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बैंक तथा ग्राहक के मध्य सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।

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बैंक और ग्राहक का सम्बन्ध 

बैंक और ग्राहक का सम्बन्ध जानने से पूर्व बैंक और ग्राहक का अर्थ जान लेना चाहिए। बैंक का अर्थ बैंक वह संस्था है, जो मुद्रा को व्यवसाय करती है। यह एक ऐसी संस्था है जहाँ धन जमा कराने, ऋण देने एवं कटौती की सुविधाएँ दी जाती हैं।

ग्राहक का अर्थ 

ग्राहक की कोई वैधानिक परिभाषा नहीं होती है। सामान्यत: ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसका बैंक में खाता है, वह ग्राहक कहलाती है। सामान्यत: बैंक और ग्राहक के मध्य तीन प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं

1. ऋणी और ऋणदाता को सम्बन्ध 

बैंक और ग्राहक के मध्ये सबसे महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध ऋणी एवं ऋणदाता का है। जब ग्राहक बैंक में धन जमा कराता है, तो बैंक को इस धन का इच्छानुसार उपयोग करने का अधिकार मिल जाता है। ऐसी स्थिति में बैंक ऋणी तथा ग्राहक ऋणदाता होता है। इसके विपरीत जब ग्राहक अपने खाते में जमा राशि से अधिक राशि निकालता है, तो बैंक ऋणदाता तथा ग्राहक ऋणी होगा। ऋणी व ऋणदाता के रूप में बैंक और ग्राहक के मध्य निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं

⦁    ऋण के उपयोग की स्वतन्त्रता बैंक अपने ग्राहकों के जमा धन को अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकता है।

⦁    ऋण लौटाने की स्वतन्त्रता न होना बैंक ग्राहकों की धनराशि को इच्छानुसार  नहीं लौटा सकता है। वह इस राशि को तभी लौटा सकता है, जब ग्राहक भुगतान प्राप्त करना चाहता है।

⦁    ग्राहकों के खातों व धनराशि की गोपनीयता बैंक अपने ग्राहकों के खातों की स्थिति गोपनीय रखता है।

2. अभिकर्ता (एजेण्ट) और प्रधान का सम्बन्ध वर्तमान समय में बैंक अपने ग्राहकों को अभिकर्ता के रूप में अनेक प्रकार की सेवाएँ प्रदान करते हैं; जैसे

⦁    ग्राहकों के चैकों, प्रतिज्ञा-पत्रों, विनिमय बिलों, आदि का भुगतान प्राप्त करना।

⦁    ग्राहक के ऋणपत्रों पर ब्याज, लाभांश, ऋण की राशि, मकान का किराया, आदि वसूल करना।

⦁    ग्राहक की ओर से ऋणों की किस्तें, ब्याज, चन्दा, किराया, बीमे की किस्तें, कर, आदि का भुगतान करना।

⦁    ग्राहकों के धन का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण करना।

⦁    ग्राहक की ओर से प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना।

⦁    ग्राहक के आदेशानुसार अन्य कार्य करना।

3. धरोहरधारी और धरोहरकर्ता का सम्बन्ध 

बैंक ग्राहकों को धन, बहुमूल्य प्रपत्र एवं अन्य महँगी वस्तुएँ सुरक्षार्थ रखते हैं। इन वस्तुओं का स्वामित्व तो ग्राहक का ही होता है, लेकिन अधिकार बैंक के पास रहता है। बैंक का उन वस्तुओं को सुरक्षित रखने व माँगने पर वापस लौटाने का दायित्व होता है। इस प्रकार, बैंक एक धरोहरधारी व धरोहरकर्ता के रूप में कार्य करता है। बैंक ग्राहक की धरोहर को सुरक्षित रखने व इसे लौटाने की गारण्टी देता है। यदि लापरवाही  से ग्राहक की कोई हानि होती है, तो बैंक ही इसके लिए उत्तरदायी होता है। इस प्रकार मूल्यवान् वस्तु को धरोहर के रूप में रखने वाले ग्राहक को ‘धरोहरकर्ता एवं बैंक को ‘धरोहरधारी’ कहते हैं।

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