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मनोविज्ञान से आप क्या समझते हैं। इसके आधुनिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।

या

मनोविज्ञान के विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए इसकी उपयुक्त परिभाषा निर्धारित कीजिए।

या

“मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।

या

मनोविज्ञान का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी आधुनिक परिभाषा का विवेचन कीजिए।

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प्राणी कोई व्यवहार कब, क्यों और कैसे करता है? इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए ही मनोविज्ञान का जन्म हुआ। मनोविज्ञान के अध्ययन की परम्परा के साथ ही इसकी परिभाषा का प्रश्न उत्पन्न हुआ, क्योंकि परिभाषा के अभाव में किसी विषय का समुचित ज्ञान हो पाना सम्भव नहीं है। लेकिन मनोविज्ञान के अर्थ की परिभाषा को लेकर एक लम्बे समय तक विवाद चलता रहा है। मनोविज्ञान के विकास-क्रम में भिन्न-भिन्न स्तरों पर इसके अर्थ में परिवर्तन किया जाता रहा है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मनोविज्ञान (Psychology) के शाब्दिक अर्थ तथा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का सामान्य विवरण निम्नलिखित है–

मनोविज्ञान का अर्थ (Meaning of Psychology)
‘मनोविज्ञान’ शब्द को अंग्रेजी में साइकॉलाजी (Psychology) कहते हैं, जो यूनानी भाषा के दो शब्दों साइके (Psyche) तथा लोगेस (Logas) से मिलकर बना है। साइके का अर्थ है-‘आत्मा’ (Soul) तथा लोगेस का अर्थ है-‘विज्ञान’ (Science)। इस प्रकार साइकॉलाजी का अर्थ हुआ आत्मा का विज्ञान (Science of soul), परन्तु मनोविज्ञान के इस अर्थ को अब स्वीकार नहीं किया जाता है।

मनोविज्ञान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि(Historical Background of Psychology)
आधुनिक मनोविज्ञान के विकास से पूर्व इस विषय का अध्ययन दर्शनशास्त्र के ही अन्तर्गत किया जाता था। 16वीं शताब्दी के दार्शनिकों ने इसे मन का विज्ञान स्वीकार किया और इसके बाद शनैः-शनैः यह विषय दर्शनशास्त्र से अलग हो गया।

लिपजिंग विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की पहली प्रयोगशाला की स्थापना के साथ-साथ यह विषय प्रयोगात्मक विज्ञान की श्रेणी में आ गया और चेतना का विज्ञान स्वीकार किया गया। इस अर्थ में मनोविज्ञान की विषय-वस्तु चेतना की क्रियाओं का अध्ययन करना था। 1913 ई० में वाटसन द्वारा व्यवहारवाद की स्थापना के साथ ही मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान कहा जाने लगा। इस प्रकार समय में परिवर्तन के साथ-साथ मनोविज्ञान का अर्थ भी परिवर्तित होता गया।

मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र 9 मनोविज्ञान के प्रारम्भिक अर्थ से इसके आधुनिक एवं प्रचलित अर्थ तक पहुँचने में निम्नलिखित सोपान प्रकाश-स्तम्भ का कार्य करते हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है

प्रथम चरण: आत्म-दर्शन-ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व, प्रारम्भिक काल में मनोविज्ञान का अध्ययने दर्शनशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता था। यूनानी दार्शनिकों ने इस शास्त्र को ‘आत्म-दर्शन’ या ‘मानसिक दर्शन’ कहकर पुकारा था। प्लेटो ने मन और विचार को एक समझा तथा अरस्तू ने इसे ‘मानव की आत्मा का अध्ययन स्वीकार किया। इस प्रकार अपने प्रारम्भिक चरण में मनोविज्ञान का अर्थ ‘मानव की आत्मा के चारों ओर परिक्रमा कर रहा था।

द्वितीय चरण : मानसिक व्यापार–सत्रहवीं से अठारहवीं शताब्दी के मध्य चिन्तन की क्रियाओं का क्षेत्र विकसित हुआ जिसने साहचर्यवाद की विचारधारा को पुष्ट किया। अब मानसिक रोगियों तथा अपराधियों का अध्ययन मनोवैज्ञानिक दृष्टि से होने लगा था। इस चरण के प्रमुख विचारकों में रेन डेकार्ते, लाइबनीज, स्पीनोजा, बर्कले तथा डेविड ह्यूम का नाम प्रमुख है। अब मनोविज्ञान का अर्थ प्राणियों के मानसिक व्यापार तथा अनुभवों की ओर केन्द्रित होता जा रहा था।

तृतीय चरण : वैज्ञानिक प्रकृति-उन्नीसवीं शताब्दी के आस-पास मनोविज्ञान में जीव विज्ञान तथा भौतिक विज्ञान के नियमों के प्रवेश से मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक समझी जाने लगी। वुण्ट के प्रयासों से लिपजिग (जर्मनी) में मनोविज्ञान की प्रयोगशाला सबसे पहले स्थापित हुई और मेन अथवा चेतना के अनुभवों का मापन प्रयोगों की मदद से सम्भव हो सका। फलत: मनोविज्ञान का अर्थ मानव चेतना से मानव व्यवहार की ओर खिसकने लगा। इस चरण के विचारकों में वुण्ट के अलावा वेबर, गाल्टन, फेकनर, कैटल, जेम्स तथा ऐबिंगहास के नाम मुख्य हैं।

चतुर्थ चरण : व्यवहारवादी दृष्टिकोण–पावलोव के प्रतिबद्ध अनुक्रिया सिद्धान्त से प्रभावित वाटसन ने मनोविज्ञान को व्यवहार का नया अर्थ प्रदान किया। मैक्डूगल ने मनोविज्ञान को जीवित वस्तुओं के व्यवहार का विधायक विज्ञान बताया। मनोविश्लेषक फ्रायड ने अतृप्त इच्छाओं, कर्टलीविन ने ‘मनोवैज्ञानिक क्षेत्र की परिकल्पना’ तथा वर्दाईमर, कोहलर व कोफ्का ने ‘गेस्टाल्टवाद’ की क्विारधारा के माध्यम से मानव-व्यवहार को समझाया। स्पष्टत: बीसवीं शताब्दी के इस चरण में मनोविज्ञान को व्यवहारवादी दृष्टि से युक्त एक नया अर्थ मिला।

मनोविज्ञान के ऐतिहासिक अध्ययन पर आधारित उपर्युक्त चारों सोपान स्पष्ट करते हैं कि आत्मा, मन और चेतना-सम्बन्धी अर्थ बदलता हुआ मनोविज्ञान धीरे-धीरे व्यवहार के विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित हो गया। इस सन्दर्भ में मनोविज्ञान की बदलती हुई परिभाषाओं का विवरण निम्नवर्णित है

मनोविज्ञान की परिभाषा(Definition of Psychology)
मनोविज्ञान की विषय-वस्तु को स्पष्ट करने के लिए इनमें मनोवैज्ञानिकों ने समय-समय पर मनोविज्ञान की अनेक परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं। कुछ प्रमुख परिभाषाओं का विवरण निम्नलिखित है –

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(1) मनोविज्ञान आत्मा का विज्ञान है (Psychology is the Science of Soul) – सर्वप्रथम प्लेटो ने मनोविज्ञान को आत्मा का विज्ञान बताया। बाद में अरस्तू ने भी इसकी पुष्टि की।
आलोचना–लेकिन आत्मा का स्वरूप निर्धारित न होने के कारण यह परिभाषा मान्य न हो सकी। लोगों को आत्मा के अस्तित्व के विषय में नाना प्रकार की शंकाएँ होने लगीं। मनोवैज्ञानिकों ने आत्मा को मनोविज्ञान की खोज स्वीकार नहीं किया। इसके प्रमुख कारण निम्नवर्णित हैं –
(i) आत्मा एवं शरीर के पारस्परिक सम्बन्ध को स्पष्ट नहीं किया गया था;
(ii) आत्मा के स्वरूप को वैज्ञानिक दृष्टि से अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता था; और
(iii) इस विचारधारा के समर्थकों ने आत्मा के विविध अर्थ बताये; अत: विज्ञान की कसौटी पर मनोविज्ञान का आत्मा-विषयक अर्थ खरा नहीं उतर सका। फलतः अपने अस्थिर स्वरूप के कारण आत्मा की विज्ञान सम्बन्धी परिभाषा को मनोविज्ञान की विषय-वस्तु से निकाल दिया गया। विलियम जेम्स का कथन है, “मनोविज्ञान का शाब्दिक अर्थ है—आत्मा का विज्ञान, किन्तु यह परिभाषौ अस्पष्ट है; क्योंकि आत्मा क्या है ? इस प्रश्न का हम सन्तोषजनक उत्तर नहीं दे सकते।”
(2) मनोविज्ञान सन का विज्ञान है (Psychology is the Science of Mind) –‘आत्मा का विज्ञान की परिभाषा अस्पष्ट होने के कारण विद्वानों ने मनोविज्ञान को ‘मन का विज्ञान’ कहकर परिभाषित किया। उनके अनुसार मनोविज्ञान ‘मन’ या ‘मस्तिष्क से सम्बन्धित क्रियाओं का अध्ययन है। यद्यपि इस परिभाषा के आधार पर मनोविज्ञान की विषय-सामग्री को बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक समझाया जाता रहा, किन्तु आत्मा के सदृश मन की यह परिभाषा भी लोकप्रिय न हो सकी।
आलोचना – आलोचकों ने मनोविज्ञान को मन का विज्ञान मानने वालों के विरुद्ध ये तर्क प्रस्तुत किये –
⦁    यह स्पष्ट नहीं है कि मन और उसका स्वरूप क्या है ?
⦁    मनोविज्ञान में केवल मानसिक प्रक्रियाओं (Mental Processes) अथवा वृत्तियों (Modes) का ही अध्ययन किया जाता है।
⦁    इस परिभाषा से मनोविज्ञान की प्रकृति स्पष्ट नहीं होती, क्योंकि परिभाषा यह अभिव्यक्त नहीं कर पाती कि मनोविज्ञान एक विधायक विज्ञान है या नियामक विज्ञान।
⦁    इस परिभाषा में मनुष्यों और पशुओं के बाह्य व्यवहार को सम्मिलित नहीं किया गया जिसका इस शास्त्र में सबसे अधिक अध्ययन किया जाता है।
⦁    मनोविज्ञान को मन का विज्ञान बताने वाले विद्वान् स्वयं ही उसके एक सर्वमान्य अर्थ का निर्धारण नहीं कर सके।
(3) मनोविज्ञान चेतना का विज्ञान है (Psychology is the Science of Consciousness) – मनोविज्ञान के विकास की प्रक्रिया ने विद्वानों को मानव-व्यवहार को गहराई से अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। फलस्वरूप चेतना के अनुभवों को व्यवहारों का आधार माना जाने लगा। विलहेम वुर्पट, विलियम जेम्स तथा जेम्स सली ने कहा कि मनोविज्ञान चेतना से सम्बन्धित विज्ञान है। विलियम जेम्स ने लिखा, ‘मनोविज्ञान की सर्वोत्तम परिभाषा ‘चेतना की दशाओं का वर्णन और व्याख्या के रूप में दी जा सकती है।’
आलोचना – ईस परिभाषा की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की गई है –
⦁    मनोविज्ञान का प्रचलित अर्थ चेतना’ जैसे किसी तत्त्व को स्वीकार नहीं करता, न ही चेतना कोई बाह्य पदार्थ है। आधुनिक मनोविज्ञान तो चेतन प्रक्रियाओं को मानता है।
⦁    विद्वानों ने चेतना के अलग-अलग अर्थ बताये। कुछ विद्वान् इसे विशिष्ट द्रव्य मानते हैं, तो कुछ इसे धारा के रूप में स्वीकार करते हैं, तो कुछ चेतना की प्रक्रिया मानते हैं। वस्तुतः स्वयं इस मत के अनुयायी भी चेतना’ को एक निश्चित अर्थ प्रदान नहीं कर सके।
⦁    मनोविज्ञान की परिभाषा भी यह स्पष्ट नहीं कर पायी कि मनोविज्ञान को विधायक विज्ञान कहा जाए या कि नियामक विज्ञान।
⦁    चेतना के माध्यम से मानव-स्वभाव के सभी पक्षों को नहीं समझाया जा सकता। इसके लिए तो हमें मनुष्य के अचेतन, अर्द्धचेतन तथा अवचेतन सभी पक्षों को समझना होगा।
⦁    चेतना सम्बन्धी यह परिभाषा मनुष्य के व्यवहार की व्याख्या करने में भी असमर्थ रही। मैक्डूगल ने तो यहाँ तक कहा, “चेतना मूल रूप से एक बुरा शब्द है। यह मनोविज्ञान के लिए दुर्भाग्यपूर्ण रहा है कि यह शब्द सामान्य प्रयोग में आ गया।”
(4) मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है (Psychology is the Science of Behaviour) – बीसवीं शताब्दी के व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक जे० बी० वाटसन ने मनोविज्ञान को व्यवहार के विज्ञान के रूप में परिभाषित करते हुए लिखा, “एक ऐसा मनोविज्ञान लिखना सम्भव है …………… जिसकी ‘व्यवहार के विज्ञान के रूप में परिभाषा की जा सके।” विलियम मैक्डूगल के अनुसार, “मनोविज्ञान एक ऐसा विधायक विज्ञान है जिसमें जीवों के व्यवहारों का अध्ययन होता है।” वुडवर्थ ने भी इस विचारधारा को सहमति प्रदान करते हुए कहा है, “सर्वप्रथम मनोविज्ञान ने अपनी आत्मा का त्याग किया, फिर उसने अपने मस्तिष्क का त्याग किया, तत्पश्चात् उसने अपनी चेतना का परित्याग किया, अब वह व्यवहार की विधि को अपनाता है।”
आलोचना – मनोविज्ञान की उपर्युक्त परिभाषाएँ भी आलोचनाओं से नहीं बच सकीं। इनकी परिसीमाएँ निम्नलिखित हैं –
⦁    मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान बताने वाली इस परिभाषा में ‘व्यवहार’ शब्द का व्यापक अर्थ में प्रयोग नहीं किया। इसे अत्यन्त संकुचित अर्थों में प्रयोग किया गया है।
⦁    इस विचारधारा के अनुसार व्यवहार का अर्थ वातावरण में उपस्थित उत्तेजना के प्रति प्राणी की अनुक्रिया है। इस भाँति मनोविज्ञान उत्तेजना-अनुक्रिया (Stimulus-Response) का अध्ययन कहा जा सकता है, जबकि इसमें आन्तरिक प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित की जानी आवश्यक हैं।
⦁    यह परिभाषा मनोविज्ञान की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करती; अर्थात् मनोविज्ञान को कैसा विज्ञान समझा जाए–नियामक विज्ञान अथवा विधायक विज्ञान।

मनोविज्ञान की आधुनिक परिभाषाएँ (Modern Definitions of Psychology)
मनोविज्ञान की कुछ अन्य प्रमुख आधुनिक परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं –

⦁    मैक्डूगल के अनुसार, “मनोविज्ञान एक ऐसा विधेयक विज्ञान है जिसमें जीवों के व्यवहार का अध्ययन होता है।”
⦁    मर्फी के अनुसार, “मनोविज्ञान वह विज्ञान है जो उन अनुक्रियाओं का अध्ययन करता है जिन्हें जीवित व्यक्ति अपने वातावरण के प्रति करते हैं।’
⦁    चार्ल्स ई स्किनर के अनुसार, “मनोविज्ञान जीवन की विभिन्न परिस्थितियों के प्रति प्राणी की प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करता है। प्रतिक्रियाओं अथवा व्यवहार से तात्पर्य प्राणी की सभी प्रकार की प्रतिक्रियाओं, समायोजन, कार्य-व्यापारों तथा अनुभवों से है।”
⦁    जलोटा का मत है, “मनोविज्ञान मानसिक क्रियाओं का अध्ययन है, जिनका प्रदर्शन शारीरिक व्यवहारों में होता है और प्रत्यक्ष अनुभवों द्वारा उनका निरीक्षण होता है।”
⦁    थाउलैस के अनुसार, “मनोविज्ञान मानव के अनुभव एवं व्यवहार का यथार्थ विज्ञान है।”

निष्कर्ष – उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने पर मनोविज्ञान की निम्नलिखित विशेषताओं पर प्रकाश पड़ता है.
⦁    मनोविज्ञान मानव और पशु दोनों के व्यवहार का अध्ययन करने वाला एक विधायक विज्ञान है।
⦁    मनोविज्ञान मानव को मनः शारीरिक प्राणी अर्थात् मन और शरीर से युक्त प्राणी मानता है।
⦁    प्रत्येक मानव एक वातावरण में रहता है और उसमें उपस्थित विभिन्न तत्त्वों से क्रिया-प्रतिक्रिया करता है, जिसे ‘मानव-व्यवहार’ कहते हैं। मनोविज्ञान इसी मानव-व्यवहार के भिन्न-भिन्न पक्षों का क्रमबद्ध अध्ययन करता है।
⦁    मनोविज्ञान प्राणी के व्यवहार पर वातावरण के भौतिक तथा अभौतिक प्रभावों का अध्ययन करता है तथा अन्तिम रूप से प्राणियों की ज्ञानात्मक, क्रियात्मक तथा संवेगात्मक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करता है।

मनोविज्ञान की उपयुक्त परिभाषा – मनोविज्ञान की उपयुक्त परिभाषाओं की समीक्षा करने से यह ज्ञात होता है कि इनमें से कोई भी परिभाषा सर्वमान्य कहलाने की अधिकारी नहीं है। प्रत्येक परिभाषा में कुछ-न-कुछ दोष अवश्य है। अत: यह निश्चित नहीं किया जा सकता कि एक आदर्श परिभाषा की कसौटी पर किस परिभाषा को खरा समझा जाए। यद्यपि मैक्डूगल और वुडवर्थ की परिभाषाएँ एक ही सीमा तक तर्क संगत समझी जाती हैं, तथापि उसके आधार पर यह जोड़ना उचित होगा कि “मनोविज्ञान प्राणियों के व्यवहार का विधायक विज्ञान है और वातावरण के प्रति उन समस्त अनुक्रियाओं का क्रमबद्ध अध्ययन करता है जो उसके परिवेश के साथ समायोजन में सहायक होते हैं।”

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