहा जाता है।
वेबर के अनुसार ‘क्रिया’ में वह सारी व्यवहार आ जाता है जिसको क्रियारत व्यक्ति (कर्ता) चेतना संबंधी अर्थ से संबंधित करता है। इस अर्थ में क्रिया बाहरी भी हो सकती है तथा आतंरिक या चेतना संबंधी भी; यह किसी परिस्थिति में सकारात्मक रूप से दखल देने अथवा जानबूझकर उस परिस्थिति से दूर रहने के रूप में हो सकती है। वेबर के अनुसार, “किसी क्रिया को सामाजिक क्रिया तभी कहा जा सकता है जबकि उस क्रिया को करने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों के द्वारा लगाए गए चेतना संबंधी अर्थ के कारण यह क्रिया दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार द्वारा प्रभावित हो और उसी के अनुसार उसकी गतिविधि निर्धारित हो।’
वेबर का अर्थपूर्ण समाजशास्त्र व्यक्ति तथा उसकी क्रिया को एक मूल इकाई मानता है। व्यक्ति ही उच्च सीमा है तथा अर्थपूर्ण व्यवहार को करने वाला है। अन्य अवधारणाएँ; जैसे-‘राज्य’, ‘समिति’, ‘सामंतवाद’ इत्यादि मानवीय अंतःक्रियाओं को ही कुछ श्रेणियाँ हैं। इसलिए समाजशास्त्र का उद्देश्य इन अवधारणाओं को अर्थपूर्ण क्रियाओं में परिवर्तित करना है।