निजीकरण अर्थात् सार्वजनिक साहस के रूप में संचालित इकाई को निजी व्यक्ति अथवा पीढ़ी को सौंपने की प्रक्रिया । स्वतंत्रता के पश्चात् अर्थतंत्र के अनेक उद्देश्यों को सिद्ध करने हेतु सार्वजनिक क्षेत्रो की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी ऐसा अपेक्षित था । सार्वजनिक क्षेत्र अर्थतंत्र के विकास हेतु ढाँचागत सुविधाओं का सर्जन व आधारभूत उद्योगों का विकास करेंगे । स्वतंत्रता के पश्चात् आरम्भ के समय में निजी क्षेत्र जहाँ योग्य प्रतिफल न मिले तब तक पूँजी निवेश करने हेतु तैयार नहीं होते । सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के विकास द्वारा ढाँचागत सुविधाओं का निर्माण करना आरम्भ किया तथा अर्थतंत्र में आवश्यक माल सामान एवं सेवाओं का उत्पादन सार्वजनिक क्षेत्रों द्वारा आरम्भ किया गया । पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा भी सार्वजनिक क्षेत्र को काफी महत्त्व दिया गया था ।
आर्थिक सुधार के भाग के रूप में 1991 के पश्चात् निजीकरण को स्वीकारा जिससे सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका में परिवर्तन हुए । लगातार नुकसान वाली सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में ढाँचागत परिवर्तन आरम्भ किये तथा कुछ सार्वजनिक क्षेत्रों की इकाइयों को बन्द किया गया । बहुत सी सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों के इक्विटी शेयर जनता को बेचने लगे हैं । निजी उद्योगों को भी बेचा गया जिन्हे निजीकरण कहा जाता है । सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयाँ पूँजी का कुछ भाग आम जनता को खरीदने हेतु आमंत्रण देती है जिसे पूँजी विनिवेश Disinvestment कहते हैं । भारत सरकार ने इस हेतु अलग विशेष मंत्रालय आरम्भ किया है ।
भारतीय अर्थतंत्र में निजीकरण के लाभ :
निजीकरण के निम्नलिखित लाभ अथवा सकारात्मक प्रभाव निम्न है :
- कार्यक्षमता में वृद्धि
- राजनैतिक दखलगीरी का अभाव
- ढाँचागत सुविधाओं का सृजन
- उत्पादन के साधनों का महत्तम उपयोग
- सृजनात्मकता और नवीनता का लाभ
- नये संशोधन का लाभ
- स्पर्धा के वातावरण का निर्माण
- नई टेक्नोलोजी का उपयोग
- व्यवस्थित मार्केटिंग
- गुणवत्तायुक्त वस्तु या सेवा
- नये संशोधन का लाभ