चन्नमल्लिकार्जुन अर्थात् शिव । अक्कमहादेवी शिव की अनन्य भक्त हैं । वह वीर शैव संप्रदाय से जुड़ी हुई है । वह दुनियाभर में शिव के संदेश प्रचारित-प्रसारित करना चाहती हैं । शिव संसार का कल्याण करनेवाले हैं | मनुष्यरूपी जीवन को व्यर्थ न गँवाकर ईशवंदना में चित्त लगाने के अवसर को भूल न जाना चाहिए।
इस संदर्भ में एक विशेष बात यह भी है कि प्रत्येक वचन के अंत में रचयिता का कोई न कोई संकेत नाम रहता है । जैसे कि बसवेश्वर के वचन के अंत में ‘कूडलसंगम देव’ अल्लम के वचन के अंत में ‘गहेश्वरा’ और अक्कमहादेवी के वचन के अंत में ‘चन्नमल्लिकार्जन’ । ये संकेत नाम शिवशरणों के उपास्य देव शिव के प्रति लक्ष्य करके कहे गए हैं । इन वचनों में अभिव्यक्त विचार मानवजीवन को बेहतर बनाने की उमदा भावना से ओतप्रोत है।