आवश्यकता का अर्थ
परिवार एक ऐसी सामाजिक संस्था है, जो अपने सदस्यों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यापक प्रयास करती है। आवश्यकताओं को अनुभव करना तथा उनकी पूर्ति करना ही जीवन है। अब प्रश्न उठता है कि आवश्यकता से क्या आशय है? व्यक्ति की आवश्यकताएँ मूल रूप से व्यक्ति की कुछ विशिष्ट इच्छाएँ ही होती हैं, परन्तु व्यक्ति की समस्त इच्छाओं को उसकी आवश्यकताएँ नहीं माना जा सकता। इच्छाएँ हमारी भावनाओं से पोषित होती हैं। वे भौतिक जगत् की यथार्थताओं से दूर होती हैं, परन्तु आवश्यकताओं का सीधा सम्बन्ध भौतिक यथार्थताओं से होता है। आवश्यकताएँ हमारे भौतिक साधनों के अनुरूप होती हैं। इस प्रकार हमारी प्रबल इच्छाएँ तथा साधनानुकूल इच्छाएँ ही हमारी आवश्यकताएँ बन जाती हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि हम उस इच्छा को आवश्यकता कह सकते हैं जिसमें कल्पना के अतिरिक्त अन्य तीन तत्त्व भी विद्यमान हैं। ये तत्त्व हैं क्रमशः इच्छा की प्रबलता, इच्छा को पूर्ण करने के लिए समुचित प्रयास तथा इच्छापूर्ति के लिए सम्बन्धित त्याग के लिए तत्परता। इस प्रकार से हम व्यक्ति की उस इच्छा को आवश्यकता कह सकते हैं जिस इच्छा को पूरा करने के लिए उस व्यक्ति के पास समुचित साधन हैं तथा साथ-ही-साथ वह व्यक्ति उस इच्छा को पूरा करने के लिए सम्बन्धित साधन को इस्तेमाल करने के लिए तत्पर भी हो। आवश्यकता के अर्थ को पेन्शन ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “आवश्यकता विशेष वस्तुओं की पूर्ति हेतु एक प्रभावपूर्ण इच्छा है जो उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक प्रयत्न अथवा त्याग के रूप में प्रकट होती है।” आवश्यकता के अर्थ एवं प्रकृति को ध्यान में रखते हुए स्मिथ तथा पैटर्सन ने स्पष्ट किया है, ”आवश्यकता किसी वस्तु को प्राप्त करने की वह इच्छा है जिसे पूरा करने के लिए मनुष्य में योग्यता है और वह उसके लिए व्यय करने के लिए तैयार हो।”परिवार की मूल आवश्यकताएँ
मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताएँ होती हैं। आज के वैज्ञानिक युग में निरन्तर बढ़ती हुई आवश्यकताओं ने मानव-जीवन को बड़ा जटिल बना दिया है। आज किसी के पास कितना ही धन हो, वह उसकी आवश्यकता के अनुपात में कम ही प्रतीत होता है। अतः कुशल संचालन के लिए आवश्यक है कि गृहिणी को आवश्यकताओं की जानकारी हो, जिससे वह कुशलतापूर्वक उनकी पूर्ति कर सके।
अनिवार्य आवश्यकताएँ ही मूल आवश्यकताएँ कहलाती हैं, जो प्रत्येक परिवार में प्राय: निम्नलिखित होती हैं
(1) भोजन:
पोषक तत्वों से युक्त सन्तुलित भोजन परिवार की प्रथम मूल आवश्यकता है। परिवार के सभी सदस्यों (बच्चे, स्त्री व पुरुष) को पोषणयुक्त भोजन पर्याप्त मात्रा में मिलना चाहिए।
(2) वस्त्र:
परिवार के सभी सदस्यों को पर्याप्त एवं उपयुक्त वस्त्र उपलब्ध होने चाहिए। उपयुक्त वस्त्रों से हमारा तात्पर्य है कि ये मौसम, व्यक्तिगत रुचि, सामाजिक स्थिति, रीति-रिवाजों आदि के अनुरूप होने चाहिए।
(3) आवासीय व्यवस्था:
परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं के अनुसार उचित आवास का होना एक अनिवार्य आवश्यकता है। पर्याप्त एवं शुद्ध जल, वायु, सूर्य का प्रकाश इत्यादि का उपलब्ध होना उचित आवास की आवश्यक विशेषताएँ हैं।
(4) शिक्षा:
बच्चों की अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करना परिवार की मूल एवं अनिवार्य आवश्यकता है। उपयुक्त शिक्षा से व्यक्तित्व का विकास होता है। अतः बालक-बालिकाओं की शिक्षा का प्रबन्ध करना अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उपयोगी सूचना देने वाली पत्र-पत्रिकाओं का भी प्रत्येक परिवार के लिए अलग महत्त्व है, क्योंकि ये सदस्यों के स्वास्थ्य, मनोरंजन, राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक ज्ञान में वृद्धि करती हैं।
(5) चिकित्सा एवं स्वास्थ्य रक्षा:
पोषणयुक्त भोजन, आवश्यक व्यायाम, मौसम के अनुरूप वस्त्र एवं घर व आस-पास की स्वच्छता आदि परिवार के सदस्यों को स्वस्थ रखने के लिए अति आवश्यक हैं। इनका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। किसी भी सदस्य के बीमार पड़ने पर उसे उपयुक्त चिकित्सा उपलब्ध होनी चाहिए।
(6) बच्चों की देखभाल:
बच्चे परिवार एवं देश का भविष्य होते हैं। अतः स्वास्थ्य, विकास, शिक्षा व आचार-व्यवहार के दृष्टिकोण से उनकी देखभाल अति आवश्यक है। बच्चों की उचित देखभाल को परिवार की मूल आवश्यकताओं में सम्मिलित किया जाता है।
(7) मनोरंजन:
मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ मनोरंजन अति आवश्यक है। अतः परिवार में मनोरंजन के यथा योग्य साधन अवश्य उपलब्ध होने चाहिए।
(8) प्रेम, स्नेह एवं सहयोग:
एकाकी परिवार में प्राय: पति-पत्नी एवं उनके अविवाहित बच्चे होते हैं। संयुक्त परिवार पति-पत्नी, उनके माता-पिता व भाई-बहनों के संयुक्त रूप से रहने के कार अधिक बड़ा हो जाता है। परिवार छोटा हो या फिर बड़ा, दोनों ही में सदस्यों के स्नेह व परस्पर सह की भावना का होना आवश्यक है। परिवाररूपी सामाजिक संस्था का कुशल संचालन प्रेम, स्नेह एवं सहयोग पर ही निर्भर करता है। यह प्रवृत्ति भी परिवार की मूल आवश्यकता है।
(9) आय:
यह परिवार की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। धन से प्रायः सभी भौतिक आवश्यकताएँ क्रय की जा सकती हैं। परिवार में धन का प्रमुख स्रोत पारिवारिक आय होती है। प्रत्येक परिवार की आय प्राय: सभी सदस्यों की मूल आवश्यकताओं को पूर्ण करने के योग्य होनी चाहिए।
(10) बचत:
आकस्मिक संकटों (बीमारी आदि) का सामना करने के लिए अतिरिक्त धन की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त लड़के-लड़कियों के विवाह, लड़कों के व्यवसाय एवं धार्मिक कार्यों आदि में भी अकस्मात् ही धन की आवश्यकता पड़ती है। धन की इस आकस्मिक आवश्यकता की पूर्ति एक बुद्धिमान् गृहिणी नियमित बचत द्वारा करती है। अतः प्रत्येक गृहिणी का कर्तव्य है कि वह आय-व्यय में सन्तुलन रखकर परिवार के भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उचित एवं अधिक-से-अधिक बचत करे। प्राथमिक एवं गौण आवश्यकताओं में भिन्नता लाना इतना सरल नहीं है जितना हम समझते हैं। वास्तव में जो वस्तु एक परिवार के लिए विलासिता की श्रेणी में है, वह वस्तु किसी अन्य परिवार के लिए अनिवार्य आवश्यकता की श्रेणी में मानी जा सकती है। अतः विभिन्न आवश्यकताएँ परिवार की आर्थिक दशा, रहन-सहन एवं समाज में स्तर तथा प्रतिष्ठा के अनुसार प्राथमिक अथवा गौण हो सकती हैं। परिवार के मुखिया तथा अन्य सदस्यों का दायित्व है कि वे पारिवारिक परिस्थितियों एवं उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखते हुए पारिवारिक आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित कर लें तथा उनकी क्रमिक पूर्ति के लिए प्रयास करें।