उठो, धरा के …………… नव प्राण भरो।
हे भारतमाता के अमर पुत्रों, गुलामी की रात बीत गई है और आजादी का सबेरा हुआ है। अब तुम अज्ञान-आलस्य की नींद से जागो और देश के नवनिर्माण में लग जाओ। तुम्हें देशवासियों के जीवन में फिर से नया उत्साह भरना हैं, उनमें नये प्राणों का संचार करना है।
नयी प्रातः ……………. मुस्कान भरो।
आजादी की नयी सुबह में नयी चर्चाएँ हो रही हैं। नये विचारों की किरणें फैल रही हैं। सब अपने जीवन में नये प्रकाश का अनुभव कर रहे हैं। लोगों के मन में नयी उमंगें हैं और हौसले की नयी लहरें हैं। सबके मन में नयी आशाएँ हैं। आज देशवासी खुलकर साँस ले रहे हैं। हे देश के सूपतो, तुम्हें युग-युग के मुरझाए हुए फूलों को नयी मुस्कान देनी है, उन्हें फिर से खिलाना है।
डाल-डाल पर ……………… नव गान भरो।
आजादी की इस सुबह में प्रकृति भी आनंदित है। पेड़ों की डालों पर बैठे पक्षियों के स्वरों में भी नवीनता है। वे भी जैसे खुशी का कोई गीत गा रहे हों। बागों में भौंरे गुंजार करते हुए मस्ती से मँडरा रहे हैं। हे देश के सपूतो, स्वतंत्रता के बाद देश में नया युग आया है। इस नये युग की वीणा में तुम्हें नये राग और नये गाने भरने हैं।
कली-कली …………….. उद्यान करो।
इधर उद्यान में कलियाँ खिल रही हैं और प्रत्येक फूल मुस्करा रहे हैं। सारे देश में स्वतंत्रता के सूर्य का प्रकाश फैला हुआ है। ऐसा लगता है जैसे भारतमाता का शरीर आज सुनहरा हो रहा हो। हे देश के सपूतो, तुम्हें अपनी मंगलमय वाणी से इस संसाररूपी उद्यान को गुंजित करना है।
सरस्वती का ……………… आह्वान करो।।
कवि देश के बालकों से कहते हैं कि हमारा देश सरस्वती का पवित्र मंदिर है। यहाँ की कल्याणकारी सारी विद्याएँ ही तुम्हारी संपत्ति हैं। तुममें से प्रत्येक बालक इस विद्या-मंदिर का रक्षक और पुजारी है। तुम्हें यहाँ ज्ञान के सैकड़ों दीपक जलाने हैं और नये युग का आहवान करना है। (तुम्हें सभी प्रकार का ज्ञान पाकर देश का भविष्य उज्ज्वल बनाना है।)