(i) यदि सम्भव हो तो माना (3 + √2) एक परिमेय संख्या है तथा हम जानते हैं कि 3 एक परिमेय संख्या है तथा यह भी जानते हैं कि दो परिमेय संख्याओं का अन्तर भी एक परिमेय संख्या होती है। (3 +√2 - 3) भी एक परिमेय संख्या है
अर्थात् √2 एक परिमेय संख्या है जोकि एक विरोधाभास है
क्योंकि √2 एक अपरिमेय संख्या है।
अत: 3 + √2 एक अपरिमेय संख्या है।
(ii) यदि सम्भव हो तो माना 5 + 3√2 एक अपरिमेय संख्या नहीं है
तब परिमेय संख्या की परिभाषा से,

(iv) यदि सम्भव हो तो माना कि 4 – √3 एक परिमेय संख्या है तथा हम जानते हैं कि 3 एक परिमेय संख्या है तथा यह भी जानते हैं कि दो परिमेय संख्याओं का अन्तर भी एक परिमेय संख्या होगी। अतः (4 – √3 – 4) भी एक परिमेय संख्या है
अर्थात् √3 एक परिमेय संख्या है जोकि एक विरोधाभास है। क्योंकि √3 एक अपरिमेय संख्या है।
अतः 4 – √3 एक अपरिमेय संख्या है।