(अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड’ में संकलित ‘ममता’ नामक कहानी से उधृत है। इसके लेखक छायावादी युग के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं।
अथवा निम्नवत् लिखिए
पाठ का नाम-ममता। लेखक का नाम-श्री जयशंकर प्रसाद।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या – श्री जयशंकर प्रसाद जी कह रहे हैं कि सारनाथ के बौद्ध विहार के खण्डहरों में रहने वाली ममता ने मन-ही-मन सोचा कि यह विपत्ति अचानक कहाँ से आ गयी। ममता ब्राह्मणी थी, उसे हुमायूँ पर दया आ गयी। उसने हुमायूँ को जल दिया। जल पीने के पश्चात् हुमायूँ को होश आया।
ममता अपने मन में सोचने लगी कि मैंने इस मुगल को जल देकर उचित नहीं किया। इसके प्राण तो बच गये लेकिन क्या पता अब यह मेरे साथ कैसा व्यवहार करेगा क्योंकि सभी विधर्मी दया के योग्य नहीं होते। अपने पिता के वध का स्मरण कर उसका मन विरक्त हो गया; क्योंकि पितृ-हन्ता को तो कदापि आश्रय न देना चाहिए।
(स) 1. गद्यांश में वर्णित व्यक्ति बाबर का पुत्र हुमायूँ है। हुमायूँ चौसा के युद्ध में शेरशाह से पराजित होकर भागता है और भागते हुए सारनाथ के खण्डहरों में आश्रय पाता है और ममता से उसकी कुटिया में विश्राम करने की आज्ञा देने का आग्रह करता है।
2. व्यक्ति कहता है कि मैं युद्ध में पराजित हो गया हूँ। प्यास के कारण मेरा गला सूख रहा है। मुझसे मेरे साथी अलग हो गये हैं। थकान के कारण घोड़ा गिर पड़ा है। इतना थका हुआ हूँ कि चलने में भी असमर्थ हूँ। यह कहते हुए वह पृथ्वी पर ही बैठ जाता है। उसके सामने मानो सम्पूर्ण सृष्टि घूमने लगती है अर्थात् आँखों के आगे अँधेरा छा जाता है।