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निबन्ध : मेले का वर्णन

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प्रत्येक देश में मेले अति प्राचीनकाल से लगते आए हैं। प्राचीनकाल में मनुष्यों ने आपस में मिलने-जुलने और प्रसन्न होने के लिए मेलों की योजना बनाई थी। मेलों में दूर-दूर से मनुष्य आते हैं। कोई तमाशा देखने आता है तो कोई सामान खरीदने आता है। कोई पैसा कमाने आता है तो कोई खर्च करने आता है। प्रायः प्रत्येक मेले में खूब भीड़ इकट्ठी हो जाती है।

हमारे नगरों में भी प्रतिवर्ष प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है। इस प्रदर्शनी का आयोजन नगर के सभी बड़े अधिकारी मिलकर करते हैं। इस प्रदर्शनी में चौबीस घण्टे बड़ी चहल-पहल रहती है। जब हम प्रदर्शनी देखने पहुँचे तो देखते हैं कि मेले के मुख्य द्वार से पहले ही काफी दूर तक दुकानें सजी हुई थीं। सड़क के किनारे-किनारे खिलौने वाले तथा तमाशे वाले बैठे हुए थे। छोटे-छोटे बच्चे बाहर इधर-से-उधर आ-जा रहे थे। कोई खिलौने खरीद रहा था तो कोई पकौड़ियाँ ले रहा था। धीरे-धीरे हम भी आगे बढ़े। जैसे-जैसे हम मेले की ओर बढ़ते जाते थे, वैसे-वैसे भीड़ भी बढ़ती जा रही थी। धीरे-धीरे हम लोग प्रदर्शनी के मुख्य द्वार पर पहुँच गए। मुख्य द्वार को हजारों बर; से सजाया गया था। भीड़ के कारण बड़ी कठिनाई से हम लोग मुख्य द्वार के अन्दर प्रवेश कर मेले के मुख्य बाजार में पहुँचे। वहाँ पर भी अपार भीड़ थी। दोनों ओर खिलौने वाले तथा अनेक छोटे बड़े दुकानर अपनी दुकानें सजाए बैठे थे।

थोड़ी दूर आगे चलकर यह मुख्य बाजार चार भागों में विभाजित हो गया। यहं जाकर भीड़ भी कुछ कम हो गई थी। अतः यहाँ हमने भली प्रकार दुकानें देखीं। एक बाजार । चूड़ियों की बड़ी दुकानें थी जिसमें विद्युत् के बड़े बड़े बल्ब चकाचौंध पैदा कर रहे थे। दूसरे बाजार में सन्दूक व र इ के सामान वाली दुकानें थीं तो तीसरे बाजार में कपड़े के व्यापारी थे। इन चारों बाजारों को मिलाकर एक शाल मुख्य बाजार बनाया गया था, जो सारी प्रदर्शनी का मुख्य आकर्षण केन्द्र था। इस बाजार की शोभः का तो कहना ही क्या। इसमें असंख्य बल्ब जगमगाते दिखाई दे रहे थे। सारे बाजार के बीच-बीच में चौव सजे थे, जिनमें फौव्वारे और त्रिमूर्ति आदि बने हुए थे।

इस प्रकार घूमते हुए हम लोग प्रदर्शनी के मुर। पंडाल में जा पहुँचे। वहाँ पर उस दिन कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया था। टिकट लेकर हमने की शोभा भी देखी। वहाँ पर प्रत्येक श्रेणी के टिकट वालों के लिए बैठने के अलग-अलग स्थान नियत थे। रात्रि के दस बजे कवि सम्मेलन प्रारम्भ हुआ। सभी कवियों ने अपनी सरस कविताएँ सुनाईं। अधिकतर कविताएँ देश-प्रेम तथा समाज सुधार से सम्बन्धित थीं। रात्रि के डेढ़ बजे के लगभग कवि सम्मेलन समाप्त हुआ। हम लोग उस समय काफी थक चुके थे। अतः वापस घर की ओर चल पड़े। ठीक डेढ़ बज चुका था। फिर भी लागे मेले में आ-जा रहे थे। सभी बाजारों को धीरे-धीरे पार करते हम अपने स्थान को लौट आए। यह प्रदर्शनी जहाँ सबका मनोरंजन करती है, वहाँ इसका व्यापारिक तथा सामाजिक महत्त्व भी है। यहाँ पर दूर-दूर के व्यापारी अपनी-अपनी वस्तुएँ लेकर आते हैं। बच्चों के लिए तो यह मेला विशेष आकर्षक का केन्द्र बना रहता है। खोमचे वाले, तमाशे वाले, झूले वाले तथा सैकड़ों प्रकार के खेल-तमाशे वाले बच्चों की भीड़ को आकर्षित किए रहते हैं। इस प्रकार मेलों का मानव जीवन में निजी महत्त्व है। बच्चे, युवक तथा बूढ़े सभी को अपनी मनोनुकूल वस्तुएँ यहाँ मिल जाती हैं। इसीलिए सभी इसमें प्रसन्नतापूर्वक भाग लेते हैं।

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