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व्यक्तिगत स्वच्छता क्यों आवश्यक है? आप बालकों में स्वच्छता की आदत कैसे डालेंगी? समझाइए।

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व्यक्तिगत स्वच्छता क्यों आवश्यक है? एक तीन वर्ष के बालक को स्वच्छता की आदत आप कैसे सिखाएँगी ?

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व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला मुख्यतम कारक है-व्यक्तिगत स्वच्छता। व्यक्तिगत स्वच्छता से आशय है-व्यक्ति की आन्तरिक एवं बाहरी शारीरिक स्वच्छता। वास्तव में, शारीरिक स्वच्छता के अभाव में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के रोगों का शिकार हो सकता है। गन्दगी में विभिन्न रोगों के जीवाणु अधिक पनपते हैं। अतः हमें अपने स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखने के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। व्यक्तिगत स्वच्छता के अन्तर्गत मुख्यतः शरीर की त्वचा, मुंह, आँख, नाक, कान, बालों तथा पेट की स्वच्छता का ध्यान रखना अनिवार्य होता है। इसके साथ-साथ शरीर पर धारण किए जाने वाले वस्त्रों की सफाई भी अति आवश्यक मानी जाती है।
व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने के लिए स्वास्थ्य के नियमों का भली-भाँति न केवल ज्ञान होना चाहिए, बल्कि उसे आपनी आदतें भी इस प्रकार बना लेनी चाहिए कि वह चाहे एक बार भोजन न करे, लेकिंन स्वच्छता का पूरा-पूरा ध्यान रखे।

व्यक्तिगत स्वच्छता का महत्त्व-व्यक्तिगत स्वच्छता उत्तम स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक है। यह प्रत्येक आयु वर्ग के व्यक्ति के लिए अत्यावश्यक है। इससे होने वाले विभिन्न लाभों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

  1. स्वच्छ व्यक्ति मानसिक रूप से प्रसन्न व शारीरिक रूप से स्फूर्तियुक्त रहता है।
  2. स्वच्छ रहने पर त्वचा कान्तियुक्त रहती है तथा चर्म रोगों की आशंका बहुत कम रहती है।
  3. मुँह एवं दाँतों की नियमित स्वच्छता के फलस्वरूप मुँह में दुर्गन्ध नहीं रहती तथा पायरिया जैसे गन्दे रोगों की आशंका नहीं रहती।
  4. नाखूनों को समय-समय पर काटते रहने व इनकी सफाई करने से नाखून सुन्दर दिखाई पड़ते हैं। इससे टायफाइड जैसे भयानक ज्वर के फैलने की सम्भावना घटती है तथा अन्य बहुत से रोगों से बचाव होता है।
  5. बालों को स्वच्छ रखने से व्यक्तिगत सौन्दर्य में वृद्धि होती है। स्वच्छ बालों में जूं व रूसी नहीं होतीं।
  6. नेत्रों को स्वच्छ रखने से ये अधिक क्रियाशील व रोगमुक्त रहते हैं।’
  7. नाक को प्रतिदिन स्वच्छ जल से साफ करने से श्वसन-वायु के साथ कीटाणुओं के प्रवेश की आशंका कम हो जाती है।
  8. कानों की आवश्यक सफाई करने से श्रवण-शक्ति ठीक बनी रहती है।

बच्चों में स्वच्छता की आदत डालना
स्वच्छता सम्बन्धी आदतों का निर्माण उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए अत्यावश्यक है। इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए बाल्यकाल ही उपयुक्त अवस्था है, क्योंकि बाल्यावस्था में पड़ी आदतें जीवनपर्यन्त बनी रहती हैं। छोटे बच्चे माता-पिता, भाई-बहनों व साथ के बड़े बच्चों की गतिविधियों का प्राय: अनुसरण करते हैं। इस प्रकार से बच्चों को अनुसरणीय वातावरण स्कूल व घर में मिलता है। अतः माता-पिता, भाई-बहनों व शिक्षकों का कर्तव्य है कि वे इस सम्बन्ध में सदैव बच्चों का विशेष ध्यान रखें। बड़े व्यक्तियों, विशेष रूप से माता-पिता को बच्चों के सामने स्वच्छता, नियमबद्धता व सुव्यवस्था का सदैव प्रदर्शन व पालन करना चाहिए।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बुरी आदतों को छुड़ाने की अपेक्षा अच्छी आदतों की उत्पत्ति का कार्य अधिक सरल है। अतः अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों में निम्नलिखित अच्छी आदतों के विकास के लिए हर सम्भव उपाय करें

(1) नियमित समय पर उठना सोना:
अच्छे स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त निद्रा आवश् श्यक है। अतः समये पर रात्रि में सोना और सुबह-सवेरे निश्चित समय पर जागना अच्छी आदत है।

(2) नियमित समय पर शौच-निवृत्ति:
सुबह उठने के तुरन्त बाद शौच-निवृत्ति का कार्य आवश्यक है। बच्चों को इस कार्य के लिए प्रेरित करना चाहिए।

(3) दाँतों और मुँह की सफाई:
शौच-निवृत्ति के पश्चात् दाँतों और मुँह की भली-भाँति सफाई करनी चाहिए।

(4) नियमित रूप से व्यायाम:
नियमित व्यायाम शरीर को क्रियाशील एवं स्वस्थ रखता है। बच्चों को इस कार्य के लिए आवश्यक निर्देश देने चाहिए।

(5) नियमित रूप से स्नान:
स्नान से शरीर में ताजगी और स्फूर्ति आती है। बच्चों को नियमित रूप से स्नान करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

(6) निश्चित समय पर स्वच्छता से भोजन:
भोजन हमेशा करके तथा सही समय पर स्वच्छ स्थान पर करना चाहिए।

(7) घर में गन्दगी फैलाना:
घर को स्वच्छ रखना चाहिए। इसके लिए बच्चों को प्रारम्भ से ही आवश्यक उपाय बताए जाने चाहिए।
बच्चों में स्वच्छता की आदतों को उत्पन्न करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें

  1. बच्चों में प्रायः अनुकरण की प्रवृत्ति पाई जाती है; अतः इनमें आदतों का निर्माण सहज ही सम्भव है।
  2. परामर्श की अपेक्षा सक्रिय उदाहरण सदैव ही अधिक प्रभावकारी होते हैं।
  3. किसी भी कार्य की बार-बार पुनरावृत्ति उसकी आदत के रूप में निर्माण का आधार होती है। उदाहरण के लिए-3-5 वर्ष का बच्चा यदि कुछ शब्दों का उच्चारण तुतलाकर करता है, तो उसकी नकल न बनाकर उसे बार-बार शुद्ध उच्चारण के लिए प्रेरित करें, इससे उसे धीरे-धीरे साफ बोलने की आदत पड़ेगी।
  4. स्वास्थ्य सम्बन्धी क्रियाओं का एक निश्चित कार्यक्रम बनाकर बच्चों से उसका अनुकरण दृढ़तापूर्वक कराना चाहिए।
  5. बुरी आदतों के लिए बच्चों को सदैव हतोत्साहित करना चाहिए। जगह-जगह थूकना, कूड़े-कचरे को इधर-उधर फैलानी, वस्तुओं की तोड़-फोड़ करना इत्यादि बुरी आदतों के लिए बच्चों को रोकना व समझाना चाहिए।
  6. बच्चों के कमरे में प्रेरणादायक चित्र; जैसे कि टूथपेस्ट करता हुआ बच्चा, पढ़ता हुआ बच्चा, स्कूल जाते हुए बच्चे आदि; लगाने चाहिए। इससे बच्चों को अच्छी आदतों की प्रेरणा मिलती है।
  7. कुछ बच्चों में जिद करने की, मिट्टी खाने की व गन्दगी फैलाने की बुरी आदतें होती हैं। इस प्रकार के बच्चों से अपने बच्चे को यथासम्भव दूर रखें।

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