मानवीय संसाधन
प्रत्येक देश की सम्पदा मुख्यतया दो भागों में विभाजित की जाती है– (i) प्राकृतिक संसाधन; जैसे-भूमि, खनिज पदार्थ, जल, वन, पशु आदि तथा
(ii) मानवीय संसाधन अर्थात् जनसंख्या। मानवीय संसाधन का अर्थ किसी देश में निवास करने वाली जनसंख्या से लगाया जाता है। किसी देश के आर्थिक विकास में उसके मानवीय संसाधनों (जनसंख्या) की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। मानवीय संसाधन के अन्तर्गत देश की जनसंख्या के आकार के अतिरिक्त उसकी कुशलता, शिक्षा, उत्पादकता तथा दूरदर्शिता को सम्मिलित किया जाता है। नि:सन्देह जनसंख्या के आकार की दृष्टि से भारत एक सौभाग्यशाली देश है, किन्तु देश में कुशल, शिक्षित तथा प्रशिक्षित कार्यशील जनसंख्या की अत्यधिक कमी है। साथ ही देश में जनाधिक्य की समस्या भी विद्यमान है। इसीलिए भारतीय मानवीय संसाधन देश के आर्थिक विकास के लिए समुचित नहीं माने जाते।
मानव संसाधन और आर्थिक विकास
किसी देश की सम्पूर्ण जनसंख्या को मानव संसाधन नहीं कहा जाता, अपितु जनसंख्या के केवल उस भाग को मानव संसाधन कहा जाता है जो शिक्षित हो, कुशल हो तथा जिसमें अर्जन या उत्पादन करने की क्षमता हो। इस प्रकार मानव संसाधन वह मानव पूंजी है, जिसे प्राकृतिक साधनों में लगाकर देश को आर्थिक विकास किया जाता है। दूसरे शब्दों में, यह भी कह सकते हैं कि देश के सम्पूर्ण मानव संसाधन को तो जनसंख्या कही जा सकता है, किन्तु पूरी जनसंख्या को मानव संसाधन नहीं कहा जा सकता।
पर्यावरण या प्राकृतिक संसाधन से आशय उन सभी प्राकृतिक वस्तुओं से लिया जाता है, जो हमारे चारों ओर व्याप्त हैं। ये वस्तुएँ हैं-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति व जीव-जन्तु।
प्रकृति ने भारत को प्राकृतिक या पर्यावरणीय संसाधन उपहार के रूप में बड़ी उदारता से प्रदान किये हैं तथा इन पर्यावरणीय संसाधनों का सदुपयोग करने के लिए विशाल जनसंख्या भी दी है, किन्तु हमारी अधिकांश जनसंख्या मानव संसाधन के रूप में नहीं है। अत: हम अपने अपार पर्यावरणीय संसाधनों का उपयोग देश के विकास में उतना नहीं कर पा रहे हैं जितना कि करना चाहिए।
इसी प्रकार, यदि किसी देश के पास पर्यावरणीय या प्राकृतिक संसाधन तो हों, किन्तु उन संसाधनों का दोहन या उपयोग करने के लिए पर्याप्त मानवीय संसाधन; अर्थात् कुशल जनसंख्या न हो तो वह देश अपने प्राकृतिक संसाधनों से देश के आर्थिक विकास के लिए कोई लाभदायक कदम नहीं उठा सकता। अतः स्पष्ट है कि किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए केवल प्राकृतिक संसाधनों का होना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उनके साथ-साथ मानवीय संसाधनों; अर्थात् कुशल जनसंख्या का होना भी जरूरी है।