सामान्य ख्याल है कि जनसंख्या वृद्धि पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डालती है । जनसंख्या वृद्धि से वायु, भूमि एवं जलप्रदूषण को बढ़ावा मिलता है । मानव साधनों का दुरूपयोग और शोषण से पर्यावरण पर संकट खड़ा हो जाता है । भूगर्भ में जल का प्रमाण कम हुआ है । एसिड़ वर्षा, ओजोन में छेद, जैविक विविधता का नाश जैसे वैश्विक प्रश्न अत्यंत गंभीर बने है ।
लेकिन कुछ विद्वानों का कहना है कि जनसंख्या वृद्धि पर्यावरण पर विपरीत असर नहीं डालती है । वे तो जनसंख्या को महत्त्वपूर्ण संसाधन मानते हैं । उनके इस मत अनुसार संकट में ही मानव की सर्जनात्मक शक्ति खिल उठती है । आवश्यकता आविष्कार की जननी है । विकास की प्रक्रिया दौरान शोधखोज के कारण मानव संसाधन की गुणवत्ता भी बढ़ती है । सायमन क्रूजनेट नाम के अर्थशास्त्री के अनुसार विकास के प्रारंभिक अवस्था में प्रदूषण जरूर बढ़ता है लेकिन बाद में कमी आती है ।
इस प्रकार पर्यावरण पर जनसंख्या वृद्धि का अनुकूल एवं प्रतिकूल असर दोनों पड़ता है |