1. जलोढ़ पंख एवं जलोढ़ शंकु-मैदानी क्षेत्रों में धरातलीय ढाल कम होने के कारण नदी का वेग बहुत मन्द हो जाता है अत: उसकी परिवहन क्षमता भी बहुत ही कम रह जाती है। नदी अवसाद को अपने साथ पर्वतीय क्षेत्रों से बहाकर लाती है तथा उन्हें आगे ले जाने में असमर्थ रहने के कारण उनका निक्षेप वहीं पर्वतपदीय क्षेत्रों में कर देती है। इस क्षेत्र में नदी बजरी, मिट्टी, बालू, कंकड और कॉप मिट्टी का जमाव अर्द्ध-चन्द्राकार रूप में करती है, जिसे जलोढ़ पंख कहते हैं। इसमें महीन कणों का निक्षेपण किनारे पर दूर-दूर तथा मोटे कणों का निक्षेपण पास-पास होता है। जब पर्वतीय नदी अपेक्षाकृत ऊँचे भाग से मैदान में उतरती है तो जलोढ़ पंख निर्मित होते हैं किन्तु क्रमशः निक्षेपण द्वारा इनकी ऊँचाई बढ़ती जाती है जिससे शंक्वाकार आकृति का निर्माण होता है। यही आकृति जलोढ़ शंकु कहलाती है।
2. रॉक बेसिन तथा टार्न-यह हिमनद द्वारा बनी स्थलाकृति है। वास्तव में सर्क की तली (Basin) में हिमनद के अत्यधिक दबाव तथा अपरदन से कालान्तर में एक गड्ढे का निर्माण होता है, जिसे रॉक बेसिन कहते हैं। जब तापमान अधिक होने पर हिम पिघल जाता है तो रॉक बेसिन में जल भरा रह जाता है। इस प्रकार एक झील का निर्माण होता है, जिसे टार्न कहते हैं।