फादर कामिल बुल्के जो विदेश के थे भारत में आकर उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनके अनुकरणीय चरित्र से परिचय करवाकर लेखक ने मानवीय करुणा, भारतीयता की पहचान, अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम, हिन्दी भाषा के प्रति दायित्व से हमें अवगत करवाया है। वे बताना चाहते हैं कि विदेश से आकर एक व्यक्ति दया, करुणा, ममता का हमें पुन:स्मरण करवाता है, हमारी संस्कृति से हमें अवगत कराता है, हिन्दी भाषा के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाता है।
हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा घोषित करने के लिए प्रयत्न करता है, और हम भारत के होकर अपनी संस्कृति अपनी पहचान को भूल रहे हैं, पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने में लगे हैं और पाश्चात्य संस्कृति में पला-बढ़ा व्यक्ति भारतीय संस्कृति को आत्मसात् कर अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। हम अपने कर्तव्यों से दूर होते जा रहे है। एक विदेशी व्यक्ति हिंदी के गौरव का गीत गाता है और हम भारतीय होकर भी हिन्दी की उपेक्षा करते हैं।
लेखक यही संदेश देना चाहते हैं कि हमें अपने देश, अपनी धरती, अपनी मातृभाषा के विकास के लिए सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए । लोगों के साथ आत्मीयता व प्रेम तथा भाईचारे के साथ रहना चाहिए । दूसरों की सहायता करनी चाहिए।