सहकारी कृषि में किसान आपस में मिलकर एक सहकारी संस्था बना लेते हैं। इस संस्था के सभी सदस्य किसान अपनी-अपनी भूमि पर कृषि करते हैं। फ़सल आदि का सारा हिसाब-किताब सहकारी संस्था के हाथों में होता है। संस्था द्वारा वही फैसला लिया जाता है जो सभी सदस्यों के हित में होता है। कृषि से प्राप्त लाभ को सभी सदस्यों के बीच उनकी भूमि के अनुपात में बांटा जाता है। जिन कृषकों के पास ज़मीन कम होती है, उनके लिए तो सहकारी कृषि वरदान सिद्ध हुई है। इसलिए भारत सरकार इस प्रकार की खेती को प्रोत्साहित कर रही है।