प्रस्तुत साखियां अथवा दोहे कबीरदास जी द्वारा रचित हैं। इन साखियों में कवि ने विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त किया है। कबीर दास जी के अनुसार हमें ऐसे मधुर वचनों का प्रयोग करना चाहिए जिससे दूसरों को भी सुख का अनुभव हो। उनका मानना है कि जो काम कल करना है, उसे आज ही कर लो और जो काम आज करना है, वह अभी कर लो क्योंकि पल भर में प्रलय हो सकती है।
पल भर में कोई भी विपत्ति आ सकती है। वे ये भी मानते हैं कि विद्या रूपी धन को बिना मेहनत के कोई प्राप्त नहीं कर सकता। जिस प्रकार पंखे को बिना हिलाए हवा नहीं मिल सकती, उसी प्रकार बिना परिश्रम के विद्या रूपी धन नहीं पाया जा सकता। चौथे दोहे में कबीर का कहना है कि इस संसार में धार्मिक ग्रन्थों को पढ़ – पढ़कर अनेक सांसारिक लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं किन्तु कोई भी सच्चा विद्वान् नहीं बन सका।
दूसरी ओर ईश्वर प्रेम के मात्र एक ही अक्षर को पढ़ लेने वाला व्यक्ति सच्चा विद्वान बन जाता है। पाँचवें दोहे में कबीर कहते हैं कि बोली बड़ी अनमोल है। कुछ भी बोलने से पहले अच्छी तरह सोच लेना चाहिए और फिर मुँह से शब्द निकालने चाहिए। छठे दोहे में कबीर ने कहा है कि खजूर के पेड़ की तरह किसी व्यक्ति के बड़ा होने से क्या लाभ ? खजूर का पेड़ न तो किसी थके – हारे मुसाफिर को छाया दे सकता है और न फल।
खजूर के फल ऊपर लगते हैं जिन्हें आसानी से नहीं प्राप्त किया जा सकता। दूसरों को लाभ पहुँचाने वाला व्यक्ति ही बड़ा होता है। सातवें दोहे में कबीर ने निन्दा करने वाले व्यक्ति को अपने पास रखने को कहा है। यदि सम्भव हो तो अपने घर के आंगन में ही उसके लिए छप्पर डाल देना चाहिए। निंदक व्यक्ति बार – बार हमारे अवगुणों को बताता है। वह बिना पानी और साबुन के हमारे स्वभाव को निर्मल एवं स्वच्छ बना देता है।
आठवें दोहे में कबीर ने संसार का सबसे बुरा व्यक्ति स्वयं को बताया है। नौवें दोहे में संत कबीर ने किसी भी चीज़ की अधिकता एवं अति को हानिकारक बताया है।