(क) प्रस्तुत कथन इंदु का है। छोटी भाभी इंदु से रजवा के रोने का कारण पूछती है और कहती है कि क्या छोटी बहू ने इसे कोई कड़वी बात कह दी है। इंदु छोटी भाभी के घर के सदस्यों के प्रति व्यवहार से असंतुष्ट है। झट से अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करती हुई कहती है कि छोटी भाभी (बेला) मीठी कब बोलती है जो आज कड़वा बोलेगी अर्थात् वे कभी मीठा तो बोलती ही नहीं। जब भी बोलती है, कड़वा ही बोलती है।
(ख) बेला पढ़ी-लिखी बहू है। इसलिए उसे घर के पुराने रीति-रिवाज पसंद नहीं। परिणामस्वरूप वह प्रायः खीझी रहती है। उसके इस व्यवहार को लेकर छोटी भाभी इंदु से कहती है कि क्या परेश (बेला का पति) उसे समझाता नहीं। यह सुनकर इंदु कहती है कि वहां परेश की कौन-सी सुनवाई होती है तभी मंझली भाभी हस्तक्षेप करती हुई कहती है कि परेश कचहरी में तहसीलदार होगा। घर में तो वह अपराधियों से भी गया-बीता है। यहां मंझली बहू के कथन में व्यंग्य का भाव है।
(ग) दादा मूलराज को जब पता चलता है कि घर में बेला (नयी बहू) को लेकर सदस्यों में मनमुटाव चल रहा है तो वे अपने बेटे कर्मचंद से कहते हैं कि यह बात पहले उन्हें क्यों नहीं बताई गई। यदि उन्हें पता होता तो वे इस समस्या का समाधान करते। उनका कथन है कि हल्की-सी खरोंच का भी तत्काल इलाज न किया जाए तो वह बढ़ कर घाव बन जाती है। घाव का उपचार करना कठिन होता है। भाव है कि घर में कोई ऐसी बात तूल न पकड़े, जो संयुक्त परिवारप्रणाली में बाधक बन जाए।