1.सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से उद्धृत है। इन पंक्तियों में लेखक ने अपने बचपन की एक घटना का वर्णन किया है। स्कूल जाते समय एक कुआँ पड़ता, जो सूख गया है। पता नहीं एक काला साँप उसमें कैसे गिर पड़ा था। स्कूल जाते समय बच्चे उसकी फुसकार सुनने के लिए पत्थर मारते थे।
2.रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक कहता है कि ”मैं बचपन में साँप से फुसकार करवा लेना महान् कार्य समझता था। मैं और छोटा भाई जब कुएँ की तरफ से गुजरे तो फुसकार सुनने की इच्छा बलवती हुई । मैं कुएँ की तरफ बढ़ा और छोटा भाई मेरे पीछे हो गया। कुएँ के किनारे से मैंने एक ढेला उठाया और एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर प्रहार किया, लेकिन मैं एक अजीब संकट में फँस गया। टोपी उतारते हुए मेरी तीनों चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। साँप ने फुसकारा था या नहीं मुझे आज भी ठीक से याद नहीं है। मेरी स्थिति उस समय वही हो गयी थी जैसे घास चरते हुए हिरन की आत्मा गोली लगने पर निकल जाती है और वह तड़पता रहता है। चिट्ठियों के कुएँ में गिरने से मेरी भी स्थिति हिरन जैसी हो गयी थी।”
3.लेखक को टोपी उतारते हुए तीन चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। उस समय लेखक पर बिजली-सी गिर पड़ी।