मनोविज्ञान मनुष्य के व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन है और मनुष्य का व्यवहार प्राय: दो प्रकार की शक्तियों द्वारा संचालित होता है—बाह्य शक्तियाँ तथा आन्तरिक शक्तियाँ। मनुष्य के अधिकांश व्यवहार तो बाह्य वातावरण से प्राप्त उत्तेजनाओं के कारण उत्पन्न होते हैं, जब कि कुछ अन्य व्यवहार आन्तरिक शक्तियों द्वारा संचालित होते हैं। व्यवहारों को संचालित करने वाली ये आन्तरिक शक्तियाँ तब तक निरन्तर क्रियाशील रहती हैं जब तक कि व्यवहार से सम्बन्धित लक्ष्य सिद्ध नहीं हो जाता। इसके अतिरिक्त ये शक्तियाँ उस समय तक समाप्त नहीं होतीं, जिस समय तक प्राणी क्षीण अवस्था को प्राप्त होकर असहाय नहीं हो जाता अथवा मर ही नहीं जाता है। स्पष्टतः किसी प्राणी द्वारा विशेष प्रकार की क्रिया या व्यवहार करने को बाध्य करने वाली ये आन्तरिक शक्तियाँ ही प्रेरणा (Motivation) कहलाती हैं।
प्रेरणा का अर्थ एवं परिभाषा(Meaning and Definition of Motivation)
अर्थ – प्रेरणा का शाब्दिक अर्थ है-क्रियाओं को प्रारम्भ करने वाली, दिशा प्रदान करने वाली अथवा उत्तेजित करने वाली शक्ति। व्यक्ति को किसी विशिष्ट व्यवहार या कार्य करने के लिए उत्तेजित करने की शक्ति प्रेरणा कहलाती है। उदाहरण के लिए एक छोटे बच्चे को रोता हुआ देखकर उसकी माँ उसे दूध पिला देती है और बच्चा रोना बन्द कर देता है। रोना बच्चे का विशिष्ट व्यवहार या कार्य है। जिसका कारण उसकी भूख है। स्पष्ट रूप से भूख ही बच्चे के व्यवहार की प्रेरणा’ हुई। व्यक्ति द्वारा विशेष व्यवहार करने की इच्छा या आवश्यकता अन्दर से महसूस की जाती है। इस दशा या आन्तरिक स्थिति का नाम ही प्रेरणा-शक्ति (Force of Motivation) है और प्रेरणा-शक्ति ही हमारे व्यवहारों में विभिन्न मोड़ लाती है। प्रेरणा को जन्म देने वाला तत्त्व मनोविज्ञान में प्रेरक’ (Motive) के नाम से जाना जाता है।
परिभाषाएँ – विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रेरणा को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया गया है –
(1) गिलफोर्ड के अनुसार, “प्रेरणा कोई विशेष आन्तरिक अवस्था या दशा है जो किसी कार्य को शुरू करने और उसे जारी रखने की प्रवृत्ति से युक्त होती है।”
(2) वुडवर्थ के मतानुसार, “प्रेरणा व्यक्ति की एक अवस्था या मनोवृत्ति है जो उसे किसी व्यवहार को करने तथा किन्हीं लक्ष्यों को खोजने के लिए निर्देशित करती है।”
(3) लॉवेल के कथनानुसार, “प्रेरणा को अधिक औपचारिक रूप से किसी आवश्यकता द्वारा प्रारम्भ मनो-शारीरिक आन्तरिक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो इस क्रिया को जन्म देती है या जिसके द्वारा उस आवश्यकता को सन्तुष्ट किया जाता है।”
(4) किम्बाल यंग के अनुसार, “प्रेरणा एक व्यक्ति की आन्तरिक स्थिति होती है जो उसे क्रियाओं की ओर प्रेरित करती है।’
(5) एम० जॉनसन के अनुसार, “प्राणी के व्यवहार को आरम्भ करने तथा दिशा देने वाली क्रिया के सामान्य प्रतिमान के प्रभाव को प्रेरणा के नाम से जाना जाता है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि प्रेरणा (या प्रेरक) एक आन्तरिक अवस्था है जो प्राणी में व्यवहार या क्रिया को जन्म देती है। प्राणी में यह व्यवहार या क्रियाशीलता किसी लक्ष्य की पूर्ति तक बनी रहती है, किन्तु लक्ष्यपूर्ति के साथ-साथ प्रेरक शक्तियाँ क्षीण पड़ने लगती हैं।
प्रेरणायुक्त व्यवहार के लक्षण(Characteristics of Motivated Behaviour)
प्रेरणायुक्त व्यवहार के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं –
(1) अधिक शक्ति का संचालन – प्रेरणायुक्त व्यवहार का प्रथम मुख्य लक्षण व्यक्ति में कार्य करने की अधिक शक्ति का संचालन है। आन्तरिक गत्यात्मक शक्ति प्रेरणात्मक व्यवहार का आधार है। जिसके अभाव में व्यक्ति प्रायः निष्क्रिय हो जाता है। यह माना जाता है कि व्यक्ति के व्यवहार की तीव्रता जितनी अधिक होगी उसकी पृष्ठभूमि में प्रेरणा भी उतनी ही शक्तिशाली होगी। उदाहरण के लिए परीक्षा के दिनों में विद्यार्थी बिना थके घण्टों तक पढ़ते रहते हैं, जबकि सामान्य दिनों में वे उतना परिश्रम नहीं करते तथा क्रोध की अवस्था में एक दुबला-पतला-सा व्यक्ति कई लोगों के काबू में नहीं आता। प्रेरणा की दशा में इस प्रकार के अतिरिक्त शक्ति के संचालन का स्पष्टीकरण प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि शक्ति के इस अतिरिक्त संचालन का मुख्य कारण प्रबल प्रेरणा की दशा में उत्पन्न होने वाले शारीरिक एवं रासायनिक परिवर्तन होते हैं।
(2) परिवर्तनशीलता – प्रेरणायुक्त व्यवहार का दूसरा लक्षण उसमें निहित परिवर्तनशीलता या अस्थिरता का गुण है। वस्तुत: प्रत्येक व्यवहार अथवा क्रिया का कोई-न-कोई लक्ष्य/उद्देश्य अवश्य होता है। यदि किसी एक मार्ग, विधि, उपाय अथवा प्रयास द्वारा अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती है तो प्रेरित व्यक्ति लक्ष्य-सिद्धि के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास करता है। प्रयासों में एकरसता और पुनरावृत्ति का सगुण नहीं पाया जाता, अपितु आवश्यकतानुसार बराबर परिवर्तन की प्रवृत्ति देखने को मिलती है। इस प्रकार लक्ष्य प्राप्ति का सही मार्ग मिलने तक प्रेरित व्यक्ति मार्ग परिवर्तित करता रहता है।
(3) निरन्तरता – प्रेरणायुक्त व्यवहार या क्रिया के लगातार जारी रहने का लक्षण निरन्तरता कहलाता है। उद्देश्यानुसार प्रारम्भ की गई ये क्रियाएँ उस समय तक अनवरत रूप से चलती रहती हैं। जब तक कि लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता। कार्य पूर्ण हो जाने पर प्रेरणा की यह विशेषता स्वत: ही समाप्त या कम हो जाती है। कार्य की निरन्तरता अल्पकालीन भी हो सकती है तथा दीर्घकालीन भी। भूखा व्यक्ति भोजन पाने का तब तक ही निरन्तर प्रयास करता है जब तक कि उसे भोजन नहीं मिल जाता। भोजन प्राप्त होते ही उसके प्रयास या तो समाप्त हो जाते हैं या शिथिल पड़ जाते हैं।
(4) चयनता – प्रेरणायुक्त व्यवहार का एक प्रमुख लक्षण चयनता भी है। प्रेरित व्यक्ति अपनी आवश्यकता के अनुसार व्यवहार एवं अनुभव का चयन करता है। वह विभिन्न वस्तुओं के बीच से अधिक आवश्यक वस्तु का चयन करने त्था उसे पाने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए किसी प्यासे व्यक्ति के सम्मुख विभिन्न प्रकार के व्यंजन परोसे जाने पर भी अन्य व्यंजनों की तुलना में उसका प्रत्येक प्रयास जल को प्राप्त करने के लिए होगा।
(5) लक्ष्य प्राप्त करने की व्याकुलता – प्रेरणायुक्त व्यवहार में लक्ष्य प्राप्त करने की व्याकुलता पाई जाती है। यह व्याकुलता लक्ष्य पूर्ण होने तक बनी रहती है। अतः प्रेरित व्यवहार लक्ष्योन्मुख व्यवहार कहलाता है। परीक्षार्थी में परीक्षा पूर्ण होने तक व्याकुलता बनी रहती है और वह तनावग्रस्त रहता है।
(6) लक्ष्य-प्राप्ति पर व्याकुलता की समाप्ति – व्याकुलता उस समय तक बनी रहती है जब तक कि लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता। लक्ष्य-प्राप्ति के उपरान्त व्याकुलता समाप्त हो जाती है। पूर्वोक्त उदाहरण में परीक्षा समाप्त होते ही परीक्षार्थी की व्याकुलता समाप्त हो जाती है और वह तनावमुक्त होकर शान्त हो जाता है। इसी प्रकार भूख से व्याकुल व्यक्ति भोजन प्राप्त होते ही शान्ति लाभ करता है। और उसकी व्याकुलता समाप्त हो जाती है।