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बहिष्कार आन्दोलन और स्वदेशी आन्दोलन के स्वरूप और परिणामों की चर्चा कीजिए ।

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भारत में सन् 1905 के बंगाल विभाजन आन्दोलन के साथ-साथ बहिष्कार और स्वदेशी आन्दोलन चले ।

  • अंग्रेजों की ‘फूट करो और राज करो’ की कूटनीति के कारण बहिष्कार और स्वदेशी आन्दोलन को गति मिली ।
  • 16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल विभाजन लागू किया, इसे भारत में राष्ट्रीय शोक दिवस मनाया गया ।
  • इसी दिन विदेशी माल के बहिष्कार और स्वदेशी के उपयोग को प्रोत्साहन देने का प्लान किया गया ।
  • इस आन्दोलन के तीन महत्त्वपूर्ण लक्षण थे, जिनमें (1) स्वदेशी अपनाना (2) विदेशी का बहिष्कार करना (3) राष्ट्रीय शिक्षा अपनाना ।

प्रभाव:

  • स्वदेशी आंदोलन से भारत को खूब लाभ हुआ जबकि विदेशी बहिष्कार से इंग्लैण्ड के व्यापार को बड़ा झटका लगा ।
  • इंग्लैण्ड से चीनी, सिगरेट, तंबाकू, कपड़ा का आयात बंद हो गया और भारत में बने कपड़ें की बिक्री बढ़ गई ।
  • स्वदेशी माल बनाने के कारखाने शुरू हुए ।
  • बंगाल के साथ पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मुंबई तथा मद्रास आदि प्रांतों में इसका प्रभाव पड़ा ।
  • स्वदेशी की गूंज ब्रिटिश संसद तक जबरदस्त सुनाई पड़ी और मात्र 6 वर्ष में सन् 1911 में बंगाल विभाजन रद्द कर दिया ।
  • अंग्रेजी शासन के विरुद्ध उत्पन्न हुई चेतना की यह उल्लेखनीय विजय थी ।

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